2.7.14

कल्पना


उत्कर्षों को छूती इच्छा,
मात्र कल्पना का आच्छादन 
निष्कर्षों से शून्य धरातल,
जाने तुमसे क्या पाना है ?

बन्द नयन में मेरे तेरी,
छिपी हुयी है रूप-धरोहर 
मन में तेरा पूरा चित्रण,
सच में लेकिन क्या जाना है ?

कभी बैठ एकान्त जगह,
तू हँसती हैमैं सुनता हूँ 
इन स्वप्नों के अर्धसत्य को,
कब तक यूँ ही झुठलाना है ?

अथक कल्पनाअतुल समन्वय,
मन भावों की कोमल रचना 
इस प्रतिमा में लेकिन जाने,
कैसा रंग चढ़ाना है ?

25 comments:

  1. कल्पनाशील मन क्या क्या रचे ....? यथार्थ हर बार सामने आ जाता है

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  2. कल्पना के सच को चित्रित करती कविता. सुंदर रचना.

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  3. आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 03/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
    आप भी इस हलचल में अवश्य आना...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर...

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  4. Kya baat hai kya baat hai ...meri bhi saheli hai Kalpana lekin aapki Kalpana kuch khaas hai :-)

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  5. अथक कल्पना व अतुल समन्वय वाले मन भावों की कोमल रचना उतनी ही सुंदर भी है।

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  6. उत्कर्षों को छूती इच्छा,
    मात्र कल्पना का आच्छादन ।
    निष्कर्षों से शून्य धरातल,
    जाने तुमसे क्या पाना है ?
    ....वाह...लाज़वाब अहसास...बहुत सुन्दर

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  7. अथक कल्पना, अतुल समन्वय,
    मन भावों की कोमल रचना ।
    इस प्रतिमा में लेकिन ,
    कैसा रंग चढ़ाना है ?
    .......... रंगों की खोज में कई बार मन भी रंग जाता है तो बरबस ये प्रश्‍न उभर आता है अंतस में

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  8. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन पूँजी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  9. सुन्दर शब्दों का संयोजन
    संयोजन में अद्‍भुत लय भी
    लय में गुंफित भाव अनोखे
    इस कविता में सब पाना है।

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  10. एक अलौकिक सौन्दर्य और माधुर्य है कविता में. राग झिंझोटी की तरह लयबद्ध।

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  11. बहुत सुन्दर.....

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  12. कल्पना अति प्रिय,प्यारी,सुमधुर।
    छुते ही उड़ जाती है,परियों की भांति।
    अति सुन्दर प्रस्तुति।

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  13. अथक कल्पना, अतुल समन्वय,
    मन भावों की कोमल रचना ।
    इस प्रतिमा में लेकिन जाने,
    कैसा रंग चढ़ाना है ..
    प्रेम के रंगों के सिवा और कोई रंग स्थाई कहाँ होते हैं ... भावपूर्ण रचना ...

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  15. अति सुंदर प्रस्तुति ,,,,

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  16. सुन्दर लालित्यमय कविता ...हाँ कुछ शब्द-युग्मों का समन्वय नहीं बैठता....

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  17. Is komal rachana par kewal prem ka rang chadhana hai

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  18. कल्पना की अतिशयता, यथार्थ से दूर होती है।

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  19. बहुत बढ़िया रचना

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  20. http://www.parikalpnaa.com/2014/07/blog-post_3274.html

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  21. सुन्‍दरता के अाकर्षण में अर्धसत्‍य ही है। यही विचलित करता है।

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  22. सुंदर रचना...

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  23. अतुल समन्वय

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  24. निष्कर्षों से शून्य धरातल,
    जाने तुमसे क्या पाना है ?
    ..लाज़वाब ...बहुत सुन्दर

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