19.4.14

जीवनी अलमस्त हो

मगन हो अपने विचारों के किनारों में,
जीवनी अलमस्त हो चुपचाप बहती जा रही थी ।
कहीं पर गाम्भीर्य की गहराइयों का,
और उत्श्रंखल विनोदों का कहीं मिश्रण बनी थी ।
कहीं पर हो संकुचित व्यवधान से,
और समतल में कहीं विस्तार की जननी बनी थी ।
वक्रता के थे किनारे इस जगत में,
काटती रहती उन्हें, उस वक्रता से रहित करती ।
मार्ग के सब अनुभवों का रस समेटे,
हो बड़ी निश्चिन्त वह जीवन समर में जा रही थी ।

किन्तु तब नियमित कलापों से व्यथित हो,
मनदशा रसहीनता को अग्रसर थी ।
इस असत भू के हृदय में सत्य क्या है,
मनस सागर में दबी इच्छा प्रबल थी ।।

व्यक्ति का जीवन विरह है,
इस विरह का सत्य क्या है ?
सतत मानव से विलग उस,
तत्व का अस्तित्व क्या है ?
शान्त सब जीवन बिताते,
किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
अन्ध जीवन की दशा पर,
सत्य का वक्तव्य क्या है ?

ज्ञान की हैं कठिन राहें,
तर्क के कंकड़ बिछे हैं,
पथ प्रदर्शक भी नहीं है,
सत्य-चिन्तन चिर असम्भव ।

इन विचारों के प्रचण्डित धुन्ध में,
जीवनी भी पन्थ अपना खो रही है ।
बहु-प्रतीक्षित सत्य भी यदि सरल न हो,
तो मुझे उस सत्य की इच्छा नहीं है ।।

जीवनी अलमस्त हो चुपचाप बहना चाहती है ।
चित्र साभार - freehdw.com

35 comments:

  1. " अज़ब सी छटपटाहट घुटन कसकन हो असह पीडा
    समझ लो साधना की अवधि पूरी है ।
    अरे घबरा न मन चुपचाप सहता जा
    सृजन में दर्द का होना ज़रूरी है ।"
    अशोक चक्रधर [ जिन्हें अभी-अभी " पद्म-श्री" सम्मान मिला है ।]

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  2. मन की घबराहट ही तो जीने नहीं देती वरना कौन मरना चाहे है...
    उत्तम रचना

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  3. सत्य तो सरल ही होना चाहिए परन्तु होता गूढ़ता के लिबास में है ।

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  4. बहु-प्रतीक्षित सत्य भी यदि सरल न हो,
    तो मुझे उस सत्य की इच्छा नहीं है ।।

    वाह , आभार आपका !

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  5. व्यक्ति का जीवन विरह है,
    इस विरह का सत्य क्या है ?
    सतत मानव से विलग उस,
    तत्व का अस्तित्व क्या है ?
    शान्त सब जीवन बिताते,
    किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
    अन्ध जीवन की दशा पर,
    सत्य का वक्तव्य क्या है ?

    गहन ...गूढ़ अर्थ जीवन के समझना सरल कहाँ है ?

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  6. जीवन जीना आसान है परन्तु जीवन मूल्यों के साथ जीना कठिन है.

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  7. व्यक्ति का जीवन विरह है,
    इस विरह का सत्य क्या है ?
    सतत मानव से विलग उस,
    तत्व का अस्तित्व क्या है ?
    शान्त सब जीवन बिताते,
    किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
    अन्ध जीवन की दशा पर,
    सत्य का वक्तव्य क्या है ?
    ....इसी सत्य की तलाश ही तो जीवन भर चलती रहती है...अगर इस तलाश की उत्कंठा न हो तो जीवन का क्या अर्थ..

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  8. These are very deep thoughts. Certainly the path of knowledge is very difficult and truth is even more. We all are in dark but will have enlighten internal self to know it. Cure is after stage. Regards.

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  9. नई शैली में अच्छी रचना।

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  10. अच्छी रचना

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  11. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन वोट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  12. अन्तर्मन के गहवर में विचर रहे हो बन्धु :)

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  13. वाह, कविता में भी आपका दार्शनिक सजग रहता है !

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  14. इस विरह का सत्य क्या है । यही खोजते खोजते तो सारा जीवन बात जाता है। पर सहज बहती रहे जीवनी यही इचछा है। बहुत गहरी प्रस्तुति।

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  15. बहुत खूब .. जीवन और सोच ... कितना द्वन्द रहता है मन में ... जीवन कि खोज भी तो अलमस्त नहीं रहने देती ...

