17.12.11

शत प्रतिशत

कितना बड़ा आश्चर्य है कि जहाँ एक ओर मन को सदा ही नयापन सुहाता है वहीं दूसरी ओर वह किसी के बारे में पुरानी धारणाओं को इतना दृढ़ कर लेता है कि उसमें कुछ नया देखने के लिये शेष बचता ही नहीं। मन ऊबने लगता है पर पुरानी धारणायें नहीं त्यागता, पति पत्नी घंटों चुपचाप बैठे रहते हैं पर कोई नया शब्द नहीं बोलते हैं, किसी की बात में कुछ नयापन ढूढ़ने के स्थान पर उसके बारे में वक्र टिप्पणी तैयार करने लगता है मन। पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन।

प्रकृति के पास मन के लिये पर्याप्त आहार है। प्रकृति में नित नया घटता ही रहता है, पेड़ों में नित कोपलें फूटती हैं, पुष्प खिलते हैं, फल रसपूर्ण हो रंग बदलते हैं। मानव मन में भी सृजनात्मकता गतिमान होती है, नये विचार कौंधते है। बच्चों का खिलखिलाना, चिडियों का चहकना, झमझम बारिश का बरसना, सूरज का लालिमामय हो सहसा उगना और अस्त हो जाना, सब हमारे आस पास हो रहे नयेपन के सुन्दर संकेत हैं। भविष्य का अनिश्चय अपने आप में ही एक नयापन है हम सबके लिये। जब सब ओर सब कुछ हर पल बदल रहा है तो ऊब कैसी और किससे।

क्या पहले से ही इतना भर लिया है हमने कि नये के लिये कोई स्थान ही नहीं? क्या पहले से भरा हुआ इतना सड़ने लगा है कि उसमें नकारात्मकता व ऊब की गंध आने लगी है? पूर्वाग्रहों का ग्रहण हमारे जीवन उत्सव पर काली छाया डालकर तो नहीं बैठा है? क्या पहले से ही व्यस्त हमारी इन्द्रियों में भविष्य की संभावनायें अस्तप्राय हैं।

कहने को तो प्रेमभरी एक दृष्टि ही सक्षम होती श्रंगार का संवाद ढोने में। किसी के सर पर धीरे से फिराया गया हाथ जीवन भर का सहारा बताने में समर्थ होता। आँख बन्द करते हुये सर हिला देना आश्वासन के सारे अध्याय कह जाता। शब्दों से हमने उन भावों का गाढ़ापन कम कर दिया है। विश्वास को दृढ़ मानने के लिये शब्दों में उसे व्यक्त करने की परम्परा हमारी असहजता का आधार है। सुबह शाम अपने प्रेम की शाब्दिक अभिव्यक्ति की आदत बना चुके युगल भावों और शब्दों पर बराबर का अविश्वास किये बैठे हैं।

उत्साह से किसी कार्य में लगना और शीघ्र ही उससे ऊब जाना आधुनिकता की नियति बन गयी है। यदि तुलना की जाये तो पेट भरे हुये व्यक्ति को नया व्यंजन अच्छा तो लगता है पर वह उससे शीघ्र ही ऊब जाता है। स्वाद के लिये भूख लगनी आवश्यक है। नयापन हर क्षण में विद्यमान है पर उसे पूरा सहेज पाने के लिये जो भूख हो उसका प्रकटीकरण उस कार्य में हमारे शत प्रतिशत जुड़ाव से हो।

एक प्रयोग करें। व्यवहार की सारी कृत्रिमता रात भर ओढ़ी हुयी चादर के साथ ही बिस्तर पर छोड़कर उठें, अपने पूरे पूर्वाग्रह स्नान करते समय बहा दें, सुबह से शाम तक प्रयासपूर्वक भावों को व्यक्त करने के लिये शब्दों से अधिकतम बचें, अपने हर कार्य, हर संवाद, हर स्पर्श पर शत प्रतिशत ध्यान दें। हो सकता है कि ऊर्जा थोड़ी अधिक लगे, आप वो न लगें जो आप हैं, अन्य आप पर भृकुटियाँ ताने, संभव है हँसें भी, हो सकता है कि आपको बहुत अटपटा भी लगे, असहज भी लगे, पर दिन को विशेष मानकर यह निभा डालिये।

रात को सोते समय आपको पुनः आश्चर्य होगा, पर इस बार आश्चर्य का विषय भिन्न होगा। तब आपके लगेगा कि एक दिन भर में कितना कुछ नया है, मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। इस जीवन के लिये प्रकृति कितने दृश्य समेटे बैठी है, हम ही थेथर की तरह आँख बन्द किये बैठे हैं। जीवन का व्यर्थ किया समय आये न आये पर हर व्यक्ति, हर संबंध में नयापन और रोचकता से भरा दिखेगा भविष्य। घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।

बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें।

64 comments:

  1. जेन बौद्ध क्षणवाद के चाय की चुस्‍की की तरह...

