27.8.11

हाईवे के ट्रक

कभी भारी भरकम ट्रकों को राष्ट्रीय राजमार्ग पर भागते देखा है? देखा होगा और उससे पीड़ित भी हुये होंगे पर उनके चरित्र पर ध्यान नहीं दिया होगा। सामने से आते ट्रक आपको अपनी गति कम करने और बायें सरक लेने को विवश कर देते हैं, बड़ा भय उत्पन्न करते हैं ये ट्रक सड़क पर, आप चाहें न चाहें एक आदर देना पड़ता है, जब तक ये निकल न जाये आप निरीह से खड़े रहते हैं, सड़क से आधे उतरे।

यदि आप भी इन ट्रकों की दिशा में जा रहे हों तो संभवतः भय नहीं रहता है। आपके वाहन की गति बहुधा इन भारी भरकम ट्रकों से बहुत अधिक रहती है, यदि आप उन्हें एक बार पार कर लें तो उनसे पुन: भेंट होने की संभावना कम ही होती है। थोड़ी सावधानी बस उन्हें पार करने में रखी जाये तो निरीह से ही लगते हैं ये ट्रक।

कभी कभी यही ट्रक प्रतियोगिता पर उतर आते हैं। पिछले दिनों मैसूर से बंगलोर आते समय लगभग एक घंटे तक यह प्रतियोगिता देखी भी और उससे पीड़ित भी होते रहे। दो भारी भरकम ट्रक आगे चल रहे थे, एक दूसरे से होड़ लगाते हुये। एक दूसरे से सट कर चल रहे थे, कभी एक थोड़ा आगे जाने का प्रयास करता तो कभी दूसरा, कोई भी स्पष्ट रूप से आगे नहीं निकल पा रहा था। दोनों की ही गति 50 के आसपास थी क्योंकि मेरा वाहन भी लगातार वही गति दिखा रहा था। सड़क 100 की गति के लिये सपाट है, आपका वाहन भी उन्नत तकनीक के इंजन से युक्त है और 150 की गति छूने की क्षमता रखता है। उन ट्रकों की प्रतियोगिता के आनन्द के सामने आपके वाहन की गति धरी की धरी रह जाती है। 50 की गति सड़क खा जाती है, 50 की गति हाईवे के ये ट्रक। आप कितना उछलकूद मचा लीजिये, आपका वाहन कितना हार्न फूँक ले, जापानी विशेषज्ञों ने कितना ही शक्तिशाली इंजन बनाया हो, आपके वाहन का आकार कितना ही ऐरोडायनिमिक हो, आप अपनी एक तिहाई क्षमता से आगे बढ़ ही नहीं सकते।

यह सब देख रागदरबारी के प्रथम दृश्य का स्मरण हो आया। सड़क पर और आने वाले यातायात पर अपना जन्मसिद्ध बलात अधिकार जमाये इन ट्रकों का कुछ नहीं किया जा सकता है। अपने आगे दसियों किलोमीटर का खाली मार्ग उन्हें नहीं दिखता है, पीछे से सवेग चले आ रहे वाहनों की क्षमताओं का भी भान नहीं है उन्हें, यदि उन्हें कुछ दिखता है तो उनके बगल में चल रहा उनके जैसा ही भारी भरकम और गतिहीन ट्रक, आपसी प्रतियोगिता लगा उनका मन और उसी खेल में बीतता उनका जीवन।

उपयुक्त तो यही होता कि दोनों ही एक ही लेन में आ जाते और पीछे से आने वाले गतिशील वाहनों को आगे निकल जाने देते, जिससे उनकी भी चाल अवरोधित नहीं होती। वे ट्रक नहीं माने, स्वयं तो प्रतियोगिता का आनन्द उठाया और हम सबको पका दिया। वह तो भला हो कि एक जगह पर तीन लेन का रास्ता मिल गया, वहाँ पर थोड़ी गति बढ़ाकर कई वाहन उन मदमत्त ट्रकों से आगे निकल गये।

जाते जाते बस पीछे देख ट्रकों को यही कह पाये कि "भैया जब दम नहीं है तो काहे सड़क घेरे चल रहे हो।"

71 comments:

  1. बस, बच-बचा के चलते रहिये सड़क पर !
    ट्रक तो अपना 'शिकार' ढूंढते रहते हैं,हमें ही इनकी छाया से बचना होगा !

