28.12.11

जलकर ढहना कहाँ रुका है

आशा नहीं पिरोना आता, धैर्य नहीं तब खोना आता,
नहीं कहीं कुछ पीड़ा होती, यदि घर जाकर सोना आता,  

मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया, 

औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा, 

अधिकारों की होड़ मची थी, जी लेने की दौड़ लगी थी,
भाँग चढ़ाये नाच रहे सब, ढोलक परदे फोड़ बजी थी, 

आँखें भूखी, धन का सपना, चमचम सिक्कों की संरचना,
सुख पाने थे कितने, फिर भी, अनुपातों से पहले थकना, 

सबके अपने महल बड़े हैं, चौड़ा सीना तान खड़े हैं,
सुनो सभी की, सबकी मानो, मुकुटों में भगवान मढ़े हैं, 

जिनको कल तक अंधा देखा, जिनको कल तक नंगा देखा,
आज उन्हीं की स्तुति गा लो, उनके हाथों झण्डा देखा,

सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,

आँसू बहते, खून बह रहा, समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
आज शान्ति के शब्द न बोलो, आज समय का शून्य बह रहा,

आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
जीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,

मन का कहना कहाँ रुका है, मदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?

72 comments:

  1. जलेंगे तभी तो ढलेंगे !

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  2. आशाओं को जीवित रखना,जीवन में संचार रहेगा,
    कुछ जग की ,कुछ मन की करना,जीवन सदाबहार रहेगा !!

    शुभकामनाएँ !

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  3. मन का कहना कहाँ रुका है'
    रूकना भी तो नहीं चाहिए ...

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  4. ''एक पुरुष, भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह''

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  5. यदि घर जाकर सोना आता ...
    या बेचैन होना नहीं आता ...
    या दिमाग ही नहीं होता
    या दिल ही नहीं होता ...
    हर संवेदनशील व्यक्ति आजकल इसी वेदना से जूझ रहा है !

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  6. बहोत अच्छी रचना प्रवीण जी

    नया हिंदी ब्लॉग
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  7. Bahut sundar, gujre vakt kaa bhee adbhut varnan kiyaa hai !

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  8. औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा, घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा
    सर जी यही सच्चाई हैं

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  9. यही तो संसार की नियति है

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  10. औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा, घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा,

    यथार्थ को कहती पंक्तियाँ

    सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है, जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
    सच और केवल सच ..
    लग रहा है की सबके मन के भावों को इस रचना में समाहित कर लिया है ..

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  11. जीवन का सुन्दर चित्रण है इस कविता में... बहुत सुन्दर...

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  12. मन का कहना कहाँ रुका है,
    मदमत बहना कहाँ रुका है,
    हम हैं मोम, पिघल जायेंगे,
    जलकर ढहना कहाँ रुका है?
    mann ki nirantarta kaha ruki hai

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  13. वाह ! सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति !

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  14. जलकर ढहना कहाँ रुका है
    यही शाश्वत सत्य है।

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  15. समय को शून्य पूरी गुबार लिए बहता है और बहा भी देता है ..

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  16. बहुत प्रभावशाली रचना !

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  17. आँसू बहते, खून बह रहा,
    समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
    आज शान्ति के शब्द न बोलो,
    आज समय का शून्य बह रहा,

    गहन ..गंभीर रचना ...!!

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  18. आप शब्दों के शिल्पकार हैं हम जानते थे ई बात पहिले से ही , आप बार बार जना देते हैं हो ।

    बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  19. आपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।

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  20. बहुत ही ऊंचे पाए की रचना है यह बोध कथा सी जीवन को दृष्टा भाव से निहारती तौलती विश्लेषित करती सभी पात्रों को खंगालती समूचे परिवेश को ...

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  21. भावमय करते शब्‍दों का संगम ... ।

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  22. आपके गीतों के तो प्रवाह में ही खो जाते हैं हम.

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  23. जीवन की परतों को मोहक रचना में पिरोया है ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  24. मन का कहना कहाँ रुका है,
    मदमत बहना कहाँ रुका है,
    हम हैं मोम, पिघल जायेंगे,
    जलकर ढहना कहाँ रुका है?

    प्रभावशाली रचना !

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  25. is sansar ki yeh hi niyati hai ..............

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  26. जिंदगी का फलसफा आपकी कविताओं में स्पष्ट नजर आता है.

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  27. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29 -12 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... जल कर ढहना कहाँ रुका है ?

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  28. @ "औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
    घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा "

    इन दोनों पाटों में पिसकर,जीवन का अर्थ समझ लेना
    स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !


    शुभकामनायें आपको !

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  29. जीवन भी है, दर्शन भी है
    और समय का दर्पण भी है.

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  30. वाह ,कविता का सृजन काल भी यदि दें तो अच्छा रहेगा यद्यपि ऐसी कवितायें दिक्काल से निरपेक्ष कालजई होती हैं !