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  2. प्रकृति का नयापन हमसे अलग है.वह समानधर्मा तब होता है जब हम 'नया-वस्त्र' धारण करते हैं.

    हमारा पुरानापन अनुभव के अर्थ में जहाँ हमें सीख देता है,वहीँ परंपरा और विकास के सन्दर्भ में जड़ता. इसलिए पुराने और नये दोनों का अलग महत्व है !

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  3. घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।

    सच है नया कुछ जीने समझने के लिए पहले मन को खाली करना आवश्यक है ..... अच्छा जीवन सूत्र लिए है पोस्ट......

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  4. हमने अपने आप को बहुत ही नकली बना लिया है। और अब खुद को खुद के भीतर से खुद का असली खोजना बेहद मुश्किल होता जा रहा है।

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  5. बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें।

    सार्थक आलेख ....मन पर बहुत कुछ निर्भर करता है ...सकारात्मकता हर पल जीवन को बहुत कुछ नया देती है .पुराना तो ज़रूरी है क्योंकि उसी के आधार पर नए की रचना होती है ......बस मन ठान तो ले .....

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  6. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय ।

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  7. 'पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन।'
    इस सूक्ति से वाक्य ने आलेख के अर्थ स्पष्ट कर दिए...!
    आपका कोटि कोटि आभार... सुबह सुबह ऐसा ही कुछ पढ़ना चाहते थे... ऐसे ही कुछ जीने की चाह लिए उठे... अब मन प्रसन्न है!

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  8. जीवन हर पल नया है... उसे लेने का तरीका सही बताया आपने

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  9. मनुष्य का जीवन-मृगमरीचिका है,जो है वह कम है,जो नहीं है,वहां सपने हैं.रामायण-महाभारत भी इसी मृगमरीचिका का ही एक रूप है.
    आपने सही कहा-बस आज हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान लें.

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  10. बचपन में नयापन ही ललचाता है क्‍योंकि उस समय पुराना कुछ नहीं होता और बुढ़ापे में पुराना ही सुकून देता है क्‍योंकि पुराना बहुत ज्‍यादा होता है।

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  11. अच्‍छा विचार पुंज है।

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  12. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  13. प्रकृति और हममें बस इस पूर्वाग्रही प्रवृत्ति का ही अंतर है ........

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  14. निराशा जीवन के लिए दीमक की तरह है और धीरे धीरे इस से जीवन में मोह कम
    होने लगता है . जैसे भी वो निराशा के आवरण को जीवन पे हावी नहीं होने देना चाहिए.
    एक सकारात्मक लेख.

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  15. मैंने हमेशा महसूस किया है और आज शत-प्रतिशत प्रमाणिकता से कह सकता हूँ की आपका चिंतन आपके ब्लॉग-नाम से शत-प्रतिशत साम्य रखता है............................. हर पोस्ट में परीपाटित दार्शनिक वितंडतावाद से इतर, मानवीय दौर्बल्य तजकर झंझावातों से टकराने के सूत्र यहाँ मिलतें है, चाहे आप उन्हें शब्द दें या ना दें ................ मैं प्रवीण पाण्डेय को जानता नहीं हूँ, पर जितना समझ सका हूँ उसका शत-प्रतिशत सार है ------
    न दैन्यं न पलायनम्

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  16. एक प्रयोग करें। व्यवहार की सारी कृत्रिमता रात भर ओढ़ी हुयी चादर के साथ ही बिस्तर पर छोड़कर उठें, अपने पूरे पूर्वाग्रह स्नान करते समय बहा दें, सुबह से शाम तक प्रयासपूर्वक भावों को व्यक्त करने के लिये शब्दों से अधिकतम बचें, अपने हर कार्य, हर संवाद, हर स्पर्श पर शत प्रतिशत ध्यान दें। हो सकता है कि ऊर्जा थोड़ी अधिक लगे, आप वो न लगें जो आप हैं, अन्य आप पर भृकुटियाँ ताने, संभव है हँसें भी, हो सकता है कि आपको बहुत अटपटा भी लगे, असहज भी लगे, पर दिन को विशेष मानकर यह निभा डालिये....

    tough task but I will try for sure...

    .

