10.8.19

कुछ नया कर

कल किया था, आज भी वो,
वही मति, अनुमति वही हो,
नित्य चलना उसी पथ पर,
आस फिर भी, कुछ बदलकर,
जीवनी आकृति गढ़ेगी,
कदाचित आगे बढ़ेगी,
किन्तु ठहरी और बहरी,
अनमनी अटकी दुपहरी,
उदय हो सो गया दिनकर,
एक अर्जित अंक गिनकर,
व्यर्थ किंकर्तव्य बीता,
शेष है मन क्षुब्ध रीता,
अब तो अपने पर दया कर,
कुछ नया कर।

गर्व की चर्चा कभी हो,
क्यों विगत की दुंदभी को,
बजाकर मनमुग्ध ऐंठे,
कर्म अपने छोड़ बैठे,
कुछ करें समकक्ष बढ़कर,
कुछ नहीं एक पथ पकड़कर,
तनिक स्थिरता तो लायें,
काल में हम ढह न जायें,
बिसारी छोड़ी विरासत,
नहीं कोई ध्येय अनुरत,
दिशा भ्रमवत, अधो गतिमय,
राह भटकी, विपथ-मतिमय,
पितर तर्पित हों, दया कर,
कुछ नया कर।

सृष्टि में स्थान अपना,
और सबके साथ चलना,
प्राप्ति का उद्योग वांछित,
सामने उत्थान लक्षित,
हो कठिन उलझी परिस्थिति,
रुद्ध है आरोह में गति,
प्रश्न क्षमता पर नहीं हो,
काल संग बढ़ते नहीं जो,
लक्ष्य कैसे भूल जायें,
तनिक ठहरें फिर जगायें,
पुनः स्वर विश्वास के हम,
डटे रहने से हटे तम,
सुप्त स्वप्नों पर दया कर,
कुछ नया कर।

स्वस्थ तन में स्वस्थ मन हो,
और श्रेयस पर मनन हो,
बढ़ें स्नेही सकल जन,
खुलें मन परिवार आँगन,
देश और परिवेश सुखमय,
रहे जो भी शेष, सुखमय,
उदय अपना, ध्यान जग का,
अभीप्सित उत्थान सबका,
प्रयत्नों की आस महती,
किन्तु चेष्टा नहीं दिखती,
दिन कहीं कल सा न बीते,
चाह आगत विगत जीते,
हे प्रखरमय, अब दया कर,
कुछ नया कर।

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