24.6.14

अपेक्षा

दो खुशी के पल मिलें,
तो मुक्त हो बाँहें खिलें ।
सत्य है इन ही पलों के,
हेतु जीवन जी रहा है ।।१।।

अपेक्षित तो बहुत कुछ है,
दृष्टि में पर्याप्त सुख है ।
किन्तु यह निष्ठुर व्यवस्था,
भाग अपना माँगती है ।।२।।

क्यों नियम के शासनों में,
रूढ़ियों के तम घनों में ।
मुक्ति की उत्कट तृषा में,
घुट गयी स्वच्छन्दता है ।।३।।

शक्ति से है, दोष ऊर्जित,
अहम्‌ में सारल्य अर्पित ।
काल ही निर्णय करेगा,
लोक जिस पथ जा रहा है ।।४।।

व्यर्थ ही सब लड़ रहे हैं,
घट क्षुधा के भर रहे हैं ।
पर खुशी की पौध केवल,
प्रेम के जल की पिपासी ।।५।।

20 comments:

  1. क्यों नियम के शासनों में,
    रूढ़ियों के तम घनों में ।
    मुक्ति की उत्कट तृषा में,
    घुट गयी स्वच्छन्दता है
    x x x
    काल ही निर्णय करेगा,
    लोक जिस पथ जा रहा है

    भाई

    इन उद्गारों को अब पुस्तकाकार रूप में आ जाना चाहिये. टुकउ़ों में पढ़ने में मजा नहीं आता.

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  2. भावना जो मन में पलती
    देखते हैं नयन उसको ।
    आज - अब ही है हमारा
    कल की है परवाह किसको ?

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  3. बहुत ही भावभरी कविता

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  4. आपकी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - पुण्यतिथि श्री श्रद्धाराम फिल्लौरी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  5. पर खुशी की पौध केवल,
    प्रेम के जल की पिपासी
    सार्थक सार .....

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  6. सार्थक भावभरी कविता......

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  7. बेहद भावपूर्ण .

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  8. मृग तृष्णा से ही शक्ति, अहम् सभी आकार लेते हैं।

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  9. सुन्दर रचना...

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  10. कल 27/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  11. सार्थक सुन्दर भाव..आभार

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  12. व्यर्थ की उलझन है , द्वेष है ...पर निकल कहाँ पाते हैं हम सब .....

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  13. सरल जीवन ..बहुत सुंदर भाव ....!!

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  14. काल ही निर्णय करेगा,
    लोक जिस पथ जा रहा है
    बहुत ही ऊर्जा लिए हुए हैं आपकी रचना के शब्द

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  15. सुंदर रचना !!

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  16. पर खुशी की पौध केवल,
    प्रेम के जल की पिपासी
    … सच ख़ुशी प्रेम से ही मिल सकती है

    बहुत सुन्दर

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  17. जीवन दर्शन के सरल प्रश्‍न को उकेरती कविता।

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