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  17. N surf naya pan ... Safalta Bhi tabhi haath Aati hai jab kaary mein 100 pratishat diya jaay ....

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  18. कृत्रिमता का परित्याग कर नवीनता का सन्देश!!

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  19. सच है जीवन में नया कुछ करने व सीखने के लिए बहुत कुछ है.. उसके लिए एकाग्रता बहुत जरूरी है.बेहतरीन प्रस्‍तुति ।....

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  20. purana jahan khada ho jaata hai vahan se naya shuru hota hai jeevan chakra esa hota hai ki naya chakra lagakar bhi purane ke paas aakar thahrta hai kyunki uska apna mahatv hai.bhir bhi jeevan ko naye arth dene ke liye gatiman banaaye rakhne ke liye naye tatthyon ko bhi apnan jaroori hai.
    bahut umdaa aalekh humesha ki tarah...kuch na kuch naya...

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  21. पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन. क्या बात है-- सुन्दर विचारणीय सूत्र.
    प्रवीण जी फुर्सत मिले तो कभी एक नज़र इधर भी, पीछे पीछे हम भी हैं लडखडाते से -
    'kewaljoshib.blogspot.com'

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  22. बिल्कुल सही कहा,
    अच्छी पोस्ट

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  23. संदेश उपयोगी है,पर अपनाना मुश्किल भी।

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  24. जीवन में नयापन लाने के लिए सार्थक सन्देश दिया है ..पर मन पीछे ही दौड़ता है ..

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  25. सर बहुत कुछ आधुनिक दर्शन में व्याप्त है !एक कहावत है - needy hurry and endless worry . gold will glitter day / night.

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  26. बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें……………सटीक और सार्थक सोच्।

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  27. शत-प्रतिशत ...

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  28. जे.कृष्णमूर्ति भी यही कहते हैं ‘फ़र्गेट पास्ट एक्स्पीरियंसेस’ तभी आपको नयापन दिखेगा। किसी सुंदर दृश्य को देखने में पहली बात जितना आनंद आता है उसे दुबारा देखने में नहीं आता!

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  29. घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।

    -अध्यात्मिक मोड में चल रहे हैं आपके साथ. :)

    प्रयास उचित सुझाया किन्तु इसके लिए भी अभ्यास करना होगा...



    जय हो महाराज की!!

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  30. नए को अपनाना ही पड़ेगा. नया पुराने को अपने आप हटा देता है.
    मौन में बड़ी शक्ति है. लेकिन इस शक्ति को काबू करना बड़ा मुश्किल.
    तजुर्बा करने में कोई बुराई नहीं, कुछ न कुछ अच्छा ही मिलेगा.

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  31. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  32. पहले हर क्षण में शत-प्रतिशत लेना तो सीख लें , तो देना भी हो जाएगा .

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  33. पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन...
    गहन आलेख।

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  34. यह प्रयत्न करके देखते हैं ....
    आभार आपका !

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  35. Life indeed is celebration.

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  36. ' मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। इस जीवन के लिये प्रकृति कितने दृश्य समेटे बैठी है, हम ही थेथर की तरह आँख बन्द किये बैठे हैं।'
    - सचमुच पूर्वाग्रह-रहित दृष्टि ही हर पल नवीनता दिखा कर मन में पुलक भर सकती है .

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  37. पते की बात कही है आपने

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  38. बहुत सुन्दर....बेहद सटीक..
    "मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। "
    सोचती हूँ ,आपकी सलाह मान ली जाये...
    कल सुबह का इन्तेजार है...

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  39. पहले हम खुद को तो अच्छी तरह जान समझ लें ,नहीं तो ऐसे प्रयोग परीक्षण खुद पर ही भारी पड़ सकते हैं ? कोअहम कोअहम :)

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  40. विचलित करने वाली मानसिक परिस्थितियों से गुजरते इसे पढना बहुत सुकून दे रहा है !

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  41. इंन्स्पायर करने वाला लेख !

    हमारे ब्लॉग पर भी आ के देखो प्रवीण जी !

    http://hindiduniyablog.blogspot.com/

    एक बार फ़िर से धन्यवाद इंस्पायर करने वाला लेख लिखने के लिये

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  42. आज का विषय भी नया है और चिंतन भी. नयापन नयी उर्जा अवश्य देता है.

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  43. behaad khoobsurat baat kahi hai aapne.

