5.1.13

कांजी हाउस - गाड़ियों का भी

बंगलौर में कई बार सड़क से जाते समय देखता हूँ कि एक क्रेनयुक्त वाहन खड़ा रहता है जो ठीक से पार्क न किये हुये दुपहिया वाहनों को लादता है और कहीं जाकर छोड़ आता है। संभवतः गाड़ियों का भी कोई कांजी हाउस होता होगा, जो आवारा गाड़ियों को रखने के काम आता होगा।

अब बंगलौर में इतने वाहन हैं कि घरों में उन्हें खड़े करने का स्थान ही नहीं है, हर पाँच घर में एक चौपहिया। यदि सारी गाड़ियों का क्षेत्रफल निकाला जाये और उसे सड़कों के क्षेत्रफल से घटा दिया जाये तो चलने के लिये बहुत कम स्थान ही बचेगा। प्रतिदिन 7000 वाहनों के पंजीकरण के बाद वह दिन शीघ्र ही आयेगा जब सारी सड़कों का उपयोग केवल वाहनों की पार्किंग के लिये किया जायेगा, तब किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये समय पहले से ही आवंटित कराना पड़़ेगा, लम्बी लम्बी प्रतीक्षा सूचियाँ बनेगी। अपने वाहन में एक बार यात्रा कर लेना लॉटरी लगने जैसा हुआ करेगा, मंत्रीगण संस्तुतियाँ किया करेंगे।

ऐसा नहीं है कि यहाँ पर लोगों को भान नहीं है, पर क्या करें हर किसी के पास वाहन है और हर किसी को उसको उपयोग करने का मन भी होता है, कभी दिखावे के लिये, कभी आवश्यकता के लिये। किसी भी बाज़ार जाने पर गाड़ी की पार्किंग कर पाना एक विशेष उपलब्धि होती है। बाज़ार के चहल पहल के क्षेत्र में परिचालन बाधित न हो, इसके लिये पुलिस ने उन क्षेत्रों में पार्किंग प्रतिबंधित कर रखी है। लोगों का मन फिर भी नहीं मानता है, उन्हें लगता है कि जब बड़े बड़े अपराधों में पुलिस उलझी हुयी है, अधिक गम्भीर आर्थिक संभावनाओं में पुलिस उलझी हुयी है, तो छोटा सा और कुछ समय के लिये किया गया नियम उल्लंघन भला कहाँ से पुलिस की दृष्टि में आ पायेगा?

परंपरागत कारणों से भले ही पुलिस विशिष्टजनों को छोड़ दे पर आमजनों से उसकी पैनी दृष्टि कभी नहीं हटती है। आप छोटा सा नियम उल्लंघन कर के तो देखिये, गिद्ध जितनी दूरी से देखकर कोई न कोई आपको बताने आ जायेगा कि आपने क्या अपराध किया है और किन रूपों में वह विस्फोटित होता हुआ गम्भीर अपराध बन सकता है। आप तब समर्पण के सिवाय कुछ और सोच भी नहीं सकते हैं। पुलिस जनों की सामान्य प्रवृत्तियों को छोड़ भी दिया जाये तब भी आपका बचना असंभव है। आप किसी एक सुनसान पड़े चौराहे पर समय बचाने के लिये लाल बत्ती पर निकल जाते हैं, घर में ५ मिनट पहले पहुँच कर दो तीन दिनों में इस घटना के बारे में भूल भी जाते हैं, पर सहसा आपके घर में दण्ड भरने का नोटिस आ जाता है, नियम उल्लंघन के चित्र के सहित। आपकी चतुराई धरी की धरी रह जाती है, आप आगे से ऐसा न करने का वचन कर डालते हैं, अगले अवसर तक।

