17.3.12

आज जी भर देख लेते

हम हृदय का उमड़ता आवेग कुछ पल रोक लेते,
समय यदि कुछ ठहर जाता, आज जी भर देख लेते।

तुम न ऐसे मुस्कराती, सकपका पलकें झपाती,
ना फुलाकर गाल अपने, सलोनी सूरत बनाती।
थे गये रम,
क्या करें हम,
यूँ ही गुपचुप बह गये थे,
आज जी भर देख लेते।१।

छिपा हाथों बीच आँखें, ना मुझे यूँ देख जाती,
सर झुकाकर तुम न केशों के किनारे मुँह छिपाती।
तुम हृदय में,
इसी लय में,
और कितना सह गये थे,
आज जी भर देख लेते।२।

तुम न ऐसे खिलखिलाती, ना मेरे मन को लुभाती,
कुछ बताना चाहकर भी, तुम न यूँ मन को छिपाती।
नहीं हाँ की,
बात मन की,
बिन कहे ही कह गये थे,
आज जी भर देख लेते।३।

ना एकाकी इस हृदय में, याद अपनी छोड़ जाती,
बढ़ी जाती जीवनी यूँ, बीच पथ न मोड़ जाती।
जो था कहना,
और कितना,
बोलने से रह गये थे,
आज जी भर देख लेते।४।

(काश, कुछ यात्रायें थोड़ी और लम्बी होतीं। १४ घंटे की रेलयात्रा, बीच में ढेरों अशाब्दिक संवाद और निष्कर्ष ये उद्गार। बस अभिषेक की पीड़ासित रेलयात्राओं से सहमत न हुआ, तो यह बताना पड़ा। विवाह के पहले की कविता है। तब बस मन को लिखना आता था, कहना तो अभी तक नहीं सीख पाये।)

155 comments:

  1. बहुत सुंदर ..
    सटीक अभिव्‍यक्ति ..
    शुभकामनाएं !!

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  2. वि‍वाह से पहले की कवि‍ता है तब तो ठीक, वर्ना लगा कि‍ वि‍वाह के बाद कहां श्रृंगारपंथी हो गए ☺

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    1. अब तो विवाह के पहले की कविताओं को सेंसर से पास करवा कर पोस्ट करना पड़ता है।

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  3. किसी खूबसूरत यात्रा की मधुर स्मृति ही लग रही है कविता !
    सरस !

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    1. यात्राओं की स्मृतियाँ बहुत गहरे पैठती हैं।

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  4. भावों का सतत प्रवाह, भावना प्रधान सृजन का सफल समर्थक बन गतिमान है ....बहुत सुन्दर जी /

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    1. जो मन पर गुजरा, उसे शब्दों में ढालने का लघु प्रयास था।

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रेम कविता |

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  6. अति सुन्दर!

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  7. बहुत अच्छी लगी. दूसरों द्वारा की गयी अभिव्यक्तियाँ कुछ ऐसी भी होती हैं जिनके बारे में मन में विचार आता है, शायद मेरे मन की बात कह गया हो. कुछ ऐसी थी यह रचना.

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    1. कभी कभी मन की उथल पुथल को संयत कर शब्दों में ढालना कठिन हो जाता है, अनुभव को भूलना कठिन था, लिखना सहज।

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  8. चौदह घंटे के अशब्दिक संवाद को आपने शब्द दे दिये . आपकी रेल ना जाने कितने कविमना लोगों में कविता का अ अंकुर प्रस्फुटित होने का कारण बनती होगी .

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    1. रेल की यात्रा बहुत रोचक रही हैं मेरे लिये, अभिषेक को बस यही बताना चाह रहा था।

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  9. लिखना ही लिखना सीखा है
    कहना अब तक सीख न पाये
    कोमल भावों को लिखना ही तो कठिन होता है, कहने का काम तो शब्द ही कर देते हैं.सजीली रचना, वाह.
    http://mithnigoth2.blogspot.in/2012/03/blog-post_17.html

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    1. उस समय यदि कहने का प्रयास किया होता तो संभवतः श्रंगार के स्थान पर भय का भाव आया होता।

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  10. बहुत सुंदर उद्गार ...कवि ह्रदय कि अनकही गाथा ...शब्दों के प्रवाह में निर्झर झर रही है ...

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    1. यदि कहा होता तो वह भाव शब्दों में नहीं ढल पाते।

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  11. जी प्रतीकात्मक ही लिया और भावात्मक हो लिए ...
    मगर उस चित्र को कैसे प्रतीक मान लें! :)

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    1. हम चित्रकार न हुये, नहीं तो चित्र ही बना देते।

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  12. कहना सीखिये भाई! अभी नहीं तो कब सीखेंगे? :)

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    1. आपका आशीर्वाद रहा तो एक न एक दिन हिम्मत खुल जायेगी।

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  13. वैसे विवाह बाद भावनाएं पक जाती हैं,भले ही कल्पनाएँ कम आती हों...!

