23.7.14

रंग कहाँ से लाऊँ

तेरे जीवन को बहलाने,
आखिर रंग कहाँ से लाऊँ ?
कैसे तेरा रूप सजाऊँ ?

नहीं सूझते विषय लुप्त हैं,
जागृत थे जो स्वप्नसुप्त हैं,
कैसे मन के भाव जगाऊँ,
आखिर रंग कहाँ से लाऊँ ।।१।।

बिखर गये जो सूत्रबद्ध थे,
अनुपस्थित हो गये शब्द वे,
कैसे तुझ पर छन्द बनाऊँ,
आखिर रंग कहाँ से लाऊँ ।।२।।

अस्थिर है मन भाग रहा है,
तुझ पर जो अनुराग रहा है,
कैसे फिर से उसे जगाऊँ,
आखिर रंग कहाँ से लाऊँ ।।३।।

जीवन में कुछ खुशियाँ लाने,
तुझको अपना हाल बताने,
तेरे पास कहाँ से आऊँ,
आखिर रंग कहाँ से लाऊँ ।।४।।

17 comments:

  1. वाह ..... बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं इस उलझन को....

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  2. वाह बहुत ही सुंदर गीत ....

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  3. bahut sundar chhnd racha hai aapne sundar geet , hardik badhai

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  4. वाह। क्या लयबद्ध गीत है !

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  5. उदासी का भाव लिए सुंदर गीत

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  6. वाह.. लाजवाब

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  7. प्रेम का सुन्‍दर गीत।

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  8. भावविभोर हूँ। कुछ जोड़ता चलूँ?

    प्रेम पगे दो सजल नयन हैं
    मन मेरा उन्मुक्त मगन है
    कैसे तुमसे नजर मिलाऊँ
    आखिर रंग कहाँ से लाऊँ

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  10. उनको ही समझाना होगा,
    मन को खूब मनाना होगा ,
    अवसादों को दूर भगाऊँ
    ऐसे रंग कहाँ से लाऊँ ?

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. यही तड़प जाने कितनों की
    यह दर्द जाने कितनों का.

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