कई लोग यातायात पुलिस की अन्तर्यामी दृष्टि से सुधर चुके हैं पर सबको इसका स्वाद कहाँ मिला है अभी तक। सो नियम उल्लंघन होते रहते हैं और आँखमिचौनी का खेल चलता रहता है। एक मित्र ने जब इस भेद की व्याख्या की तब कहीं जाकर सब समझ में आया। जैसे संजय की दृष्टि पाकर ही धृतराष्ट्र सब जान पाये थे, उसी प्रकार तकनीक के सहारे बंगलौर की यातायात पुलिस नगर पर अपना नियन्त्रण गाँठे हुये है। सारे नगर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, लगभग हर चौराहों पर, देखने में बिजली के लैम्पों की तरह ही दिखते हैं। नियन्त्रणकक्ष में बैठे सतर्क निरीक्षक चित्र को ज़ूम करके गाड़ी का नम्बर नोट कर लेते हैं, डाटाबेस से गाड़ी से सम्बन्धित तथ्य और मालिक का पता एकत्र कर चालान बन जाता है और दोषी चालक को भेज दिया जाता है, चित्र, स्थान और समय के सहित। आप विवश और हतप्रभ हो कहीं दुबारा वह न करने का प्रण कर लेते हैं।

इस तरह जहाँ एक ओर वाहनों पर दृष्टि बनी रहती है, वहीं दूसरी ओर कार्य न करने वाले पुलिसवालों पर भी नियन्त्रण रहता है। सतर्क और पर्याप्त मात्रा में उपस्थित यातायात पुलिसबल की संख्या इसी दिव्य दृष्टि का परिणाम है।

संभवतः यही तकनीकी और प्रशासनिक कारण रहा होगा कि क्रेनयुक्त एक वाहन सदा ही आवारा वाहनों को उनके कांजीहाउस में पहुँचाने के लिये सदा कार्यरत सा दिख जाता है। ये कार्य ठेके पर दिया गया है, एक निश्चित पारिश्रमिक के अतिरिक्त एकत्र किये हुये वाहनों की संख्या पर भी कोई न कोई आर्थिक प्रलोभन रखा गया होगा। सर्वप्रथम तो अधिक धन कमा लेने की सहज प्रवृत्ति उन्हें अतिसजग और अतिउत्साही बनाये रखती है। यदि किसी स्थान पर अनाधिकृत वाहन खड़ा है और वहीं खड़ी क्रेनयुक्त अपना कार्य नहीं कर रही है तो नियन्त्रण कक्ष से क्रोध के उद्गार फूटने लगते हैं। यही नहीं, जहाँ पर क्रेनयुक्त वाहन नहीं भी है, निकटस्थ वाहन को वहाँ पहुँचने के निर्देश मिल जाते हैं। यदि इन सबसे दोषी वाहन बच भी गया तो भी लिये गये चित्र के आधार पर आपके घर में चालान पहुँचना निश्चित है।

आवारा वाहन सशंकित हैं, पता नहीं कब वे भी कांजी हाउस पहुँच जायें और उनके मालिक को छुड़ाने आना पड़े। सुविधा छूटे, समय व्यर्थ हो और धन व्यय हो, सो अलग। नागरिकों की समस्या बड़ी विचित्र हो चली है, जहाँ एक ओर नये नये वाहनों का संख्या यहाँ के यातायात और पार्किंग स्थलों का दम घोटे हुये है, वहीं दूसरी ओर यातायात पुलिस की अन्तर्यामी दृष्टि नियमों को मानने को बाध्य किये हुये है। अब या तो वाहन का उपयोग न कर बस का उपयोग करे या वाहन कहीं दूर खड़ाकर पैदल चलकर उस स्थान जाये या अपनी समस्याओं का स्थानीय निदान ढूँढ़ें।

पता नहीं किसकी गति अधिक है, साधनों की या सुविधाओं की या व्यवस्थाओं की। बंगलौर में वाहन के साधन हैं, यथानुरूप पार्किंग की सुविधा नहीं है और व्यवस्था इतनी सुदृढ़ है कि आप नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। वाहन आवारा घोषित हुये जा रहे हैं, कांजीहाउस भी तैयार हो रहे हैं उन आवारा वाहनों के लिये। पता नहीं किसका अपमूल्यन है, मानवीय प्रकृति का या वैश्विक प्रकृति का। कांजीहाउस, क्या सोचने को विवश नहीं करते आपको।

51 comments:

  1. भविष्य की चिंता को समेटता आलेख |निःसंदेह भविष्य स्थिति बहुत ही भयावह हो सकती है |

    ReplyDelete
  2. दूसरे विकसित देशों के माडल अपनाने होंगें! चीन के कई शहरों में आप वाहन लेकर शहर के भीतर आ ही नहीं सकते!
    गाड़ियों के कब्रिस्तान के बारे में सुना था कांजी हाउस विचार और नामकरण पहली बार सुन रहा हूँ

    ReplyDelete
  3. सडकों पर वाहनों की बढती गिनती हो या पार्किंग के इंतजामों की कमी , अफ़सोस कि हमारे यहाँ कुछ भी भावी समस्याओं को देखते हुए नहीं हो रहा है । आपकी चिंता जायज है , आजकल देश के हर शहर का यही हाल है

    ReplyDelete
  4. पार्किंग इंतिजाम नाकाफी हैं, और लोगों की आदतें भी मानने वाली नहीं। सुदृढ़ व सुनियोजित योजना चाहिए! बढती गिनती को समेटना तो संभव नहीं।

    ReplyDelete
  5. अपमूल्यन के परिपेक्ष्य में सोचने को विवश करता मुद्दा ..

    ReplyDelete
  6. सही कहें भैया....
    वैसे वो क्रेनयुक्त वाहन से हमारे एक मित्र की बाईक दो बार उठाई जा चुकी है और बी.इ.एल रोड पर तो उसने अपना परमानेंट ठिकाना बना लिया है :)

    ReplyDelete
  7. वर्तमान और भविष्य की सही तस्वीर पेश की है आपने ..और व्यवस्था के मायने भी ...!

    ReplyDelete
  8. कई शहरों मे तो बुरे हालात होने भी लगे हैं...

    ReplyDelete
  9. नगरों मे स्थान तो जितना है उतना ही रहेगा .आबादी बढ़ती जायेगी ,गाड़ियाँ बढ़ ही रही हैं.ज़रूरत है घरों में गैरेज हो ,बाज़ारों में पर्किंग-स्थान हो (सड़कों पर एक्सीडेंट होते रहें,जाम लगे रहें).देखें आगे-आगे और क्या होता है !

    ReplyDelete
  10. बंगलौर की यातायात पुलिस नगर पर अपना नियन्त्रण गाँठे हुये है। सारे नगर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं,आपके ईस लेख ने मुझे सावधान कर दिया है।गलतिय़ाँ मुझसे बहुत बार हो चुकी है,पर अब नही ।आपका बहुत-बहुत आभार साथ ही कोटि-कोटि नमन।

    ReplyDelete
  11. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  12. यहाँ पुणे में भी देखने को मिलता है ....

    ReplyDelete
  13. सही चिंतन ..शुभकामनायें आवारा वाहनों को

    ReplyDelete
  14. पता नहीं किसकी गति अधिक है, साधनों की या सुविधाओं की या व्यवस्थाओं की ... विचारणीय प्रस्‍तुति
    हमेशा की तरह एक और बेहतरीन पोस्‍ट

    ReplyDelete
  15. वाहन के साधन हैं, यथानुरूप पार्किंग की सुविधा नहीं है ...यह सभी जगह का हाल है....
    ....और व्यवस्था इतनी सुदृढ़ है कि आप नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं....तो शेष जगह कठोर नियम भी नहीं हैं......आपका लेख चिन्तन योग्य है....

    ReplyDelete
  16. आवारा गाड़ियों के साथ साथ आवारा गर्दों का भी कांजी हाउस होना चाहिये ।

    एक बात बताना चाहूँगा 'कांजी हाउस' का सही शब्द 'KINE HOUSE' है ,COW का प्लूरल KINE है । कृपया इसे अन्यथा मत लीजिएगा । बस यूं ही शेयर कर लिया ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हमारा भी ज्ञान बढ़ गया, सोचा था इस शब्द की उत्तपत्ति के बारे में, कुछ छोर नहीं पकड़ाया था। काइन जी से ही यह नाम आया होगा। जी आदरसूचक है।