    लेकिन कविता में आगे की बात नहीं बताई कि क्या वज़ह रही जो "...देख लेते" कहा ?

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    1. कल्पनाओं के उस पक्ष का पटाक्षेप हो गया है विवाह के बाद...आगे की बात न जाने तो हमारे लिये अच्छा है।

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  14. जो देखना कहना रह गया, वे रोमांचक क्षण ही रचते है काव्य :)

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    1. मन के घनीभूत भाव ही कविता में आकर बहते हैं।

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  15. आज --

    जी भर देख लेते ।



    प्रवीण जी --

    चौदह घंटे देख ही चुके थे--

    आज में तो बाकी बचे मात्र दस घंटे-

    तो इरादा क्या था -

    चौबीस घंटे कि चौबीसों घंटे -

    पथ गुजरता रहा,

    ट्रेन चलती रही

    मन मचलता रहा

    साथ खलता रहा --

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    1. दिन भर उसी में बीता, शेष दस घंटे उन भावों के संजोने में गये।

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  16. जी, तब राहें अक्सर फिसलन भरी ही होती है :)

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    1. हम किसी तरह स्थिर रहे, बस कविता में व्यक्त किया।

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  17. क्या बात है. इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति.

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  18. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  19. bahut sundar sir....har shabd prem se paripurn....

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    1. पता नहीं वह प्रेम था या अवलोकन, या मन की अभिव्यक्ति।

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  20. नहीं हाँ की,
    बात मन की,
    बिन कहे ही कह गये थे,
    आज जी भर देख लेत...
    वाह!!!!बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी प्रवीण जी,....बेहतरीन रचना...

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  21. वाह ! बहुत ही सुन्दर चित्रण है भावनाओं का

    ऐसे ही हमने भी बहुत सारे सुन्दर चित्रण किये थे, परंतु घर में ही धुरविरोधियों ने हमारी वो धरोहर रद्दी में बेच दी। अब सोच रहे हैं, ऐसे चित्र वापिस खीचे जायें, हालांकि आप भी जानते हैं कि अब यह बहुत मुश्किल होगा :)

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    1. याद कर कर के ऐसे चित्र पुनः उकेरिये।

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  22. वाह ! बहुत ही सुन्दर चित्रण है भावनाओं का

    ऐसे ही हमने भी बहुत सारे सुन्दर चित्रण किये थे, परंतु घर में ही धुरविरोधियों ने हमारी वो धरोहर रद्दी में बेच दी। अब सोच रहे हैं, ऐसे चित्र वापिस खीचे जायें, हालांकि आप भी जानते हैं कि अब यह बहुत मुश्किल होगा :)

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  23. अहा,अहा :):)...क्या खूबसूरती के साथ आपने जवाब दिया है...
    अब आपको वापस जवाब देना ही पड़ेगा,वो भी जल्दी ही :P

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    1. तभी हम कह रहे थे कि कभी हमारे साथ यात्रा किया करो।

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  24. विवाह से पहले ऐसे रंग थे तो आज तो क्या बात होगी ... कभी भाभी से मिलेंगे तो पूछेंगे ...

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    1. आजकल मन को बहुत बाँधकर रखे हुये हैं, पूछ लीजियेगा।

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  25. तुम न ऐसे खिलखिलाती, ना मेरे मन को लुभाती,
    कुछ बताना चाहकर भी, तुम न यूँ मन को छिपाती।
    नहीं हाँ की,
    बात मन की,
    बिन कहे ही कह गये थे, ... उस वक़्त के एहसास ...... बहुत सुन्दर

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    1. उस समय भावनायें उबाल पर होती हैं, शब्दों में बहना आवश्यक है।

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  26. मन के भावो को उकेरती सुंदर कविता ...

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  27. मन को लुभाती हुई सुन्दर रचना..

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  28. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  29. यात्रा के निष्कर्ष ये उद्गार बेहद कोमल और सुन्दर हैं...
    मन तो सदा यात्रारत रहता है... व्यक्त होते रहें उद्गार यूँ ही!

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    1. यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव था, उस यात्रा के हर पल को जीना।

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  30. ऐसा हि तो होता है .

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    1. सबके साथ यही भाव उठते होंगे।

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  31. waah waah man ko choo gayi, ekdum lajawab likha hai.