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  31. सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
    जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,

    बहुत खूब सर!

    सादर

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  32. सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
    जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,

    वाह क्या सच्चाई कही है...बहुत सुन्दर रचना|

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  33. बहुत उम्दा प्रस्तुति

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  34. आज की हलचल में शामिल आपकी इस रचना ने दिल में भी हलचल मचा दी...
    बहुत खूब...
    सादर.

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  35. सरस एवं सुन्दर.

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  36. A very realistic creation --Badhaii.

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  37. A very realistic creation --Badhaii.

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  38. जीवन की सच्चाई बयां कर दी आपने
    अपनों के आश्वासन भी मिल जायं तो बहुत बड़ी बात है अपनापन तो न जाने कहाँ खो दया
    आज कीई इस भागदौड मे बहुत सुन्दर रचना
    आभार

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  39. बहुत ही सुन्दर रचना.... वाह! वाह!
    सादर बधाई...

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  40. औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा.......

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  41. 'आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
    जीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,'
    - आवाज़ उठाना बहुत ज़रूरी है .

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  42. आशा नहीं पिरोना आता, धैर्य नहीं तब खोना आता,
    नहीं कहीं कुछ पीड़ा होती, यदि घर जाकर सोना आता,

    मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
    सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,
    Gazab! Waise to har pankti gazab kee hai!
    Naya saal bahut mubarak ho!

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  43. औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
    घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा
    यथार्थ कहती पंक्तियाँ

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  44. वर्तमान सामाजिक परिदृश्य का बेबाक चित्रण.

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  45. वर्षांत में एक और उत्तम रचना!!

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  46. प्रवीण भाई इस छंदबद्ध और उत्तम कोटि की काव्यात्मक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ

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  47. जीवन का सच्चा चित्रण दिखलाती रचना ...

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  48. सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
    जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,

    sateek vyang.

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  49. सत्य वचन! सुन्दर कविता

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  50. सबके अपने महल बड़े हैं, चौड़ा सीना तान खड़े हैं,
    सुनो सभी की, सबकी मानो, मुकुटों में भगवान मढ़े हैं,

    ABSOLUTELY CORRECT WORDS,

    NICE ONE
    follow me on:
    http://rhythmvyom.blogspot.com/

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  51. नव-वर्ष की शुभकामनाएँ !

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  52. कुछ पंक्तियॉं तो बहुत ही प्रभावी हैं। अच्‍छी लगी कविता।

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  53. औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
    घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा, हम हैं मोम पिघल जायेंगें ,जलकर गलना कहाँ रुका है .यही जीवन चक्र है .मोम से फिर बनों मोमबत्ती फिर जलो पिघलो ढलो

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  54. बहोत अच्छी रचना कि है आपने प्रवीण जी ।

    हिंदी ब्लॉग
    हिन्दी दुनिया ब्लॉग

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  55. आँसू बहते, खून बह रहा, समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
    आज शान्ति के शब्द न बोलो, आज समय का शून्य बह रहा,
    सुंदर प्रस्तुति
    vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

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  56. बहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..

    नई पोस्ट --"काव्यान्जलि"--"नये साल की खुशी मनाएं"--click करे...

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  57. "मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
    सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,"

    "मन का कहना कहाँ रुका है, मदमत बहना कहाँ रुका है,
    हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?"


    sanvedanseelta ki parakashtha.....
    khoobsoorat....!!

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  58. एक एक बात बहुत ही गुंढ अर्थ लिए हुए.... सुंदर प्रस्तुति. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.

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  59. वाह! बहुत सुन्दर आनंदमय प्रस्तुति है आपकी.

    प्रवीण जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष
    २०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.आपके सुवचन सदा ही बहुत प्रेरक होते हैं.

    मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
    में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.

    नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  60. उत्तम संदेश देती उम्दा रचना...

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  61. सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
    जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
    ...........
    हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?
    -
    सत्य कथन है.
    बहुत अच्छी लगी यह कविता.

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  62. छन्दहीन होते समय में जीवन-छन्द जगाती छान्दस कविता . प्रेरक कविता .

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  63. aapki is kavita ne nishabd kar diya.kya bhaav kya shabd sanyogen hai....laajabaab,bejod.

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  64. आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
    जीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,
    ......नमन !!!

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  65. सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
    जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
    यही सत्य है और इसके आगे सत्य का कोई भी अस्तित्व नहीं है क्योकि आज वही सत्य है जो जितनी शक्ति से साथ बोलने की क्षमता रखता हो . मूल्यों की परिभाषाएं ऐसे ही बदलती रहेंगी.

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  66. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (7) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  67. परम सत्य कहा ;
    यथार्य कहा जी

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  68. परम सत्य कहा जी ;
    यथार्थ कहा है

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