    ReplyDelete
  2. पोस्‍ट बनाने को प्र‍ेरित करती प्रतियोगिता.

    ReplyDelete
  3. एनसीआर के पहाड़ी रास्तों पर चलने वाले डंपरों के आगे ये हाई वे के ट्रक कुछ भी नहीं|

    फरीदाबाद गुडगाँव के रास्ते में चलने वाले डम्पर साक्षात् यमदूत से दीखते है|

    ReplyDelete
  4. हमारे यहाँ तो सर झुका कर सड़क खोज-खोज कर चला पड़ता है ..सामने देखने का तो सोच भी नही सकते ,देखना हो तो रुकना ही पड़ता है ..हा हा वैसे ये सड़क की बुराई नहीं है..सोचिए जब सारी सड़के ठीक हो जाएंगी तो ये अनुभव भी जाता रहेगा भविष्य में .....

    ReplyDelete
  5. इन ट्रकों पर लिखा होता है कि
    दम है तो पास कर नहीं तो बरदास्त कर,
    वैसे आपने लिखा है कि आगे निकलो तो जाने
    मैं तो कार में कम ही सफ़र करता हूं, अत:
    मुझे बाइक से निकलने में कोई समस्या नहीं आयेगी, लेकिन आपकी तरह कार, जीप, वाले तो मजबूरन पीछे-पीछे चलते ही रहेंगे,
    एक सबसे जरुरी बात,

    रात के समय इनके पीछे-पीछॆ कुछ फ़ासले पर चलना हमेशा सुरक्षित होता है।

    ReplyDelete
  6. सड़कों पर ये यमराज के यांत्रिक दूत हैं !

    ReplyDelete
  7. यात्रा के नियम एक ओर तथा, जिसकी लाठी उसकी भैंस दूसरी ओर, तो जीत किसकी होगी?

    ReplyDelete
  8. आदरणीय पाण्डेय जी आपने बहुत ही रोचक ढंग से लिख दिया है |अनूठी व्यंग्य शैली पसंद आयी |

    ReplyDelete
  9. किसी से प्रतियोगिता करने के बजाय उसकी सहायता करना बेहतर है।
    कभी-कभी ईर्ष्‍यावश हम दूसरों को गिराना चाहते हैं, परन्‍तु ऐसा करके हम स्‍वयं ही गिर जाते हैं।

    ReplyDelete
  10. समरथ को नहीं दोष गोसाईं.

    ReplyDelete
  11. इन परलोक वाहकों को यमराज से परमिट मिलता है. inhe जनसंख्या कम करने का ठेका मिला हुआ है.:)

    ReplyDelete
  12. ट्रक क्या भाई साहब यहाँ "लेन"में चलने का रिवाज़ ही नहीं है .बिना ज़रुरत होर्न देना ,और सुनने के वक्त उसकी अनदेखी करना कई मर्तबा रोड रेज को आमंत्रित करता है .आप जिस बेंगलोर की बात करतें हैं वहां यह ही नहीं पता चलता किसको किधर से जाना है .आई आई टी चेन्नई में बितायेदो वर्षों के दरमियान बेंगलोर आना जाना लगा रहा .कमोबेश पूरे हिन्दुस्तान की ही यही हालत है ट्रेफिक और सिविक सेन्स सिरे से नदारद है .बड़े ट्रक हमने इतने बड़े भी देखें हैं जिनमें रेस्ट रूम्स और किचिन भी हैं और पूरी व्यवस्था के साथ निर्धारित लेन में चलतें हैं ,निर्धारित दूरी भी बनाए रहतें हैं आगे वाले वाहन से . Friday, August 26, 2011
    Saturday, August 27, 2011
    प्रच्छन्न लेखक .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