      Delete
  17. टिप्पणियों का कांजी हाउस 'स्पैम बाक्स ' कहलाता है ।

    ReplyDelete
  18. असली वाली तो गई 'कांजी हाउस ' में ...।

    ReplyDelete
  19. पता नहीं किसकी गति अधिक है, साधनों की या सुविधाओं की या व्यवस्थाओं की। बंगलौर में वाहन यातायात के साधन हैं, यथानुरूप पार्किंग की सुविधा नहीं है और व्यवस्था इतनी सुदृढ़ है कि आप नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। वाहन आवारा घोषित हुये जा रहे हैं, कांजीहाउस भी तैयार हो रहे हैं इन आवारा वाहनों के लिये। यह किसका अवमूल्यन है, मानवीय प्रवृत्ति का या वैश्विक प्रवृत्ति का। कांजीहाउस, क्या सोचने को विवश नहीं करते आपको?
    अन्तिम अनुच्‍छेद में बहुत कमियां हैं............इन्‍हें ठीक करने का कष्‍ट करें।

    ReplyDelete
  20. हर महानगर इन समस्याओं से जूझ रहा है

    ReplyDelete
  21. ये हालत हमने भी बैंग लूरू की देखी है जबकि सड़क के एक ही और कहीं कहीं पार्किंग रहती है .दिल्ली में तो कोलोनीज में गालीगलोंच और मल्ल युद्ध की भी रोज़ ही गुंजाइश रहती है किसी मेहमान के आने आने पर .

    ReplyDelete
  22. तकनीक का सही इस्तेमाल हो रहा है।

    ReplyDelete
  23. हम सब भी तो बंद हैं जीवन और पर्तिस्थितियों के कांजी हाउस में

    ReplyDelete
  24. विचारणीय प्रस्‍तुति,,निश्चिति रूप से एक दिन आयेगा जब वाहन चलाने के समय आवंटित कराना पडेगा...

    recent post: वह सुनयना थी,

    ReplyDelete
  25. ... महानगरों की सबसे बड़ी समस्या है यह ।

    ReplyDelete
  26. Mumbai is worst. In delhi due to presence of Politicians roads are good and metro rail work had been completed in rapid pace. For Mumbai no politician supports. There is no place. Phew!

    ReplyDelete
  27. यदि इसी तरह वाहन बढ़ते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब सड़कों पर वाहन ले जाने के लिए ठीक वैसे ही लाइन लगानी पड़ेगी जैसे देश के कई शहरों में ऑटो वाले सवारियां बिठाने के लिए लाइन लगाकर अपनी बारी का इंतजार करते है !

    ReplyDelete
  28. ज्यादातर तो पुलिस वालों के लिए यह धन उगाही का जरिया है।

    ReplyDelete
  29. सभी जगह यही हालात हैं. पर उपाय मुश्किल दिख रहा है आज तो.

    रामराम.

    ReplyDelete
  30. हमारी गाडी भी दो बार जा चुकी है कांजी-हाउस।

    ReplyDelete
  31. दिल्ली में भी हालात इतने ही बुरे हैं.

    ReplyDelete
  32. हर पांच घर में एक वाहन ! यहाँ तो हर घर में पांच वाहन हैं।
    वहां 7000, यहाँ 70 लाख वाहन पंजीकृत हैं। इसलिए पुलिस वाले भी हाथ खड़े कर देते हैं।
    दिल्ली जैसा गन्दा ट्रैफिक विश्व में शायद ही कहीं हो। फिर भी दिल्ली बस चल रही है।
    कब तक चलेगी , कह नहीं सकते।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, यहाँ प्रतिदिन ७००० वाहनों का पंजीकरण होता है। हाँ यातायात में अनुशासन हो।

      Delete
  33. सही कहा है आपने!!

    ReplyDelete
  34. अब तो हर शहर का यही हाल है ... जनता ओर पुलिस दोनों का काम ऐसे ही चलता है ...