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    1. यात्रा के समय मन हवा में ही था, हर समय, हमारा भी।

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  32. हर बात पे महके हुए जज़बात की खुशबू,

    याद आई बहुत पहली मुलाक़ात की खुशबू,
    होठों में अभी फूल की, पत्ती की महक है,
    साँसों में बसी है तेरी मुलाक़ात की खुशबू,

    आंखें कहना चाहती थीं वो तमाम बातें,
    पर लब थे कि उलझे रहे निगाहों में उनकीं,
    दिल था कि तजबीजता रहा ख़्वाब की हकीकत,
    और ख़्वाब थे बेताब, होने को हकीकत,
    वक्त था कि ठहरा ही नहीं,
    बिखर न पाई बातें,
    खुशबू सी मगर,
    यादों के सहारे पहले भी थे,
    आज फिर संजों लायें हैं,
    यादें ही उनकीं |

    उन्हें तो पढ़ना भी आसां नहीं,
    उनपे लिखना भी आसां नहीं,

    इबारत सी बन गई वो ज़िन्दगी की मेरी,
    इबादत ही हो गई ज़िन्दगी की मेरी |

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    1. उसके बाद तो कभी देखना नहीं हुआ, वही स्मृति अमिट बनी हुयी है।

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  33. ना एकाकी इस हृदय में, याद अपनी छोड़ जाती,
    बढ़ी जाती जीवनी यूँ, बीच पथ न मोड़ जाती।
    जो था कहना,
    और कितना,
    बोलने से रह गये थे,
    आज जी भर देख लेते।४।

    ....लाज़वाब! बहुत भावमयी अभिव्यक्ति....

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    1. काश कुछ और साथ रहते तो और बातें होतीं, मन की मन से।

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  34. सही ही तो है ऐसा ही होता है शायद सभी के साथ शादी के पहले ;) बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति...

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    1. बहुत धन्यवाद आपका, हर बार ऐसा नहीं हुआ, वह यात्रा विशेष थी।

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  35. हर बार ये डिस्क्लेमर क्यूँ लगाना पड़ता है...यह विवाह-पूर्व लिखा गया था...:)
    हम यूँ ही समझ जाएंगे :)

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    1. नहीं लगायेंगे तो वर्तमान की कविता समझ कर नाप दिये जायेंगे।

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  36. Anonymous17/3/12 17:59

    Behad khoobsurat.....

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  37. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  38. आहा आहा ..कुछ न कह कर भी समझा जा सकता है. पर कहना सीख लें तो ज्यादा अच्छा हो :)
    बहुत ही सुन्दर कविता.

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    1. अब कहना सीख भी लिया तो एक से ही कह पायेंगे।

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  39. सुन्दर...मनभावन गीत....

    लो आज छेड ही देते हैं उस फ़साने को,
    तेरी चाहत में थे हाज़िर ये दिल लुटाने को।

    चाहतों की भी कोई उम्र श्याम’ होती है,
    उम्र की बात भी होती है क्या सुनाने को ।

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    1. आपकी इस बात से हिम्मत खुल रही है।

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  40. वाह. वाह. वाह. ऐसी सहज प्रस्फुटित कविताएं विवाह के पहले ही लिखी जाती हैं। रहा सवाल कहने का तो ऐसे मामलों में होठ चुपचाप बोलते हैं।

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    1. चेहरे का एक एक भाव बोलता है।

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  41. bahut sunder bhav prakat kiye hai ...........

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  42. विवाह-पूर्व के इतिहास का यों ही आभास देते रहें !

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    1. विवाह पूर्व का इतिहास और भूगोल, दोनों ही मर्यादित रहा। बस जो भी रहा है, वह कविताओं में रहा।

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  43. बहुत सुंदर मनभावन अभिव्यक्ति,बेहतरीन कविता ,......

    MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....

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  44. बहुत भीनी-भीनी सी अभिव्यक्ति .......

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  45. नहीं हाँ की,
    बात मन की,
    बिन कहे ही कह गये थे,
    आज जी भर देख लेते।

    बहुत प्यारी रचना...
    यह मधुर स्मृतियाँ जीवन का आधार बनाने में समर्थ हैं ....
    शुभकामनायें!

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    1. वह यात्रा तो कभी नहीं भूलेगी, सशक्त आधार है वह भाव-संप्रेषण का।

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  46. बहुत से अनकहे संवाद कविता के माध्यम से ही निकल पाते हैं। अगर कह गए होते, तो कवि थोड़े होते।

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    1. सच कहा आपने, हम कवि ही रहे, प्रेमी न हो पाये।

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  47. ’अभि’ बधाई के पात्र हैं जो बरसों पुरानी आपकी यात्रा-स्मृति ताजा कर दिये:)

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    1. अभि की हर यात्रा तो व्यग्रता भरी रही है, उसी का उत्साह बढ़ाने के लिये यह बताना पड़ा।

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  48. निस्‍सन्‍देह सुन्‍दर।

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  49. बेहतरीन...अपनी आवाज में सुनाते जरा....तो आनन्द आ जाता!!