    ReplyDelete
  13. इनका कोई उपाय इलाज नही है, यात्रा से सुरक्षित वापसी हो जाये यही गनीमत है. वैसे कभी हरियाणा में जुगाड चलते देखलें तो आपको और भी आनंदानुभुति हो सकती है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. इन्हें हम लोग परलोक वाहन कहते हैं.

    ReplyDelete
  15. इन ट्रक्स का भूग्तभोगी मैं भी हूँ। जब से हमारे सरदार भाई ट्रक्स की ड्राईवर सीट से गुम हुए हैं, इन ट्रक्स का केरेक्टर ही बदल गया है|

    ReplyDelete
  16. "...निर्धारित दूरी भी बनाए रहतें हैं आगे वाले वाहन से ..."

    हाँय, ये क्या होता है? माने बम्पर-टू-बम्पर? ताकि बीच में से कोई निकलने का रास्ता न निकाल ले?

    ReplyDelete
  17. Anonymous27/8/11 10:59

    बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  18. ye truckwale ... lagta hai sirf unki sadaK HAI

    ReplyDelete
  19. मैंने कई वर्ष पहले अपने पुराने ब्लाग पर लिखा था कि कई लोगों को तो सड़क पर निकलने ही नहीं देना चाहिये. और यहां भी वही भ्रष्टाचार तारी है. ड्राइविंग लाइसेंस अंधे व्यक्ति का बनवा लीजिये. चालान तभी होते हैं जब टी ओ साहब खुश नहीं होते..
    बाकी आपके लिये मेरा सुझाव, अस्सी तक ठीक है, अस्सी के ऊपर भारत में जान खतरे में..

    ReplyDelete
  20. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
    तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
    अवगत कराइयेगा ।

    http://tetalaa.blogspot.com/

    ReplyDelete
  21. अपने कार्य में निपुणता दिखाने का अवसर क्यों छोड़े ट्रक चालक . और इसी बहाने उनकी गड्डी की फोटू भी खीच गई .

    ReplyDelete
  22. सहमत हूँ आपसे .... कमोबेश हर स्थान पर यही स्थिति है ...... ऐसी परिस्थिति में आपके लेख की अन्तिम पंक्तियां बोलने का मन करता है:)

    ReplyDelete
  23. "Jinko Jaldi thi wo chale gaye!!"
    Beautiful quotes behind a truck..

    ReplyDelete
  24. उफ़ क्या याद दिला दी..

    एक बार मैं भी ऐसे ही फंस गया था.... दिल्ली जयपुर हाईवे पर... जब नया नया ६ लाइन हुआ था.. और मेरा नया बजाज चेतक...

    इन्ही ट्रकों की दौड में पता ही नहीं चला कब स्कूटर १०० कि.प्रति घंटे की रफ़्तार से उपर हो गया था.... और मैं काम्पने लगा...

    शुक्र है...
    बच गया....

    ReplyDelete
  25. Anonymous27/8/11 13:57

    दूसरी गाड़ियों के बारे में सोचने का रिवाज ट्रक ड्राइवरों में कहाँ?

    ReplyDelete
  26. बहुत ही खीझ दिलाते हैं...ऐसे ट्रक .

