24.12.11

बूढ़े बाज की उड़ान

बाज लगभग ७० वर्ष जीता है, पर अपने जीवन के ४०वें वर्ष में आते आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं। पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है और शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं। चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है। पंख भारी हो जाते हैं और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं। भोजन ढूढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना, तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, या तो देह त्याग दे, या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे, या स्वयं को पुनर्स्थापित करे, आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।

जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, तीसरा अत्यन्त पीड़ादायी और लम्बा। बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, अपना घोंसला बनाता है, एकान्त में और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया। सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है, अपनी चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं पक्षीराज के लिये। तब वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने की। उसके बाद वह अपने पंजे उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने की। नये चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता पंखों के पुनः उग आने की।

१५० दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा और तब कहीं जाकर उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान, पहले जैसी नयी। इस पुनर्स्थापना के बाद वह ३० साल और जीता है, ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।

प्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।

पंजे पकड़ के प्रतीक हैं, चोंच सक्रियता की द्योतक है और पंख कल्पना को स्थापित करते हैं। इच्छा परिस्थितियों पर नियन्त्रण बनाये रखने की, सक्रियता स्वयं के अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की, कल्पना जीवन में कुछ नयापन बनाये रखने की। इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों के तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं, हममें भी, चालीस तक आते आते। हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने लगता है, अर्धजीवन में ही जीवन समाप्तप्राय लगने लगता है, उत्साह, आकांक्षा, ऊर्जा अधोगामी हो जाते हैं।

हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं, कुछ सरल और त्वरित, कुछ पीड़ादायी। हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा, बाज के पंजों की तरह। हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित सक्रियता दिखानी होगी, बाज की चोंच की तरह। हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी, बाज के पंखों की तरह।

१५० दिन न सही, तो एक माह ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही, बाज की तरह।

बूढ़े बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे, इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।

(कुछ पाठकों ने बाज के जीवन की इस घटना पर संशय व्यक्त किया है। मैंने यह एक जगह पर पढ़ा था, इसकी तथ्यात्मक सत्यता या असत्यता प्रमाणित नहीं की जा सकती है। यदि यह कहानी भी हो तब भी सत्य से अधिक प्रभावी है। जीवन नवीन ऊर्जा की स्तुति करता है, नवीनता के लिये प्रयास और पीड़ा दोनो ही लगते हैं)

92 comments:

  1. बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है।

    अत्यंत ज्ञानवर्धक और चेतना व स्फूर्ति प्रदान करता ...बहुत बढ़िया आलेख ...!!बहुत लोगों के मन को नया उत्साह देगा ऐसा मेरा विश्वास है ...आज आपकी ये पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की है ...कृपया अपने विचारों से अवगत कराईयेगा ...!!abhar.

    ReplyDelete
  2. बाज के बारे में बेहद मह्त्वपूर्ण जानकारी मिली, उम्र की, सबसे बेहद बाद दर्दनाक महीने झेल कर फ़िर से कुछ वर्ष सब कुछ नया-नया कुदरत भी कमाल है।

    ReplyDelete
  3. आज तो दत्तात्रेय की याद आ गयी जिन्होंने २४ पशु पक्षियों को अपना गुरु मान लिया था .....बाज के सहारे जीवन के शैथिल्य को मिटाने और आकांक्षाओं के पुनर्जीवन का आह्वान करती पोस्ट!

    ReplyDelete
  4. अपनी असीमित ऊर्जा को पहचानना और उसे संरक्षित रखना बड़ा जीवन-कौशल है.बाज के बहाने हम उससे यह सीख ले सकते हैं.जिजीविषा किसी में भी कमाल का परिवर्तन ला सकती है.

    ReplyDelete
  5. उखाड़ कर रोपे गए पौधे अधिक मजबूत होते हैं.

    ReplyDelete
  6. काश आदमी के पास उसके शरीर को भी बाज की तरह शरीर को नया करने की क्षमता होती..