    ReplyDelete
  35. ट्राफिक की चरमराती व्यवस्था अब पूरे देश की समस्या बन चुकी है क्या किया जा सकता है .....हम तो सिर्फ मत दे सकते हैं ।

    ReplyDelete
  36. ट्राफिक की चरमराती व्यवस्था अब पूरे देश की समस्या बन चुकी है क्या किया जा सकता है .....हम तो सिर्फ मत दे सकते हैं ।

    ReplyDelete
  37. सिंगापुर में इस समस्या से निबटने के लिए गाड़ी खरीदने पर इतना भारी भरकम टैक्स लिया जाता है कि लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें। वैसे चीन में तो साइकिलें भी काफी तादाद में चलती हैं। भविष्य में भारत में भी ऐसे दृश्य देखने को मिल सकते हैं।

    ReplyDelete
  38. लगता है बेंगलुरु न्युयोर्क बनने लगा है जहां लोग अपनी कारों में बाहर निकलने में सकुचाते हैं .पार्किंग एक नागर समस्या है जो शहरों के बे तहाशा

    फैलाव के बाद भी बढती गई है .एक घर में मध्यम वर्गीय कई कई वाहन हैं पेट्रोल डीज़ल चालित .जन परिवहन को सशक्त करके कारों को शुरू में सीमित फिर बाधित करना होगा .आर्थिक व्यवस्था भी सुधरेगी .

    ReplyDelete
  39. हमारे शहर का ट्रैफिक तो बहुत सुन्दर है, दराल साहब से असहमत :)

    ReplyDelete
  40. हमारे शहर का ट्रैफिक तो बहुत सुन्दर है, दराल साहब से असहमत :)

    ReplyDelete
  41. imagine the day when we'll exhaust all diesel n petrol..
    what will happen to all these automobiles :O

    ReplyDelete

  42. कारों की पूलइंग करके कुछ लोड कम किया जा सकता है .उपलब्ध स्पेस का बहुलांश भी ये निजी वाहन ही ले रहें हैं जिनमें आदमी कम स्वान ज्यादा मटरगश्ती करतें हैं .एक कार में एक आदमी क्यों

    चलता है .बस स्टाप से सवारी उठाए ,नागर प्रशासन इस प्रबंध को वैधानिकता दे .आप अपनी मंजिल तक ही जाइये वाहन तक जो आये उससे वाजिब दाम ले लें .नाम भर के लिए ही सही एक स्वस्थ

    परम्परा आगे बढे .परिवार के साथ जब जाएँ सालिम जाएँ वह आपका निजी मामला है .अकेला ड्राइवर/वाहन चालक क्यों दिखे .समस्या पूर शहर की है शहर को ही मिलजुल के सुलझानी होगी .

    ReplyDelete
  43. दिल्ली में तो एक घर में ३-४ गाड़ियाँ होना आम बात है..कहीं भी जाओ वहीं पार्किंग की समस्या..सार्वजनिक वाहनों की जो स्तिथि है उसमें यात्रा करने की सोच भी नहीं सकते..

    ReplyDelete
  44. पार्किंग की समस्या हर जगह है ..गाडी गयी तो बहुत मश्कत करने पड़ती हैं ..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete
  45. शहर बड़े हो या छोटे ...पार्किंग की समस्या हर जगह है

    ReplyDelete
  46. किसी शहर की, यातायात नियन्‍त्रण की पुलिस व्‍यवस्‍था को इतनी रोचक शैली में पहली बार जाना-समझा। जानकारी तो बढी ही, आनन्‍द भी आया।

    ReplyDelete
  47. हमरे यहाँ तो व्यवस्था ही इतनी सुदृढ़ नही है.....बाकि तो समस्या है ही ..सब जगह !
    दिल्ली में काज़ी हाउस जगह का नाम तो बचपन से सुनते आ रहें हैं ...पर मतलब आज पता चला ...
    आभार !

    ReplyDelete
  48. कम से कम व्यवस्था तो सुदृढ़ है .... अब तो एक घर में ही इतने वाहन हैं हैं कि पार्किंग की दिक्कत हो जाती है ।

    ReplyDelete
  49. वाहनों का कांजी हाउस !!! बडा रोचक लगा और विचारणीय भी ।

    ReplyDelete