    ReplyDelete
  27. आपकी समस्या समझ रहा हूँ।
    हम भी कई बार इन ट्रकों के पीछे फ़से उन लोगों को कोसते कोसते मजबूरन गाडी धीमे चलाते गए हैं।
    हर पल इस ताक मे रहते हैं कि कब आगे निकल जाने का अवसर मिले।
    बडी खतर्नाक स्थिति होती है। आगे निकलने की कोशिश में दुर्घटना की संभावना होती है। कभी हार मानकर गाडी बांए तरफ़ करके उसे थोडी देर के लिए रोक देता हूँ। दोनों ट्रक अपनी नजर से ओझिल होने के बाद फ़िर गाडी स्टार्ट करता हूँ ।

    मामला समय का नही, बस किसी तरह उन ट्रकों के कारण मन में अधीरता और चिढ से मुक्ति पाने का है। इस बहाने हम भी कभी गाडी से बाहर निकलकर नजारा देखते हैं, हाथ-पैर फ़ैलाते हैं, कार की एंजिन को ठंडा होने के लिए समय मिलता है और हम मर्दों को "मूत्र विसर्जन" का अवसर भी मिल जाता है!

    यदि भाग्य ने साथ दिया तो गाडी फ़िर स्टार्ट करने के बाद उन ट्रकों का दर्शन फ़िर नहीं होता।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
  28. भारत में इनसे बचकर एक सुरक्षित दूरी रखना ही श्रेयकर होता है....

    ReplyDelete
  29. हा हा हा , बहुत ही बढिया , वाकई इसे पढ तो राग दरबारी की याद आ गई।

    सड़क पर और आने वाले यातायात पर अपना जन्मसिद्ध बलात अधिकार जमाये इन ट्रकों का कुछ नहीं किया जा सकता है।

    ReplyDelete
  30. अरे पाण्डेय जी, हमारी खडी गाडी को एक सोलह पहियों वाली ट्रकर ने जो मारा तो .... हाय क्या बताएं॥

    ReplyDelete
  31. जाते जाते बस पीछे देख ट्रकों को यही कह पाये कि "भैया जब दम नहीं है तो काहे सड़क घेरे चल रहे हो।"
    waah !bahut khoob likha hai pravin ji,tasvir aur uske comment bhi laazwaab hai .

    ReplyDelete
  32. सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .

    ReplyDelete
  33. आपने ठीक ही कहा प्रवीण, हमारा गाडी का इंजिन कितना ही शक्तिशाली हो पर जब रास्ता ही ना मिले तो आगे निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है!!

    ReplyDelete
  34. subject is the serious problem of public , beautifully explained . lot of thanks .

    ReplyDelete
  35. subject is the serious problem of public , beautifully explained . lot of thanks .

    ReplyDelete
  36. देश का पूरा ट्रेफिक सिस्टम बिक्दा हवा है .. वक्त आ गया है इस बात पर सीरियसली कुछ स्टेप लेने का ...

    ReplyDelete
  37. आपने ने सही बयान किया प्रवीण। मुझे बनारस में ट्रक के ही समानांतर भैंसों की सडक पर हुडदबंगई और बहाँ की चरितार्थ कहावत याद आ गयी- जिसकी भैंस, उसकी सडक ।

    ReplyDelete
  38. कहाँ हैं वह केंडल पत्रकार "कुलदीप नैयर "इस विधाई पल में जबकि कोलकता के युवक युवतियां जश्न पर्व पर अन्ना जी के ,जन मन के जश्न पर ,केंडल मार्च निकाल रहें हैं .,वही कुलदीप जी ,जो रस्मी तौर पर १४ अगस्त की रात को ही "वाघा चौकी "पर केंडल मार्च में शरीक होतें हैं .आई एस आई का पैसा डकारतें हैं और इस देश की समरसता को भंग करते हैं ,मुख्या धारा से मुसलामानों को अलगाने में ये हजरात तमाम सेक्युलर पुत्र गत ६० सालों से मुब्तिला है .भारत माता की जय बोलने पर ये कहतें हैं यह एक वर्ग की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है .इस्लाम की मूल अवधारणाओं के खिलाफ है ,ये केंडल मार्च जन मार्च है ,जन बल है .यही वह विधाई पल है जब मेडिकल कंडीशन को चुनौती देते हुए अन्ना जी ने जन लोक पाल प्रस्ताव की संसद द्वारा स्वीकृति पर सिंह नाद करते हुए ,हुंकारते हुए कहा-ये जनता की जीत है .निरवीर्य ,निर -तेज़ पड़ी संसद में थोड़ी आंच लौटी है अन्ना जी की मार्फ़त वगरना संसद तो एक चहार -दीवारी बनके रह गईं थी .और सांसद वोट का सिर
    ये भाई साहब जन मन की जीत है ,देश की मेधा की जीत है ,सभी अन्नाओं की जीत है ,उस देश दुलारे अन्ना की जीत है जो मेडिकल कंडीशन को चुनौती देता हुआ इस पल में राष्ट्रीय जोश और अतिरिक्त उल्लास से भरा है .यही बल है धनात्मक सोच का ,जो मेडिकल कंडीशन का अतिक्रमण करता है .