    ReplyDelete
    Replies
    1. Anonymous2/6/22 17:33

      upay hai par sadhana karna parega .swami vivekanadjaisa and gautam budhh jaisa

      Delete
  7. बहुत कुछ बताया ...

    ReplyDelete
  8. प्रेरणास्पद लेख

    ReplyDelete
  9. बहुत ही अच्छी पोस्ट. मुझे इस पोस्ट की ही जरुरत थी . धन्यवाद प्रवीण भाई

    ReplyDelete
  10. आपकी पोस्ट हृदयम पर लगा रहा हूँ प्रवीण जी

    https://www.facebook.com/groups/vijaysappatti/

    ReplyDelete
  11. बाज़ के बारे में इतनी विस्‍तृत जानकारी दी आपने ... बहुत अच्‍छा लगा ..आभार ।

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर. मैं सोच रहा हूँ अब मुझे क्या शिक्षा लेनी चाहिए.

    ReplyDelete
  13. bahut prabhaav shali prernadayak post.manav 50yrs ki umra ke baad shareer to naya nahi bana sakta kintu apne vradhdh vicharon me sudhaar jaroor kar sakta hai.tabhin use khushi bhi haasil hogi.baaj ke vishay me itni jaankari pahli baar mili.aabhar.

    ReplyDelete
  14. कहानी प्रेरणास्पद है, लेकिन शायद यह केवल एक कहानी है, सत्य नहीं।

    ReplyDelete
  15. बेहतरीन आलेख।


    सादर

    ReplyDelete
  16. सही बात है, संतुलित परिवर्तन की गुंजाईश तो रखनी ही चाहिए जीवन में ! वैसे बुरा न माने तो बाज और गरूड दो अलग पक्षी है आपने इनके बीच ' या " शब्द इस्तेमाल किया है !

    ReplyDelete
  17. आपकी हर पोस्ट कितनी Inspirational होती है!!

    ReplyDelete
  18. काश कि सभी बाज से प्रेरणा लेते और खुद को निखारने की कोशिश शुरू करें ।

    ReplyDelete
  19. इंसान बद्क़िस्मत है.
    उसके सींग तो क्या, पूंछ तक नहीं उगती... एक वक्त गुजर जाने के बाद

    ReplyDelete
  20. क्या सचमुच हर बाज पक्षी ऐसा करता है? न भी करता हो तो भी आपके आलेख की कीमत घट नहीं जाती इच्छा, सक्रियता और कल्पना मनुष्य को अंतिम श्वास तक अर्थपूर्ण जीने के लिये आवश्यक है, बहुत बहुत बधाई व आभार इस सुंदर रचना के लिये...

    ReplyDelete
  21. 'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
    राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
    जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
    तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं

    केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
    दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
    अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
    और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है

    राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
    इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
    इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
    पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है

    पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
    चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
    ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
    घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

    ReplyDelete
  22. ज्ञानवर्धक रचना

    ReplyDelete
  23. ऊर्जा की स्तुति के लिए हर उपमा शिरोधार्य है .

    ReplyDelete
  24. सर्वथा नवीन है यह मेरे लिए...पर अथाह प्रेरणा मिली...शब्द /जीवन अंतरस्थल तक पहुंचा...

    शब्दों में तो आभार नहीं व्यक्त कर सकती आपका...

    साधुवाद !!!!

    ReplyDelete
  25. बहुत प्रेरक आलेख !
    अंतिम क्षण तक सक्रिय और ऊर्जस्वित बने रहने की कोशिश तो मनुष्य कर ही सकता है .

    ReplyDelete
  26. इच्छा-शक्ति की ऊँची उड़ान ....
    सार्थक आलेख |

    ReplyDelete
  27. ऊर्जा व स्फूर्ति दायक जीवन कौशल की प्रेरणा देते आलेख के लिये आभार।

    ReplyDelete
  28. बेहद सारगर्भित और प्रेरणादायी कथा/ सत्य जो भी हो.नई उर्जा को संचारित करती है यह पोस्ट आपकी.