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    1. बहुत सुन्दर, बधाई.

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    2. आवाज भर आती, बस इसीलिये नहीं गाया।

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    3. :) पढ़कर लग गया था कि बहुत रुमाल शहीद हो चुके होंगे लिखते वक्त ही ...

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    4. आँसू तो नहीं पर भाव अवश्य भर गये थे।

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  50. आज जी भर देख लेते... के साथ रिद्म मिलता तो नवगीत सुंदर हो जाता।

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  51. बेहतरीन और शानदार रचना

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  52. fantastic expressions..
    thoughts so deep, yet so simply put..

    one word.. Beautiful !!!

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    1. जो दिखा, जो लगा, वह व्यक्त कर दिया।

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  53. मनभावन श्रृंगार रचना... सुन्दर - किशोर भाव.

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  54. आपकी कविता पढ़ कर होंठों पर मुस्कान सी आयी और याद आई लम्बी रेल यात्रायें ! आपकी कविता शायद कईयों की अनभूति की आवाज़ बन गई है

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    1. यदि मुस्कान आयी है तो आप पर भी यह बीता होगा।

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  55. बहुत सुंदर रचना...

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  56. एक सुंदर मन व हृदय की अति सुंदर प्रेममयी अभिव्यक्ति।

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    1. पता नहीं उस समय कैसा था मन या हृदय कैसा था, लिखना आता था, बोलना नहीं।

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  57. देखने देखने में क्या कुछ छूट गया
    यह पता नहीं चला

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    1. भावों को इतना विस्तृत नहीं फैला पाया।

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  58. सर जी विवाह पूर्व की सोंच भी लाजबाब है !यही तो विवाह का अंतर है !

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    1. विवाह के बाद सोच एकांगी हो लेती है..

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  59. एकाकी जीवन की धुनें ही मधुर होती हैं

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    1. एकाकी जीवन में बहुरंगी संभावनायें भी होती हैं।

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  60. badi khoosurti se bhawon ko utara hai....

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  61. aapki kavitaein kam hi padhne milti hain...bahut acchi....

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    1. कवितायें मन के भावों के घनीभूत होने पर बहती है..

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  62. यह कविता तो "पैलेस ऑन व्हील्स" है!!!

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    1. अभी पैलेस ऑन व्हील्स में बैठना शेष है।

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  63. वाह: बहुत सुंदर प्रेममयी अभिव्यक्ति।

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  64. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    आप तो गढ़ी और पढी दोनों में कमाल करते हैं...इस उत्कृष्ट लेखन के लिए ..बधाई स्वीकारें



    नीरज

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  65. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    आप तो गध्य और पध्य दोनों में कमाल करते हैं...इस उत्कृष्ट लेखन के लिए ..बधाई स्वीकारें



    नीरज

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    1. मन के बहते भाव जब गाढ़े हो जाते हैं तो कविता बनकर निकल जाते हैं।

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  66. छिपा हाथों बीच आँखें, ना मुझे यूँ देख जाती,
    सर झुकाकर तुम न केशों के किनारे मुँह छिपाती.......सुन्दर अभिव्यक्ति

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  67. अत्यंत सुंदर कविता प्रवीण जी

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  68. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......

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  69. हम हृदय का उमड़ता आवेग कुछ पल रोक लेते,
    समय यदि कुछ ठहर जाता, आज जी भर देख लेते।

    बहुत अच्छा गीत, मन की गहराइयों से निकला हुआ । बधाई!

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    1. जो बातें गहरी छूती हैं, उनकी प्रतिक्रिया भी गहरी होती है।

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  70. Anonymous20/3/12 18:02

    सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  71. जो था कहना,
    और कितना,
    बोलने से रह गये थे,
    आज जी भर देख लेते।४।
    पाण्डेय जी क्या लिखूं ???.....गजब की अभिव्यक्ति | बार बार पढ़ने का मन हुआ ...बस मैंने पूरी कविता का प्रिंट ही निकाल लिया है |

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    1. बहुत आभार आपका, सच में बहुत कुछ बोलने से छूट गया था।

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  72. सघन भावों की अद्भुत अभिव्यक्ति ....

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  73. bahut hi sunder likha hai .............exams ke waqt bilkul sahi rachna

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