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  44. कृत निश्चयः
    रात को सोते समय आपको पुनः आश्चर्य होगा, पर इस बार आश्चर्य का विषय भिन्न होगा। तब आपके लगेगा कि एक दिन भर में कितना कुछ नया है, मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। इस जीवन के लिये प्रकृति कितने दृश्य समेटे बैठी है, हम ही थेथर की तरह आँख बन्द किये बैठे हैं। जीवन का व्यर्थ किया समय आये न आये पर हर व्यक्ति, हर संबंध में नयापन और रोचकता से भरा दिखेगा भविष्य। घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।
    बहुत खूब निसी बासर यही तो विडंबना है जीवन की .पुराने विचारों से चिपके रहने का ओबसेशन .

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  45. बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें
    sums the mantra

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  46. ‘फ़र्गेट पास्ट एक्स्पीरियंसेस’ तभी आपको नयापन दिखेगा। ---
    ---यदि पास्ट को फ़ोर्गेट कर देगे तो कैसे पता चलेगा कि नया..नया है...
    ---पास्ट के अनुभव ही किसी भी नये विचार, वस्तु को नया समझकर उसे और अधिक कुशल ,हितकारी एवं कल्याकारी बनाने के लिये प्रयास करते हैं ...यही विकास है...पुरा व नूतन का समन्वय....

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  47. .
    .
    .
    सही है !

    अपने सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त हो देखें दुनिया को, तो हर किसी में कुछ नया, कुछ अनुकरणीय, कुछ सकारात्मक दिखेगा सभी को...

    अच्छी सीख...



    ...

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  48. Very meaningful post Praveen Ji. Please write more such articles.

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  49. शत-प्रतिशत सत्य.

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  50. ''प्रकृति के यौवन का शृंगार
    करेंगे कभी न बासी फूल'' [कामायनी].

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  51. दृढ़ता , सजगता ही जीवन की कुंजी है

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  52. बौद्ध सिद्धांत व सह वैज्ञानिक तथ्य भी लगता है कि हर नये पल के साथ हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व ही नवीन हो जाता है,यह परिवर्तन शास्वत है व परमाणु स्तर पर विरंतर हो रहा है। इसीलिये यदि कुछ सत्य हो तो मात्र वर्तमान क्षण।

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  53. किसी के सर पर धीरे से फिराया गया हाथ जीवन भर का सहारा बताने में समर्थ होता। आँख बन्द करते हुये सर हिला देना आश्वासन के सारे अध्याय कह जाता।

    ....हरेक पंक्ति एक सूत्र वाक्य..सकारात्मक सोच लिये बहुत प्रेरक प्रस्तुति...

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  54. जबकि सच यह है व्यक्ति नित बदलता रहता है जो कल था वह आज नहीं है व्यतीत फिर व्यतीत है वर्तमान नहीं है भले मूल स्वभाव न बदलता हो फिर भी उठ बैठ के भाव में तो बदल आता ही है दिखता भी है पर हम अपने सांचे लिए घूमते हैं सारी दिक्कत यह है .उसी में डालके देखते हैं व्यक्ति को .हमारा अपना तंग नजरिया हमें यथार्थ से काटे रहता है .यहाँ इमेजिज़ बन जाती हैं .ऊपर से कहा यह भी जाता है इमेजिज़ डाई हार्ड .

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  55. Fully agree with u on this..
    we always shout Bring change, or life is string of changes... but we averse the change most. Even the slight change in schedule .....
    and then we're motivated to defend the status quo...

    intriguing post... and a fantastic read as ever !!

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  56. सुदर रचना बधाई .

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  57. जीवन में नई और अच्छी चीजे जुड़ती जानी चाहिए और पुराना और अच्छा निरंतर रहना चाहिए लेकिन जीवन की दृष्टि हमेशा नई होनी चाहिए. बहुत अच्छी पोस्ट. काश इसे सरे नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति पढ़ और आत्मसात कर सके.

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  58. sach hai sir.purana kachra saaf karna hi padega ab tabhi nai baton ke lie jagah banegi.....padhkar alag anubhav hua

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  59. केवल प्रकृति ही ही नित नूतन होती है क्‍योंकि वह अविराम, गतिशील है। हमारा ठहराव ही बासीपन या सडांध बन कर सामने आता है।

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  60. नया वर्ष आने ही वाला है ऐसे में आपने इस पोस्ट के म्ध्यम से बहुत ही सार्थक संदेश दिया है परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है लेकिन इस नए परिवर्तन को अपनाने के लिए पूराने अवसादों को भुलाना या हटाना ही पड़ेगा...

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  61. ▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर... साथ ही यह ब्लॉग देखकर भी अच्छा लगा... काफी मेहनत है इसमें...
    नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...

    मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
    [1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
    [2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
    .

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