    ReplyDelete
  29. अदभुद...अदभुद...
    प्रतीकात्मक रूप से बड़ी गहरी बात कह गयी आपकी रचना...
    बधाई.

    ReplyDelete
  30. सरकारी नौकरी वाले लोगों की ज़िन्दगी में यह सिच्युएशन आजकल साठवें वर्ष में आता है जब उसे चोंच, पंख और पंजे झाड़-उतारकर फिर एक नई ज़िन्दगी जीने की योजना बनानी पड़ती है, बनानी चाहिए।

    ReplyDelete
  31. सुन्दर, प्रेरणा दायक लेख.

    ReplyDelete
  32. प्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।
    अगर यह कथा भी है तब ही प्रेरक और बोध कथा से कहीं आगे है .सकारात्मक ऊर्जा से भरी तन और मन दोनों को ऊर्जस्विता से भर्ती पोस्ट .

    ReplyDelete
  33. bahot achhe

    ReplyDelete
  34. बाज अपने जीवन में ऐसा करता है या नहीं यह तो पता नहीं। हमारी चोंच तो इस्तेमाल के पहले ही टूट चुकी थी और पंजों पर नाखून उगने ही नहीं दिए। फिर भी आजीविका चलती है और बेहतर।

    ReplyDelete
  35. काला हंस नहीं देखा। इसका मतलब यह नहीं काला हंस नहीं होता।

    ReplyDelete
  36. बहुत प्रेरक...एक नयी उर्जा और चेतना प्रस्फुटित करता जीवन्त आलेख...आभार

    ReplyDelete
  37. बाज़ या फीनिक्स...अद्भुत!!

    ReplyDelete
  38. फिर एक और ज्ञानवर्धक प्रेरक आलेख। .आभार....

    ReplyDelete
  39. हाय! हम तो बूढे बाज़ भये :(

    ReplyDelete
  40. जानकारी पू्र्ण,अद्भुत पोस्ट।

    ReplyDelete
  41. तथ्‍य न सही, कहानी ही सही। है प्रेरक और प्रोत्‍साहित करनेवाली। मुझे तो यह व्‍यक्तिगत से आगे बढ कर अतिरिक्‍त रूप से उपयोगी होगी - अभिकर्ताओं को व्‍याख्‍यान देने में बडी सहायक होगी।
    विशेष धन्‍यवाद।

    ReplyDelete
  42. बाज के प्रतीक से जीवन का अत्यंत सार्थक मूलमंत्र बता दिया ........

    ReplyDelete
  43. बाज के बारे में रोचक जानकारी देने के लिए,....बहुत२ आभार,..काश,...इंसान भी ऐसा कर पाता,.....बेहतरीन पोस्ट

    "काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--click

    ReplyDelete
  44. भले ही यह कहानी हो ..लेकिन उर्जावान और प्रेरणादायक है .. और यदि सच है तो एक नयी जानकारी मिली ... आभार

    ReplyDelete
  45. baj ki kahani me ak mahatvpoorn upyogi sandesh hai... abhar pandey ji mere blog pr apka amantran hai .

    ReplyDelete
  46. baj ki kahani me ak mahatvpoorn upyogi sandesh hai... abhar pandey ji mere blog pr apka amantran hai .

    ReplyDelete
  47. यहाँ से हमेशा ही कुछ सीख कर जाती हूँ!

    ReplyDelete
  48. सुख का जन्म पीड़ा की कोख से होता है.बाज़ के बहाने जीवन को लय-ताल में रखने की प्रेरणा.

    ReplyDelete
  49. prernaa mili. mai bhee baaz kee us umr me aa chukaa hoon jisme mujhe change over karanaa hee chaahiye

    ReplyDelete
  50. Bahut sundar kahani...achhi prerana deti hai.


    आप सभी को क्रिसमस की बधाई ...हो सकता है सेंटा उपहार लेकर आपके घर भी पहुँच जाये, सो तैयार रहिएगा !!

