18.12.13

चलो रूप परिभाषित कर दें

नेहा
वत्सल

(वत्सल अर्चना चावजी के सुपुत्र हैं, मृदुल, सौम्य और विलक्षण प्रतिभा के धनी, न जाने कितने क्षेत्रों में। नेहा उनकी धर्मपत्नी हैं। स्नेहिल वत्सल ने नेहा के कई चित्रों का मोहक स्वरूप जब फेसबुक में पोस्ट किया तो आनन्द में अनायास ही शब्द बह चले)

भाव उभारें, अमृत भर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें,

किन शब्दों में ढूँढ़े उपमा,
कैसे व्यक्त करें मन सपना,
कहना मन का रह न जाये,
अलंकार में बह न जाये,
ऊर्जान्वित उन्माद उकेरण,
शब्दों में शाश्वत उत्प्रेरण,
सघन सान्ध्रता प्लावित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।

रंग हजारों, रूप समाये,
इन्द्रधनुष आकार बनाये,
जितने छिटके, उतने विस्तृत,
जितने उड़ते, उतने आश्रित,
हो जाये विस्मृत विश्लेषण,
रंगों में संचित संप्रेषण,
मूर्तमान संभावित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।

कुछ हँसते से चित्र उतारूँ,
यथारूप, मैं यथा बसा लूँ,
जितना देखूँ, उतना बढ़ती,
आकृति सुखमय घूर्ण उमड़ती,
धूप छाँव का हर पल घर्षण,
दृष्टिबद्ध अधिकृत आकर्षण,
किरण अरुण अनुनादित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।

प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
भावजनित मन आग्रह पढ़ता,
रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।

46 comments:

  1. चित्रानंदम शब्दानंदम।

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  2. कैमरे से खूबसूरती को संचित किया जा सकता...अन्यथा ये तो रूप बदलती रहती है...सुन्दर रचना...

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  3. ऐसी परिभाषा की अभिलाषा कौन न करे । अद्भुत / सुन्दर कविता ।

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  4. प्रेम अपरिभाषेय है । शब्द बेचारे बौने पड जाते हैं उसकी व्याख्या करते-करते । यही उसकी विशेषता है ।सुन्दर रचना । मुझे तो " मेरी बिटिया सुना करो " आज भी याद है ।

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  5. सुप्रभात संग प्रणाम आपने वत्सल के चित्रों को शब्दों से जीवंत कर दिया
    वास्तव में ऐसे ही संतान माँ बाप को गौरवान्वित करते हैं अर्चना के चित्र प्रेम
    वत्सल के धमनी में समाया नज़र आया लेकिन पहली बार इस विधा को आपने
    शब्दों की माला दी बधाई सचमुच आनंद आ गया

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  6. चलो रूप परिभाषित कर दें।
    है तो असंभव लेकिन आपका प्रयास सतुत्य है ....वत्सल जी का तो कहना ही क्या ?

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  7. रूप की कोई भी परिभाषा नहीं है,
    पर प्रयासों की कोई सीमा कहाँ है |
    रूप सबकी दृष्टि मन की भावना -
    दृष्टि एवं दृश्य की सीमा कहाँ है |

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  8. हम भी गुलाबजल छलका दें
    सुंदरता परिभाषित कर दें !

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  9. अनुठे शब्दावली से रूप परिभाषित कर दिया.. सुन्दर..

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  10. सुंदर नहीं अति सुंदर...रूप भी और परिभाषित करने के तरीके भी...

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  11. अद्भुत .... सुन्दर...... कविता ....

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  12. जो अन्तः प्रेम प्रभासित कर दे वही सौन्दर्य है ...उत्कृष्ट ,बहुत सुंदर कविता ....!!

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  13. कर दिया आपने 'रूप परिभाषित'
    अब भला इसे सुंदर रूप की और क्या परिभाषा हो सकती है। बहुत सुंदर ....

