1.10.14

मनस अब स्थिर होता है

हमारे जीवन का बिखराव,
दिखाता हमें अनेकों राह 
छीनता जीवन का सारल्य,
दिलाकर अन्धकार का स्याह ।।१।।

टूटती है विकल्प की प्यास,
मनस अब स्थिर होता है 
व्यर्थ कुछ दिखते नहीं प्रयास,
मनस अब स्थिर होता है ।।२।।

6 comments:

  1. उत्कृष्ट रचना ।लेखनी को शत - शत प्रणाम ।

    भूमि कंटकमय पड़ी थी , चाव पर , मन में संजोए ।
    आॅंसुओं के जल से सींचे , आस के कुछ बीज बोए ।
    लहलहाता विटप है अब, पथिक जन विश्रानत पाते ।
    फूल - फल छाया घनेरी , विहॅंस पंछी गीत गाते ।
    सन्निकट ही पड़ाव दीखे , मन सुस्थिर पाॅंव धीमें ।
    थक चुका या शान्त है मन , जो चला गति वायु ही में ।।

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    1. प्रशंसनीय प्रस्तुति । बधाई ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    --
    मान्यवर,
    दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
    जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का रखा गया है।
    हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
    कृपया मेरे ई-मेल
    roopchandrashastri@gmail.com
    पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
    कृपया सहायता करें।
    बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।

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  3. छोटे भाव की बड़ी कविता।

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  4. हमेशा की तरह भावों को शब्‍दों में बखूबी उकेर दिया है आपने ....
    सादर

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  5. गागर में सागर!!!
    इस लिकं पर दृष्टि रखें:

    http://disarrayedlife.blogspot.in/2014/10/science-vis-vis-india-part-1.html
    यह मेरे पुत्र का नवोदित ब्लाग है।

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