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  16. व्यक्ति का जीवन विरह है,
    इस विरह का सत्य क्या है ?
    सतत मानव से विलग उस,
    तत्व का अस्तित्व क्या है ?
    शान्त सब जीवन बिताते,
    किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
    अन्ध जीवन की दशा पर,
    सत्य का वक्तव्य क्या है ?

    सशक्त प्रवाह लिए है रसधार लिए है जीवन की यह रचना :

    व्यक्ति का जीवन विरह है,
    इस विरह का सत्य क्या है ?
    सतत मानव से विलग उस,
    तत्व का अस्तित्व क्या है ?
    शान्त सब जीवन बिताते,
    किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
    अन्ध जीवन की दशा पर,
    सत्य का वक्तव्य क्या है ?

    (उच्श्रृंखल ?)

    (उच्छृंखल ?)

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  17. व्यक्ति का जीवन विरह है,
    इस विरह का सत्य क्या है ?
    सतत मानव से विलग उस,
    तत्व का अस्तित्व क्या है ?
    शान्त सब जीवन बिताते,
    किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
    अन्ध जीवन की दशा पर,
    सत्य का वक्तव्य क्या है ?
    satya kholkar rakh diya aapne praveen ji .very nice

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  18. जीवनी अलमस्त हो चुपचाप बहना चाहती है ।
    कितनी सुन्दर सी कविता है भैया!!

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  19. बहु-प्रतीक्षित सत्य भी यदि सरल न हो,
    तो मुझे उस सत्य की इच्छा नहीं है ।।
    गहनता में जाकर पता यही लगना है की सरलता /सहजता में ही जीवन है !!

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  20. अनुत्तरित कितने ही प्रश्न..

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  21. वाह क्या बात है...सुन्दर प्रस्तुति...

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  22. आह। . एक सुकून सा पहुंचा गई ये कविता।

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  23. ज्ञान की हैं कठिन राहें,
    तर्क के कंकड़ बिछे हैं,
    पथ प्रदर्शक भी नहीं है,
    सत्य-चिन्तन चिर असम्भव ।
    बिल्‍कुल सच
    बेहतरीन भाव संयोजन

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  24. ज्ञान तो तर्क से ही विकसित होता है।

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  25. ज्ञान की हैं कठिन राहें,
    तर्क के कंकड़ बिछे हैं,
    पथ प्रदर्शक भी नहीं है,
    सत्य-चिन्तन चिर असम्भव ।

    बहुत ही सुंदर..ऐसा ही लगता है जैसे दुनिया की सबसे आसान चीज़ ही सबसे कांप्लीकेटेड हो गई है।।।

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  26. सत्य को जाने बिना सरलता टिकती नहीं...

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  27. व्यक्ति का जीवन विरह है,
    इस विरह का सत्य क्या है ?
    सतत मानव से विलग उस,
    तत्व का अस्तित्व क्या है ?
    शान्त सब जीवन बिताते,
    किन्तु उसमें सत्व क्या है ?
    अन्ध जीवन की दशा पर,
    सत्य का वक्तव्य क्या है ?

    सत्य की खोज में अन्तर्मन की वेदना का बहुत गहन चित्रण .... ...हृदयस्पर्शी रचना ...!!

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  28. तर्क के कंकड़ बिछे हैं,
    पथ प्रदर्शक भी नहीं है,
    सत्य-चिन्तन चिर असम्भव ।

    बहुत ही सुंदर....! :)

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  29. ज्ञान की हैं कठिन राहें,
    तर्क के कंकड़ बिछे हैं,
    पथ प्रदर्शक भी नहीं है,
    सत्य-चिन्तन चिर असम्भव ।

    इन विचारों के प्रचण्डित धुन्ध में,
    जीवनी भी पन्थ अपना खो रही है ।
    बहु-प्रतीक्षित सत्य भी यदि सरल न हो,
    तो मुझे उस सत्य की इच्छा नहीं है ।।

    जीवनी अलमस्त हो चुपचाप बहना चाहती है ।

    वाह।

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  30. पथ प्रदर्शक की बाट न जोहिए। अप्प दीपो भव l

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  31. पथ प्रदर्शक की बाट न जोहिए। अप्प दीपो भव l

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  32. कविता के संकेत गहन हैं , असली भण्डार अब खुलेगा प्रवीण भाई, आप को काव्य की राह मुबारक़ .....

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