12.7.14

क्या नियत हो?


ध्येय जीवन का नियत करना स्वयं,
और यह भी नियत करना,
ध्येय में बँध कर रहूँ,
या रहूँ उन्मुक्त सा।

पैर धरती पर बँधे हों,
या गगन को छू सकें, वो पंख हो,
बँधा जीवन आश्रितों की राह में,
या जगत से मौन हो अभिव्यक्तियाँ। 

12 comments:

  1. वाह ...पर ये निर्णय है कठिन, मानो सब कुछ ही चाहिए हमें

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  2. मन के द्वंद से मुक्त होने पर ही सफलता के मार्ग-प्रसस्त होते है. सुंदर रचना.

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  3. ध्येय दोनों हो ,बस ताल-मेल हो
    उच्छृंखल हो उडूं जब,
    मन में डोर की गहन जकड़ हो। । बहुत सुन्दर ...

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  4. या दोनों ही मिलते हैं या एक भी नहीं..

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  5. ध्येय की सुचिता हो किन्तु अभिव्यक्ति स्पष्ट होनी चाहिये।

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  6. ध्येय को निश्चित करना और हासिल करना भी एक ध्येय ही है . किस तरह नियत हो ध्येय , यह भी ध्येय !
    मार्ग वही जो सबके लिए सुखद हो !

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  7. लक्ष्य हमेशा बडा बनाना प्रभु ही उस तक पहुँचाएगा ।
    उस पर सदा भरोसा करना नट - वर ही पार लगाएगा ।

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  8. उन्मुक्त छन्द आपके अभिव्यक्ति की शैली तो
    ना थी मगर बहुत सुंदर बन पड़ी है.

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  9. ्येय जीवन का नियत करना स्वयं,
    राह में काँटों की गिनती भूलकर,
    एक राही खुद बनाए मंज़िलें,
    राहों को भी शर्मा दे जो उसके हौंसले,
    वो शख्स जिसे खुद दुनियाँ करती नमन!

    ध्येय चाहे कितना मुश्किल हो मगर,
    पथ में भी कंटक लाख आएँ मगर,
    राहों को मोड़ मंज़िल का नज़ारा पाएगा,
    अनन्त सुख जीवन का वहीं मिल जाएगा!

    अब त्याग भ्रम कर ले शपथ,
    ऐ दृढ़निश्चयी अब कर ले हठ,
    ना त्याग मान ना कर अभिमान,
    बस पग बढ़ा औ छू जरा,
    है धरा छोटी थोड़ा सा हैआसमॉ,
    आकाश नाप धरती को बाँध,
    करता अजब जो है विकट,
    देता चुनौती ध्येय तेरा दूसरों को,
    गर ध्येय पथ का कर्म है ये निष्कपट!

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  10. नियत करना तो चाहिए, पर यह कठिन बहुत है.

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  11. पैर धरती पर रहते हुए गगन को छूने की कोशिश होनी चाहिए

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