30.7.14

हमको तो तुम भा जाते हो

जीवन-जल को वाष्प बना कर,
बादल बन कर छा जाते हो 
रहो कहीं भी छिपे छिपे से,
हमको तो तुम भा जाते हो ।।

अस्तित्वों के युद्ध कभीनिर्मम होकर हमने जीते थे,
हृदय-कक्ष फिर भी जीवन केआत्म-दग्ध सूनेरीते थे 
सुप्त हृदय मेंसुख तरंग कास्पन्दन तुम दे जाते हो 
रहो कहीं भी छिपे छिपे सेहमको तो तुम भा जाते हो ।।१।।

समय कहाँ थाजीवन का जोलुप्त हुआ सौन्दर्य बढ़ाते,
कैसे शुष्कित सम्बन्धों सेजीवन में सुख लेकर आते 
त्यक्तप्रतीक्षित फुलवारी मेंसुन्दर पुष्प खिला जाते हो 
रहो कहीं भी छिपे छिपे सेहमको तो तुम भा जाते हो ।।२।।

अभी प्राप्त जो धनगरिमा हैकहाँ हमारे साथ रहेगी,
आशाआें की डोर कहाँ तकस्वार्थ-पूर्ति के वार सहेगी 
जहाँ साथ सब छोड़ गयेतुम चित-परिचित से  जाते हो 
रहो कहीं भी छिपे छिपे सेहमको तो तुम भा जाते हो ।।३।।

22 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 31/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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  2. जीवन-जल को वाष्प बना कर,
    बादल बन कर छा जाते हो ।
    रहो कहीं भी छिपे छिपे से,
    हमको तो तुम भा जाते हो ।।
    अनुपम भाव संयोजन ....

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  3. जहाँ साथ सब छोड़ गए ,तुम चित-परिचित से आ जाते हो।
    हम को तुम भा जाते हो।
    सुन्दर प्रस्तुती ।

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  4. क्‍या बात है प्रवीण जी। यह कविता जीवन-दर्शन की गहनता को सीधे स्‍पर्श कर रही है। गुनगुनाते हुए पढ़ते समय यह खटका लगा...........समय कहाँ था, जीवन का (के स्‍थान पर) समय कहां था जीवन में (होना चाहिए)।

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  6. समय कहाँ था, जीवन का जो, लुप्त हुआ सौन्दर्य बढ़ाते,
    कैसे शुष्कित सम्बन्धों से, जीवन में सुख लेकर आते ।
    त्यक्त, प्रतीक्षित फुलवारी में, सुन्दर पुष्प खिला जाते हो ।
    रहो कहीं भी छिपे छिपे से, हमको तो तुम भा जाते हो ।।

    बहुत सुंदर........

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  7. अभी प्राप्त जो धन, गरिमा है, कहाँ हमारे साथ रहेगी,
    आशाआें की डोर कहाँ तक, स्वार्थ-पूर्ति के वार सहेगी ।
    जहाँ साथ सब छोड़ गये, तुम चित-परिचित से आ जाते हो ।
    ...वाह...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन...बहुत सुन्दर

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  8. बहुत ही सुंदर रचना

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  9. मन को भाति कविता. सुंदर रचना.

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  10. दर्शन के साथ लयबद्धता भी।

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  11. समय कहाँ था, जीवन का जो, लुप्त हुआ सौन्दर्य बढ़ाते,
    कैसे शुष्कित सम्बन्धों से, जीवन में सुख लेकर आते ।
    त्यक्त, प्रतीक्षित फुलवारी में, सुन्दर पुष्प खिला जाते हो ।
    रहो कहीं भी छिपे छिपे से, हमको तो तुम भा जाते हो ।।२।।
    एकदम बढ़िया

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  12. बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    @मुकेश के जन्मदिन पर.

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  13. हमको तुम भा जाते हो---
    प्रकृति का साथ जीवन को नव-जीवन देता है.

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  14. Anonymous1/8/14 07:55

    bahut badhia sir....

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  15. बहुत सुंदर........

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  16. अभी प्राप्त जो धन, गरिमा है, कहाँ हमारे साथ रहेगी,
    आशाआें की डोर कहाँ तक, स्वार्थ-पूर्ति के वार सहेगी ।
    जहाँ साथ सब छोड़ गये, तुम चित-परिचित से आ जाते हो ।
    रहो कहीं भी छिपे छिपे से, हमको तो तुम भा जाते हो ।।३।।
    लाजवाब अभिव्यक्ति!

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  17. वाह... बहुत सुन्दर

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  18. बढिया कविता है . अब तो आप कवि हो गये परी तरह :)

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  19. aahaa... kya baat h sir ji. :)

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  20. जीवन की सच्चाई !

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  21. Waah!! So beautiful !!

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