    ReplyDelete
  39. विधाई पल में हम तो ख़ुशी से पगलाए हैं .
    कहाँ हैं वह केंडल पत्रकार "कुलदीप नैयर "इस विधाई पल में जबकि कोलकता के युवक युवतियां जश्न पर्व पर अन्ना जी के ,जन मन के जश्न पर ,केंडल मार्च निकाल रहें हैं .,वही कुलदीप जी ,जो रस्मी तौर पर १४ अगस्त की रात को ही "वाघा चौकी "पर केंडल मार्च में शरीक होतें हैं .आई एस आई का पैसा डकारतें हैं और इस देश की समरसता को भंग करते हैं ,मुख्या धारा से मुसलामानों को अलगाने में ये हजरात तमाम सेक्युलर पुत्र गत ६० सालों से मुब्तिला है .भारत माता की जय बोलने पर ये कहतें हैं यह एक वर्ग की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है .इस्लाम की मूल अवधारणाओं के खिलाफ है ,ये केंडल मार्च जन मार्च है ,जन बल है .यही वह विधाई पल है जब मेडिकल कंडीशन को चुनौती देते हुए अन्ना जी ने जन लोक पाल प्रस्ताव की संसद द्वारा स्वीकृति पर सिंह नाद करते हुए ,हुंकारते हुए कहा-ये जनता की जीत है .निरवीर्य ,निर -तेज़ पड़ी संसद में थोड़ी आंच लौटी है अन्ना जी की मार्फ़त वगरना संसद तो एक चहार -दीवारी बनके रह गईं थी .और सांसद वोट का सिर
    ये भाई साहब जन मन की जीत है ,देश की मेधा की जीत है ,सभी अन्नाओं की जीत है ,उस देश दुलारे अन्ना की जीत है जो मेडिकल कंडीशन को चुनौती देता हुआ इस पल में राष्ट्रीय जोश और अतिरिक्त उल्लास से भरा है .यही बल है धनात्मक सोच का ,जो मेडिकल कंडीशन का अतिक्रमण करता है .

    ReplyDelete
  40. उफ ये ट्रक,सड़क पर घूमते हैं कुछ इस तरह
    फैला है देश में भाई-चारा जिस तरह...

    ReplyDelete
  41. ट्रक के माध्यम से आपने बड़ी कुशलता से जीवन की बारीकियों का वर्णन किया है ....यकीनन ऐसे हालातों का सामना हम रोज़ ही करते हैं ...किन्तु समझदारी से काम लेने में ही भलाई है ...!!
    सार्थक सुंदर आलेख...

    ReplyDelete
  42. रोचक ... ट्रक वालों से झगडा भी मोल नहीं लिया जा सकता ..

