3.8.19

दुख सहना पर पीर पिरोना

बाहर तीखे तीर चल रहे,
सीना ताने वीर चल रहे,
प्यादे हो, हद में ही रहना,
दोनों ओर वजीर चल रहे।

मन अतरंगी ख्वाब न पालो,
पहले अपने होश सम्हालो,
क्यों समझो शतरंजी चौखट,
बचपन है, आनन्द मना लो।

आड़ी, तिरछी, फिरकी चालें,
कुछ बोलें और कुछ कर डालें,
अन्तस्थल तक बिंध जाओगे,
तन पर कितनी ढाल सजा लें।

घात और प्रतिघात प्रदर्शित,
छद्म धरे संहारक चर्चित,
हेतु विजय छलकृत पोषित पथ,
गुण के शिष्टाचार समर्पित।

शत युद्धस्थल और प्रहार शत,
मन अन्तरतम बार बार हत,
पर जिजीविषा अजब विकट है,
जीवट जूझी, सब प्रकार रत,

धैर्य धरो कल खेल ढलेगा,
गिरते मोहरे, ढेर सजेगा,
होंगे सारे छद्म तिरोहित,
अंतिम चालें काल चलेगा।

माना सहज नहीं बीता है,
माना अभी बहुत रीता है,
नहीं गर्भ से प्राप्त रहा कुछ,
अनुभव, देख देख सीखा है।

नहीं बने जो चाहे होना,
किञ्चित मन उत्साह खोना,
हो प्रतिकूल सकल जग फिर भी,
दुख सहना पर पीर पिरोना।

10 comments:

  1. शतप्रतिशत उत्कृष्ट सर

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  2. आपकी लिखी रचना सोमवार. 20 सितंबर 2021 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  3. नहीं बने जो चाहे होना,
    किञ्चित मन उत्साह न खोना,
    हो प्रतिकूल सकल जग फिर भी,
    दुख सहना पर पीर पिरोना।
    सकारात्मक भाव लिए अत्यंत सुंदर सृजन सर।।
    सादर।

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  4. बहुत बढ़िया....

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  5. आत्मबल को संग्रहित करवाती अत्यन्त उत्तम कृति ।

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  6. चल मन निराशा से आशा की ओर !!

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  7. धैर्य धरो कल खेल ढलेगा,
    गिरते मोहरे, ढेर सजेगा,
    होंगे सारे छद्म तिरोहित,
    अंतिम चालें काल चलेगा।
    वाह…!!

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  8. हीं बने जो चाहे होना,
    किञ्चित मन उत्साह न खोना,
    हो प्रतिकूल सकल जग फिर भी,
    दुख सहना पर पीर पिरोना।

    बहुत ही सुन्दर सकारात्मक संदेश देती लाजवाब रचना
    वाह!!!

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