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  14. चित्रों को शब्दों से भी जीवन्तता मिल जाती है
    रूप की भाषा ही आदमी को निशब्द कर जाती है

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  15. चित्रों को शब्दों से भी जीवन्तता मिल जाती है
    रूप की भाषा ही आदमी को निशब्द कर जाती है

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  16. वत्सल ने प्रेम को तस्वीर का रूप दिया और आपने उसे एक कविता दी!! प्रेम की सुगन्ध इसी को कहते हैं!!

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  17. एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
    रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
    अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
    चलो रूप परिभाषित कर दें
    lajbab rachana pandey ji .......poora vatavaran premmay kr diya apne

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  18. चित्र और कविता दोनों का अद्भुत समावेश किया है .........

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  19. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-12-2013 को चर्चा मंच पर टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में दिया गया है
    कृपया पधारें
    आभार

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  20. कितनी सुन्दर परिभाषा।

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  21. रूप की परिभाषा इतनी मर्यादित , मृदु , पावन !
    मन प्रसन्न हुआ !

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  22. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आप कविता भी सुन्दर लिखते हैं ..

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  23. बेहतरीन रचना !!!!

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  24. रूप का यह सात्विक रू.प। अति सुन्दर।

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  25. अति सुन्दर ..प्रभासित प्रेम हुआ..

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  26. इतने प्रभावी भाव सम्प्रेषण पर कितनी भी अच्छी प्रतिक्रिया दी जाए वो भी बहुत कम लगेगी ......

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  27. कैमरा तो है ही ... पर आपके शब्द भी वो सब कुछ कह रहे हैं ...
    मुक्त प्रेमभाव ...

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  28. वाह! तारीफ़ के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे - बस यही -चित्रानंदम शब्दानंदम के आगे रिश्तानन्दम .... आपसे भी..... वत्सल- नेहा तो खैर हैं ही .......
    और कविता मे भाव समा गए हैं...अद्भुत!
    आभार ....

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  29. प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
    भावजनित मन आग्रह पढ़ता,
    रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
    कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
    एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
    रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
    अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
    चलो रूप परिभाषित कर दें।

    सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान ,

    तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो
    ---------राष्ट्रकवि

    मेरे लिए तो बस वही,पल हैं हंसी बहार के

    तुम सामने बैठी रहो ,मैं गीत गाऊँ प्यार के।

    जितनी सुंदर छवि है उतनी ही सुथरी उज्जल रचना है। इसे कहते हैं तदानुभूति।

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  30. प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
    भावजनित मन आग्रह पढ़ता,
    रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
    कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
    एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
    रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
    अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
    चलो रूप परिभाषित कर दें।

    सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान ,

    तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो
    ---------राष्ट्रकवि दिनकर

    मेरे लिए तो बस वही,पल हैं हंसी बहार के

    तुम सामने बैठी रहो ,मैं गीत गाऊँ प्यार के।

    जितनी सुंदर छवि है उतनी ही सुथरी उज्जल रचना है। इसे कहते हैं तदानुभूति।
    प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
    भावजनित मन आग्रह पढ़ता,
    रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
    कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
    एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
    रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
    अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
    चलो रूप परिभाषित कर दें।

    सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान ,

    तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो
    ---------राष्ट्रकवि दिनकर

    मेरे लिए तो बस वही,पल हैं हंसी बहार के

    तुम सामने बैठी रहो ,मैं गीत गाऊँ प्यार के।

    जितनी सुंदर छवि है उतनी ही सुथरी उज्जल रचना है। इसे कहते हैं तदानुभूति।

    साहित्य में इसे ही रस अवस्था कहते हैं जब रूप रचना एक रस हो जाएँ।

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  31. Neha ji ki smile behaad khoobsurat hai :)

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  32. what a pic and what a poetry...

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  33. बहुत सुंदर भाव .....

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  34. रूप परिभाषित करने में तो कोई भी कवि ईर्ष्या करनेलगेगा आपसे।

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  35. शुद्ध हिंदी, अलंकारपूर्ण शैली और शब्दों का गंभीर मगर सुखद और सुन्दर चुनाव जो अव्यक्त को व्यक्त सा करता जान पड़ता है वाह क्या शैली है लेखक महोदय!

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