    ReplyDelete
  51. क्षमा कीजिये, मैने संशय नहीं व्यक्त किया। मैं पॉज़िटिव हूँ कि बाज़ और गरुड़ के जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता है। यह भी चेन ईमेल द्वारा फैलाये गये झूठों में से एक है। हाँ, इसमें कोई शक़ नहीं कि सन्देश प्रेरक है।

    ReplyDelete
  52. बाज़ जाने किस तरह हमको ये समझाता रहा ,
    क्यों परिंदों के दिलों से उसका डर जाता रहा .जबसे राजनीति में बाज़ की घुसपैंठ हुई है असली बाज़ सकते में हैं .एक तरफ उसकी जिजीविषा और दूसरी तरफ राजनीति के बाज़ की बाजीगरी जाल साजी .किसका अनुसरण किया जाए .

    ReplyDelete
  53. अगर ये सत्य घटना है तो निश्चित ही प्राकृति की बहुत बड़ी दें है ये बाज़ ... जो न सिर्फ जीवन की प्रेरणा देता है ... सही निर्णय की क्षमता भी ...

    ReplyDelete
  54. प्रेरक लेख। सच है जीवन के संघर्ष में गतिशील व सफल रहने हेतु हमें स्वयं को निरंतर पुनर्स्थापित करते रहने,नये संकल्प,नये कौशल व नवउर्जा की आवश्यकता रहती है।

    ReplyDelete
  55. प्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।

    satya kathan aadami ke saath kuch aaisa hi hota hai...

    jai baba banaras...

    ReplyDelete
  56. बड़ा दिन मुबारक नव वर्ष की पूर्व वेला भी .शुक्रिया आपका उत्साह वर्धन के लिए .

    ReplyDelete
  57. बहुत प्रेरणादायी....एक नव उर्जा का संचार तो मात्र पठन से हो गया....कुछ प्रयोग करने होंगे...

    निश्चित ही बेहतरी की तरफ ले जायेगा यह बाज सूत्र!!!

    आपका बहुत आभार!!

    ReplyDelete
  58. ज्ञानवर्धक...

    ReplyDelete
  59. यह पोस्ट दिनभर दिमाग से चिपकी रही। दुबारा चला आया बाज सूत्र लेने।

    ReplyDelete
  60. नई ऊर्जा प्रदान करता सारगर्भित आलेख
    आभार

    ReplyDelete
  61. मुर्दे में भी जान देने वाली पोस्ट...

    एक बैल भी होता है...जैसे जैसे बूढ़ा होता जाता है, चारा ज़्यादा मांगता है, और काम के नाम पर ना में मुंडी हिलाता रहता है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  62. ज्ञानवर्धक एवं विचारणीय।

    ReplyDelete
  63. जीवन में सब कुछ कभी भी खत्म नहीं होता है .खत्म होती है जिजीविषा ,जीवन संघर्ष चुका और जीवन गया .मैंने कॉफ़ी पहले कहीं पढ़ा था रशिया में कई ऐसे इलाके हैं जहां सौ सवा सौ ढेढ़ सौ साला लोग मज़े से रहतें हैं .एक मर्तबा फिर इनकी मुक्तावली उगने बढ़ने लगती है केश राशि भी .बाज़ इसे सायास प्रयत्न पूर्वक हासिल करता है लेकिन अपने शिकारी स्वभाव के साथ समझौता नहीं करता .ताज़ा शिकार करके खाता है .आपका हरेक लेख बारहा पढने से ताल्लुक रखता है .निबंधात्मक होता है .बधाई नूतन वर्ष की .

    ReplyDelete
  64. यदि वैज्ञानिक न भी हो तो भी प्रेरक है और संदेहास्पद तो बिलकुल नहीं

    ReplyDelete
  65. एक सबक देती हुई पोस्ट ...
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  66. kai karnovash aabhasee jagat se tatsthata rahee aaj aapke sabhee choote aalekh pad dale aisaa laga jaise hava ka tazaa jhonka man aangan mahaka gaya ho.
    aabhar .mac book ke sath I pad bhee ho to sone me suhaga .
    aapke lateset lekh to badiya seekh de gaya......
    Aabhar .