    ReplyDelete
  43. हाइवे के ट्रकों के बारे में मेरा अनुभव कुछ अलग है:-
    -मैंने पाया है कि, ये हाइवे पर बाक़ी वाहनों से कहीं अधिक अनुशासनात्मक तरीक़े से चलते हैं.
    -आमतौर से बिना इंडिकेटर दिए एकदम से दाएं-बाएं नहीं मुड़ते.
    -भार से लदे होने के कारण आपको एकदम से साइट नहीं दे पाते क्योंकि ऐसे में उनके पलट जाने का डर रहता है. अलबत्ता जैसे ही मौक़ा मिलता है आपको साइड दे ही देते हैं.
    -इन्हें वजन के कारण साइड देने व वापिस लेन में आने से पहले वाहन को काफी धीमा करना पड़ता है जिसके चलते एकदम साइड देना इनके लिए संभव भी नहीं होता.
    -मैंने पाया है कि वे पीछे से तेज़ गति से आने वाले वाहन के डिप्पर का जवाब आमतौर से देते हैं. हार्न भले ही न सुनें क्योंकि उनकी अपनी गाड़ी की ही आवाज़ बहुत तेज़ होती है.
    -बहुत अधिक भारी सामान ले जा रहे ट्रक आपको बाएं से निकलने का इंडिकेटर देते हैं क्योंकि उनके लिए बार बार साइड देना संभव ही नहीं होता.
    -मेरा अगर बुरा अनुभव है तो वह है सरकारी बसों के बारे में. उनका कोई भरोसा नहीं कि साइड दें या न दें या फिर कभी भी यूं ही दाएं-बाएं मुड़ जाएं.

    ReplyDelete
  44. इस बार देर से आना शायद सही हुआ। आज के समय में काजल कुमार जी की टिप्पणी काफ़ी हद तक सही है। बाकी अपवाद तो हर जगह हैं ही। अपने को जो सबसे मजेदार बात लगती है वो है क्लीनर का लगभग हमेशा बाँया हाथ खिड़की से बाहर निकाले रहना, वैसे वो सही भी है क्योंकि बाँये से ओवरटेक करना गलत भी है और जानलेवा भी हो सकता है।
    बाकी देश की तो नहीं कहता लेकिन उत्तर भारत में सड़क पर जितनी बदमाशी ट्रैक्टरवाले दिखाते हैं या SUVs, ट्रक वाले उनके सामने बहुत निरीह लगते हैं।

    ReplyDelete
  45. that was hell of a experience :D
    Thanks to tht 3-lane road !!

    my home is on road.. as fact on a NH
    so these biggy truck drivers careless attitude--- I can fully relate
    they r scumbags... nthin else

    ReplyDelete
  46. भाई साहब ये मनमोहनी सरकार भी अभी तक"फ्रीवे "/हाईवे "के तर्कों की मानिंद ही चल रही थी अपने एहंकार में जन -भावना की सारी सड़क घेरे हुए . http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    Saturday, August 27, 2011
    अन्ना हजारे ने समय को शीर्षासन करवा दिया है ,समय परास्त हुआ जन मन अन्ना विजयी .

    ReplyDelete
  47. जी, देखा है!... और हाथ जोड़ कर सड़क के किनारे पर खड़े हो प्रार्थना भी किये हैं कि हे भगवन, आप टरकें तो हम भी सकुशल टरें !!

    ReplyDelete
  48. Bahut hi sarthak lekh sir ji...

    ek truck ne meri ek buri adat sudhar di thi...
    a v apne blogg par likhunga...
    ap jarur aiyega.

    ReplyDelete
  49. "who cares" type attitude,even lokpal won't help in such type of situation,better brake your car near a roadside dhaba,have a cup of tea (that w'll allow some time difference to you)and then again proceed with full throttle..

