2.1.13

दोष नहीं दे सकता कल को

क्षुब्ध मनस का भार सहन है, दोष नहीं दे सकता कल को,
गहरे जल के तल में बैठा, देख रहा हूँ बहते जल को।

क्या आशायें, क्या इच्छायें, क्या जीवन की अभिलाषायें,
अनुचित, उचित विचार निरन्तर, रच क्यों डाली परिभाषायें,
सबने जकड़ जकड़ कर बाँधा, नहीं जिलाया व्यक्ति विकल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।

यह सच है, जिसने जीवन को देखा, परखा, समझा है,
आहुति बनकर स्वयं जलाया, यज्ञ उद्गमित रचना है,
कैसे नहीं निर्णयों में वह लायेगा व्यक्तित्व सकल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।

मैने जीवन की गति को अब स्थिर मन से देखा है,
महाचित्र पर खिंचती जाती, कर्मक्षेत्र की रेखा है,
ये रेखायें सतत बनातीं, योगदान फिर क्यों निष्फल हो,
दोष नहीं दे सकता कल को।

मानक है जीवन जीने के, लगी यन्त्रवत सकल व्यवस्था,
सुख, साधन की होड़ लगी है, कहाँ पता है किसे समय का,
बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।

है विवेचना व्यर्थ, तर्क सब, कल की कल पर छोड़ बिसारी,
चलो सजायें वर्तमान में, एक भविष्य की सूरत न्यारी,
बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।

47 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 05/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. सुन्दर कविता। आशा के साथ कल का स्वागत हो।

    ReplyDelete
  3. शानदार अभिव्यक्ति

    ReplyDelete

  4. 'कल' का स्वागत हो कि सभी का आगत मंगलमय हो !

    ReplyDelete
  5. बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,

    Alexander the great, also went vacated hand! In rate race, we forget about what is invaluable!

    ReplyDelete
  6. ... समय का दोष कभी नहीं होता ।

    ReplyDelete
  7. कल का क्या दोष? समय प्रवृत्ति-निवृत्ति का अनोखा अभ्यास कराता चलता है। जीवन स्थिरतः देखने से अपनी भंगिमायें स्वतः ही स्पष्ट करता चलता है।

    ReplyDelete
  8. कर्मण्ये वाधिकारास्ते मा फ़लेषु कदाचनः !

    ReplyDelete
  9. दोष नहीं दे सकता कल को ....
    कल था जो बीत गया , अब वर्तमान ही सब है !
    चरैवेति चरैवेति !

    ReplyDelete
  10. अंधियारे को क्योंकर कोश रहें हम
    जब खुद ही अन्धकारमय बना रहे
    दूसरों को रह दिखने वाले हम
    खुद ही तिमिर में भटक जा रहें

    ReplyDelete
  11. कल यदि दोषी है तो आज में क्या परेशानी है ! जितने कैनवस,उतने चेहरे,उतने भाव,उतने तर्क ............ दोष कल का क्या है ???

    ReplyDelete
  12. सत्य है, कल को दोष देने का कोई अर्थ नहीं होता, कल से बस सबक ली जा सकती है व सुंदर व सार्थक वर्तमान का निर्माण ही मनुजता की कसौटी व अपेक्षा है।नये वर्ष का आगाज इतनी सुंदर व सार्थक रचना के साथ करने हेतु हार्दिक आभार व बधाई। पुनः सस्नेह नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  13. There's no point in doing that.... aptly expressed in your words !!
    Wishing u a very happy new year :)

    ReplyDelete
  14. एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह- का स्‍मरण हो गया।

    ReplyDelete
  15. क्षुब्ध मानस को आशान्वित करती सुन्दर काव्य-कृति ..

    ReplyDelete
  16. है विवेचना व्यर्थ, तर्क सब, कल की कल पर छोड़ बिसारी,
    चलो सजायें वर्तमान में, एक भविष्य की सूरत न्यारी,
    बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को ..

