21.8.22

सज्जन-मन


सब सहसा एकान्त लग रहा,

ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा,

बने हुये आकार ढह रहे,

सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा।


मन का चिन्तन नहीं व्यग्रवत,

शुष्क हुआ सब, अग्नि तीक्ष्ण तप,

टूटन के बिखराव बिछे हैं,

स्थिर आत्म निहारे विक्षत।


सज्जन-मन निर्जन-वन भटके,

पूछे जग से, प्रश्न सहज थे,

कपटपूर्ण उत्तर पाये नित,

हर उत्तर, हर भाव पृथक थे।


सज्जन-मन बस निर्मल, निश्छल

नहीं समझता कोई अन्य बल,

सब कुछ अपने जैसा लगता,

नहीं ज्ञात जग, कितना मल, छल।

 

साधारण मन और जटिल जन,

सम्यक चिन्तन और विकट क्रम,

बाहर भीतर साम्य नहीं जब,

क्या कर लेगा, बन सज्जन-मन।

14.8.22

तेल और बाती

 

मेरा जीवन, एक दिये सा,

तेल तनिक पर बाती लम्बी,

जलने की उत्कट अभिलाषा,

स्रोत विरलतम, आस विहंगी।


आशा के अनुरूप जली वह,

अनुभव पाती प्रथम प्रशस्था,

करती अपना पंथ प्रकाशित,

रही व्यवस्थित साम्य अवस्था।


सतत संग में सहयात्री थे,

उनके हित भी कुछ कर पाती,

अत्यावश्यक, बल, मति, क्षमता,

शनै शनै ऊर्जित गति पाती।


मन, जीवन, जन, दिशा, दशा, पथ,

नहीं पृथक, मिलकर बाँधेंगे,

कार्य वृहद सब करने होंगे,

सब हाथों से सब साधेंगे।


सोचा साथ चलेंगे डटकर,

सोचा मिट्टी एक हमारी,

एक दिया बन जल सकते यदि,

बनी रहेगी प्रगति हमारी।


कुछ में कम, है अधिक किसी में,

तेल और बाती जीवन की,

संसाधन की कही प्रचुरता,

कहीं विकलता सकुचे मन की।


एक दिया ऐसा पाया जो,

तेल भरा पर बाती छोटी,

लगा सुयोग बना विधि भेजा,

कर लेंगे पूरित क्षति जो भी।


बीच पंथ में भान हुआ यह,

यद्यपि तेल मिला गति पायी,

किन्तु प्रखरता मन्द पड़ी क्यों,

किसने उद्धत दीप्त बुझायी।


बाती पर ही तेल गिर रहा,

ज्योति सिमटती जाती मध्यम,

यह केवल संयोग नहीं था,

जानबूझकर इंगित था क्रम।


ज्ञात नहीं थे ऐसे प्रकरण,

सहजीवन में दिखे नहीं थे,

संसाधन से क्षमता बाधित,

विधि ने कटु क्षण लिखे नहीं थे।


त्याग राग से कर सकता हूँ,

छिप जाना स्वीकार नहीं था,

बिना जिये अस्तित्व सिमटना,

छल से अंगीकार नहीं था।


धन्यवाद ईश्वर को शत शत,

अब एकाकी चल पाऊँगा,

किन्तु जलूँगा पूर्ण शक्ति भर,

जितना संभव जल पाऊँगा।


जीवन पढ़ना, बढ़ना जाना,

और समय से जान लिया सब,

अपनी धार, तरंगें अपनी,

अपनी बहती शान्त सुखद नद।

7.8.22

धर बल, अगले पल चल जीवन


शत पग, रत पग, हत पग जीवन,  

धर बल, अगले पल चल जीवन।


रथ रहे रुके, पथ रहे बद्ध

प्रारम्भ, अन्त से दूर मध्य,

सब जल स्वाहा, बस धूम्र लब्ध,

निश्चेष्ट सहे, क्या करे मनन,

धर बल, अगले पल चल जीवन।


बनकर पसरा वह बली स्वप्न,

चुप चर्म चढ़ा, बन गया मर्म,

सब सुख अवलम्बन गढ़े छद्म,

मन मुक्ति चहे, पोषित बंधन,

धर बल, अगले पल चल जीवन।


ऋण रहा पूर्ण, हर घट रीता,

श्रमसाध्य सकल, उपक्रम बीता,

मन सतत प्रश्न, तब क्या जीता,

भय भ्रमित अनन्तर उत्पीड़न,

धर बल, अगले पल चल जीवन।


जो है प्रवर्त, क्षण प्राप्त वही,

तन मन गतिमयता व्याप्त अभी,

गति ऊर्ध्व अधो अनुपात सधी,

आगत श्वासों का आलम्बन,

धर बल, अगले पल चल जीवन।