    ReplyDelete
  50. सही कहा आपने । यदि इनसे आगे निकलने के बाद भी अपनी गति बढाकर सुरक्षित दूरी बना लेने में यदि आप चूक जावें तो फिर तो बस भगवान ही मालिक है ।

    ReplyDelete
  51. [Offline] dinesh gupta to me

    show details 8:38 PM (4 hours ago)

    स्वामी फिर पकड़ा गया, धर पाखंडी-वेश,
    सिब्बल के षड्यंत्र से, धोखा खाता देश,
    धोखा खाता देश, वस्त्र भगवा का दुश्मन,
    टीमन्ना को क्लेश, कराता उनमे अनबन,
    अग्नि का उद्देश्य, पकाता अपनी खिचड़ी,
    माता का यह शत्रु, फांसता बनकर मकड़ी ||
    यही हैं "फ्रीवे "के ट्रक ,बौद्धिक भकुए ,कुतर्कपंडित

    ReplyDelete
  52. हा हा :) मुझे तो हंसी आ गयी बीच में पढते पढते.. :P सॉरी ;)

    ReplyDelete
  53. और अपने ऊँच-पूरे ट्रक की सीट से ये किसी महिला ड्राइवर को देख अपने वाहन को लहराते हुये उसकी कार को 'ओए साबुनदानी ' कहते चलते हैं .

    ReplyDelete
  54. बहुत सही लिखा है आपने...ठीक यही होता है.

    ReplyDelete
  55. It's really tough to drive on highway.

    ReplyDelete
  56. पाण्डेय जी आपने बहुत ही सही लिखा है गति तो गति मैंने तो यहाँ तक देखा है जब कोई ट्रक रास्ते में ख़राब हो जाता है तो ये ट्रक के पास इंट-पत्थर वैगरा रख देते है और उसको वहीँ पर छोड़कर चले जाते है इससे कई बार दुर्घटना हो जाती है ...

    ReplyDelete
  57. बहुत सही कहा है आपने...ठीक यही होता है.

    ReplyDelete
  58. sahi pakada aapne!! so true!

    ReplyDelete
  59. सुन्दर वर्णन .
    पोला पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  60. बड़ा डर लगता है इनसे..... सच में प्रतियोगिता करते ही नज़र आते हैं ये भरी भरकम वाहन.....

    ReplyDelete
  61. बहुत सही लिखा है आपने..सहमत हूँ आपसे

    ReplyDelete
  62. बहुत ही रोचक ढंग से एक गंभीर समस्या का चित्रण..

    ReplyDelete
  63. सर एक बार मै पकाला से तिरुपति को पैसेंजर ट्रेन ले कर जा रहा था , चुकी रेलवे लाईन के समानांतर में सड़क है ! एक लारी वाला हमें देख तेजी से लारी दौड़ाने लगा ! ताकि ट्रेन उससे पीछे ही रहे ! अचानक वह बैलेंस खो दिया और सड़क के किनारे गड्ढे में जा गिरा ! हमें जोर से हंसी आये !

    ReplyDelete
  64. वैसे इन ट्रकों से दूर रहने में ही भलाई रहती है:)
    ------
    ये रंगीन चित्रावलियाँ।
    कसौटी पर शिखा वार्ष्‍णेय..

    ReplyDelete
  65. बहुत सुंदर प्रस्तुति,


    एक चीज और, मुझे कुछ धर्मिक किताबें यूनीकोड में चाहिये, क्या कोई वेबसाइट आप बता पायेंगें,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  66. in trucko par to bade upyogi vakya bhi khoob likhe hote hain. achchha varnan kiya hai aapne.

    ReplyDelete
  67. Hum bhi hain bhukt-bhogi....police wale dus rupye mein inhe bina waqt sehar ki bheed-bhaad wali sadkon par jaane dete hain....isi wajah se mere mama ka 6 varshiya ladka truck se dab gaya tha...on-spot death ho gayi thi bechaare ki...

    ReplyDelete
  68. किसी ट्रक के पीछे लिखा हुआ पढा था - 'रोड का राजा।' आपकी यह पोस्‍ट पढ कर वही याद आ गया।

    ReplyDelete
  69. जो उपयुक्त है वो कहाँ हो पाता है !

    ReplyDelete