    ऐसा हो जाना साधु हो जाने के बराबर है ... बहुत ही सुब्दर प्रवाह मय रचना ...
    २०१३ आपको शुभ हो ...

    ReplyDelete
  17. भविष्य की जो सूरत संवारी है वो साकार हो,वर्तमान बने,
    क्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है.
    नया साल आपको शुभ और मंगलमय हो.

    ReplyDelete
  18. बहुत ही उम्दा कविता सर |

    ReplyDelete
  19. नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
    आपकी यह पोस्ट 3-1-2013 को चर्चा मंच पर चर्चा का विषय है
    कृपया पधारें

    ReplyDelete
  20. अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  21. वर्तमान में यह सुद्रढ़ करना आवश्यक कि कल शर्मिंदा ना होना पड़े.

    नव वर्ष की मंगलकामनाएँ.

    ReplyDelete
  22. भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. आप को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  23. बहुत ही भावपूर्ण रचना... और सामयिक भी!!

    ReplyDelete
  24. बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को-यही निचोड़!

    ReplyDelete
  25. हम अपना दोष मड़ते हैं वक्त के सिर .
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  26. रचना तो पूरी ही सुन्‍दर है किन्‍तु अन्तिम छन्‍द प्रेरक और सर्वकालिक है - सबके लिए आवश्‍यक, सबके लिए] हर समय उपयोगी।

    ReplyDelete
  27. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  28. @ बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
    आनंद आ गया प्रवीण भाई ...
    आपकी लेखनी के धीरज का कायल हूँ ....
    बधाई !

    ReplyDelete
  29. भावपूर्ण समीक्षात्मक रचना.....

    ReplyDelete
  30. दोष नहीं दे सकता कल को ... बिल्‍कुल सही कहा आपने

    ReplyDelete
  31. behaaad khoobsurat

    ReplyDelete
  32. मानक है जीवन जीने के, लगी यन्त्रवत सकल व्यवस्था,
    सुख, साधन की होड़ लगी है, कहाँ पता है किसे समय का,
    बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
    दोष नहीं दे सकता कल को।

    ज़ारी रहे खोज अन्वेषण जीवन के राग के प्राप्ति के अप्राप्ति के .बढ़िया रचना भविष्य को निहारती अतीत को खंगालती

    बुहारती ,दुत्कारती .

    ReplyDelete
  33. बीता हुआ कल हो या बीता हुआ पल हो , वही तो समय की गति दर्शाता है और गत का दोष गति को क्यों ?

    ReplyDelete
  34. Happy New Year....aaj ko sanvaatrte hain....kal to beet gaya....

    ReplyDelete
  35. बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को,
    दोष नहीं दे सकता कल को।,,,

    भाव पूर्ण सुंदर पंक्तियाँ,,

    recent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,

    ReplyDelete
  36. दोष नहीं दे सकता कल को
    क्षुब्ध मनस का भार सहन है, दोष नहीं दे सकता कल को,
    गहरे जल के तल में बैठा, देख रहा हूँ बहते जल को।

    गहरे पानी पैठ ,देख रहा वह आज कल और परसों को ....

    क्या बात है प्रवीण जी ,गीत चिंतन और दर्शन ,गेयता और सन्देश सभी कुछ एक साथ लिए है .

    ReplyDelete
  37. Anonymous4/1/13 19:50

    sundar.....

    ReplyDelete
  38. चलो सजायें वर्तमान में, एक भविष्य की सूरत न्यारी,
    बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को,

    बेहद सुंदर आशावादी प्रस्तुति । शुभ नववर्ष ।

    ReplyDelete
  39. जियें सजगता से हर पल को
    दोष भला क्या देना कल को।
    जिंदगी के ढेरसारे चित्रों का कोलाज़ ब बनाती कविता।

    ReplyDelete
  40. वक्त के अनुरूप अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  41. भाव पूर्ण सुंदर रचना

    ReplyDelete
  42. बाँध बनाते जीवन बीता ....बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियाँ ।

    ReplyDelete