    ReplyDelete
  67. पुनर्विस्थापन बेहद पीड़ादायक होता है |आपकी पोस्ट जिजीविषा को आली\ओकीत करती है

    ReplyDelete
  68. कथा- भाषा- प्रस्तुतीकरण और निष्कर्ष सभी बेहद प्रेरणाप्रद और प्रभावशाली हैं प्रवीण जी शत शत अभिननदन बल्कि सही कहूँ तो शत शत अभिवादन स्वीकर करें -- पक्षियों को भी द्विज कहते हैं फिर जन्म लेने वाले - मनुष्य भी दैवी सम्पदा को प्राप्त है -चाहे तो गैरज़रूरी का मोह तयाग कर जीवन की दिशा और अनुभूति के आयाम बदल सकता है - इसके भी उदाहरण हैं -- सिद्धार्थ एक ही शरीर में बुद्ध हुये और वर्धमान एक ही शरीर में महावीर - कालिदास की चेतना का भी गुणधर्म बदल गया था और तुलसी और वाल्मीकि ने भी अपने जीवन में त्याज्य को त्याग कर ईश्वरीय अनुभूतियाँ प्राप्त की थी -- बहुत ही सुन्दर आलेख और बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण !!

    ReplyDelete
  69. प्रेरक बाज सूत्र ! आज इस पोस्ट का अंश हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान में आया।

    ReplyDelete
  70. कम उम्र में बहुत अनुभव की बातें. सुन्दर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  71. .
    .
    .
    चालीस पार का बाज बूढ़ा हो जाता है... जवानी पाने के लिये जो करे वह उसकी मर्जी... हमें क्या... :)

    अपन तो चालीस पार होने पर ही अब जवानी की ओर बढ़ रहे हैं...उस से पहले तो बचपना चल रहा था अपना... :)


    ...

    ReplyDelete
  72. आपका बाज तो फिर बाजी मार ले गया....

    ReplyDelete
  73. बिल्कुल नयी जानकारी है मेरे लिए, पर बहुत प्रेरणा मिली। ये पोस्ट तो सहेज कर रखने वाली है।

    ReplyDelete
  74. प्रेरणास्पद पोस्ट!

    ReplyDelete
  75. pata hi nahi tha sir ki baaz aisa karta hai....ye to ekdam nai baat hai mere lie....

    ReplyDelete
  76. यानि चिंता की बात नजदीक आ रही है....... बिन पीड़ा के प्राप्ति कहाँ. बाज के माध्यम से अच्छा सन्देश.

    ReplyDelete
  77. इस बार भी लीक से हटकर बातें बतिया गए आप

    ReplyDelete
  78. truly inspirational Praveen ji...I really like such articles.

    ReplyDelete
  79. बाज के बारे में बहुत ही विस्तृत जानकारी दे डाली आपने जो किसी को नहीं थी। प्रेरणा देती पोस्ट

    ReplyDelete
  80. amazing ...good one..
    learned a lot about new things...
    wish u a happy new year.

    ReplyDelete
  81. apni zindagi men halaton ka samna karne ki himmat deta hai ye post..

    ReplyDelete
  82. Anonymous28/2/12 20:46

    bahut prerak aur oorjadayak kahani hai...........

    ReplyDelete
  83. बेहतरीन प्रेरणादाई आलेख ..... रोचक जानकारी .....

    ReplyDelete
  84. मैंने ये कहानी तब पड़ी जब हालात बड़े बाज से हो गये थे l यदि यह कहानी भी हो तब भी सत्य से अधिक प्रभावी है। जीवन नवीन ऊर्जा की स्तुति करता है, नवीनता के लिये प्रयास और पीड़ा दोनो ही लगते हैं l

    ReplyDelete
  85. इस कहानी का नायक ' बाज़ ' बिलकुल ठीक चुना गया , किसी और पंछी में ये सामर्थ्य कहाँ !

    ReplyDelete
  86. बेहतरीन प्रेरणादाई आलेख .. रोचक जानकारी

    ReplyDelete
  87. बेहतरीन प्रेरणादाई आलेख .. शुभकामनायें आपको !
    Adeline

    ReplyDelete