31.5.15

वर्तमान

रत विश्व सतत, मन चिन्तन पथ,
जुड़कर खोना या पंथ पृथक,
क्या निहित और क्या रहित, प्रश्न,
आश्रय, आशय, आग्रह शत शत ।।१।।

प्रातः प्रवेश, स्वागत विशेष,
करबद्ध खड़े, जो कार्य शेष,
प्रस्तुत प्रयासरत यथायोग्य,
अब निशा निकट, मन पुनः क्लेश ।।२।।

क्या पास धरें, क्या त्याग करें,
किस संचय से सब भय हर लें,
तन मन भारी, जग लदा व्यर्थ,
गन्तव्य रिक्त, अनुकूल ढलें ।।३।।

क्षण प्राप्त एक, निर्णय अनेक,
गतिमान समय, अनवरत वेग,
जिस दृष्टि दिशा, लगती विशिष्ट,
आगत अदृश्य, फल रहित टेक ।।४।।

आधार मुक्त, मतिद्वार लुप्त,
संकेतों के संसार सुप्त,
प्रश्नों के उत्तर बने प्रश्न,
निष्कर्ष रचयिता स्वयं भुक्त ।।५।।

क्या आयोजन, क्या संयोजन,
किसका नर्तन, किसका मोदन,
कथनी करनी में मुग्ध विश्व,
यदि नहीं प्राप्त, क्यों आरोदन ।।६।।

न आदि ज्ञात, न अन्त ज्ञात,
न अन्तरमन का द्वन्द्व ज्ञात,
यदि ज्ञात अभी, बस वर्तमान,
एक साँस उतरती रन्ध्र ज्ञात ।।७।।

24.5.15

आशा

आशा की अँगड़ाई, फैली दिगदिगन्त है ।
बीत गये दुख-पतझड़, जीवन में बसन्त है ।। 

पथ पर पग दो चार बढ़े, था मन उमंग में उत्साहित ।
भावनायें उन्मुक्त और मैं लक्ष्य-प्राप्ति को आशान्वित ।
रुक जाने का समय नहीं, घट भर लेने थे अनुभव के,
कर्म बसी भरपूर ऊर्जा, सुखद मनोहर पथ लक्षित ।।१।।

बीच राह, सब ओर स्याह, पुरजोर हवायें बहती थीं ।
काल करे भीषण ताण्डव, चुप रहे जीवनी सहती थी ।
आयी निष्ठुर प्रारब्ध-निशा, कुछ और कहानी कह डाली,
विघ्न-बवंडर उठते नभ में, आशायें नित ढहती थीं ।।२।।

दुख आते, मन अकुलाते, कुछ और स्वप्न ढल जाते हैं ।
अनचाही पर उस पीड़ा को, हम सहते हैं, बल पाते हैं ।
कुछ और अभी पल आयेंगे, कष्टों का बेड़ा लायेंगे,
फिर भी आशा है, जीवन है, हम भूधर से डट जाते हैं ।।३।।

17.5.15

प्रेम अपना

परिचयी आकाश में, हर रोज तारे टूटते हैं,
लोग थोड़ा साथ चलते और थकते, छूटते हैं,
किन्तु फिर भी मन यही कहता, तुम्हारे साथ जीवन,
प्रेम के चिरपाश में बँध, क्षितिज तक चलता रहेगा ।।१।।

विविधता से पूर्ण है जग, लोग फिर भी ऊब जाते,
काल के आवेग में आ, पंथ रह रह डगमगाते,
नहीं भरता दम्भ फिर भी, मन सतत यह कह रहा है,
आत्म-पोषित, प्रेम अपना, दुग्ध सा धवलित रहेगा ।।२।।

10.5.15

तुम्हारा साथ

आज मेधा साथ देती,
उमड़ता विश्वास भी है ।
चपल मन यदि शान्त बैठा,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।१।।

दिख रहा स्पष्ट सब कुछ,
यदि दिशा मन की बँधी है ।
प्रेरणा अविराम बहती,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।२।।

बढ़ रहा हूँ लक्ष्य के प्रति,
और संग आशा चली है ।
बिन सहारे चल रहा हूँ,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।३।।

यदि सम्हलता समय का रथ,
जीवनी की लय सधी है ।
मन मुदित हो गीत गाता,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।४।।

3.5.15

हेतु तुम्हारे

संग तुम्हारे राह पकड़ कर, 
छोड़ा सब कुछ बीते पथ पर,
मन की सारी उत्श्रंखलता, 
सुख पाने की घोर विकलता,
मुक्त उड़ाने, अपने सपने, 
भूल आया संसार विगत मैं,
स्वार्थ रूप सब स्वर्ग सिधारे, 
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।१।।

बन्धन को सम्मान दिलाने, 
मन की बागडोर मैं थामे,
तज कर नयनों की चंचलता, 
नयी जीवनी प्रस्तुत करता,
निर्मित की जो निष्कर्षों से, 
अर्पित तुम पर पूर्ण रूप से,
तुम पर ही आधार हमारे, 
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।२।।

नये पंथ पर लाया जीवन, 
देखो कुछ खो आया जीवन,
सहज नया एक रूप बनाकर, 
बीता सकुशल, उसे बिताकर,
स्वागत का एक थाल सजाये, 
आशाआें का दीप जलाये,
अपना सब कुछ तुम पर वारे, 
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।३।।