24.5.14

हँस लेते सब

सुखी पलों की आस लगाये,
कुछ लोगों के संग बिताये,
माह, दिवस बिन आडम्बर के,
प्राय ही कष्टों से लड़ के,
बिन प्रयास बढ़ जाते थे पग,
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।१।।

किन्तु लगा सब हुआ निरर्थक,
श्रम निष्फल, देखें हैं अब तक,
दुखी दुखी चेहरे मुरझाये,
जाने कितना बोझ उठाये,
मानो पीड़ा बरसाता नभ ।
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।२।।

कुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
और बहुत कुछ करने का मन,
चलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
चुभते काँटों को काटेंगे,
सुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।३।।

23 comments:

  1. तनाव भरी दुनिया में अब हंसी बची कहाँ
    स्वर्ग वह जगह हंसी मिल जाये जहाँ
    सब अपनी अपनी संचित खुशियाँ के साथ जी रहे
    रोज रोज हम सभी ग़मों के आंसू पी रहे
    काश कोई तो मसीहा आये
    जो दिखावे की ही सही लबों पर हंसी चिपका जाये

    ReplyDelete
  2. हँसी के लिए एक अंतरा मेरी और से-

    अन्ना के संग ठानी रार
    बेदी से भी की तकरार
    aap बनाया फेरा झाड़ू
    बने जबरिया आज तिहाड़ू
    अजब गजब के करते करतब
    चाह अकेली, हँस लेते सब ।।३।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैं बहुत ज़ोर - ज़ोर से हँस रही हूँ । वाकई सिध्दार्थ ने सब को हँसा दिया ।

      Delete
  3. इसी दुविधा को जी रहे हैं हम सब.....

    ReplyDelete
  4. विवशता : सुंदर अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  6. एवरी बडी सेज़ आई एम फाइन...मुस्कराते रहिये...अमूमन हम वो नहीं कर पाते जो दिल से करना चाहते हैं...इसलिए खुश रहना ज़रूरी है...हर हाल में...

    ReplyDelete
  7. वैसे प्रवीण जी ! ठोकर खाने की स्वतंत्रता हम सब को है ।

    ReplyDelete
  8. स्वयं खुश रहें, दुनिया खुशहाल लगेगी।

    ReplyDelete
  9. चाह अकेली हंस लेते सब। कौन मित्रवत हो हंसेगा कब।

    ReplyDelete
  10. ''कुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
    और बहुत कुछ करने का मन'
    बहुत खूब अभिव्यक्ति.
    कई लोगों के मन की व्यथा कह गयी यह कविता!

    ReplyDelete
  11. बहुत खुब प्रवीण भाई।

    ReplyDelete
  12. कुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
    और बहुत कुछ करने का मन,
    चलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
    चुभते काँटों को काटेंगे,
    सुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
    चाह अकेली, हँस लेते सब ।।३।।
    BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI .BADHAI

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर......

    ReplyDelete
  14. चलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
    चुभते काँटों को काटेंगे,

    मंगलकामनाएं आपको !

    ReplyDelete
  15. सुन्दर सी अभिलाषा ,पर बहुत कुछ किया जाना अभी शेष है ।

    ReplyDelete
  16. सुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
    चाह अकेली, हँस लेते सब ।।
    नेक चाहत है ! लेकिन मंज़िल अभी दूर है !

    ReplyDelete
  17. नेक चाहत ही, जीने की कला है।

    ReplyDelete
  18. फूलों के साथ कांटे ना हों तो फूलों को की पहचान ही खत्म हो जाएगी.
    जीवन दो किनारों के बीच धारा है---बहते रहिये,चलते रहिये

    ReplyDelete
  19. Bahut sundar kavita ! :)

    ReplyDelete
  20. काँटों को काटने की चाह.… वाह.

    ReplyDelete