शत पग, रत पग, हत पग जीवन,
धर बल, अगले पल चल जीवन।
रथ रहे रुके, पथ रहे बद्ध,
प्रारम्भ, अन्त से दूर मध्य,
सब जल स्वाहा, बस धूम्र लब्ध,
निश्चेष्ट सहे, क्या करे मनन,
धर बल, अगले पल चल जीवन।
बनकर पसरा वह बली स्वप्न,
चुप चर्म चढ़ा, बन गया मर्म,
सब सुख अवलम्बन गढ़े छद्म,
मन मुक्ति चहे, पोषित बंधन,
धर बल, अगले पल चल जीवन।
ऋण रहा पूर्ण, हर घट रीता,
श्रमसाध्य सकल, उपक्रम बीता,
मन सतत प्रश्न, तब क्या जीता,
भय भ्रमित अनन्तर उत्पीड़न,
धर बल, अगले पल चल जीवन।
जो है प्रवर्त, क्षण प्राप्त वही,
तन मन गतिमयता व्याप्त अभी,
गति ऊर्ध्व अधो अनुपात सधी,
आगत श्वासों का आलम्बन,
धर बल, अगले पल चल जीवन।