29.1.11

चोला माटी के हे रे

कुछ विषय ऐसे हैं जिनसे हम भागना चाहते हैं, इसलिये नहीं कि उसमें चिंतन की सम्भावना नहीं हैं या वे पूरी तरह व्यर्थ हैं। संभवतः भय इस बात का होता है कि उस पर विचार करने से हमारे उस विश्वास को चोट पहुँचेगी जिस पर हमारा पूरा का पूरा अस्तित्व टिका है। अस्तित्व स्वयं के होने का, विषय स्वयं के न होने का। जीवन की कार्य-श्रंखला जब यह मान कर तैयार हो रही हो कि हमारा अवसान होना ही नहीं है, अन्त शब्द का उच्चारण मौन उत्पन्न कर देता है, चिन्तन का मौन। यक्ष का आश्चर्य-प्रश्न, यदि कोई सोचने लगता है उस विषय पर तो उस व्यक्ति को आश्चर्य की वस्तु समझा जाता है। मूल विषयों से इस आश्चर्य-प्रश्न के संदर्भों को सरलता से भुला देता है हमारा स्मृति-तन्त्र।

पीप्ली लाइव का एक गीत 'चोला माटी के हे रे' एक ऐसा ही संदर्भ है जो हमें याद ही नहीं रहता है, उस फिल्म में प्रस्तुत भूख, गरीबी और मीडिया की उछलकूदों के सामने। फिल्म देखते समय यही स्मृति-लोप मेरे साथ भी हुआ। यदि इसका संगीत व गायिका नगीन तन्वीर के स्वर विशेष न होते तो संभवतः मैं भी इसे पुनः न सुनता, इसके बोलों को पढ़ने और समझने का प्रयत्न न करता। खड़ी बोली में न होने के कारण, अधिकांश शब्द एक बार में अर्थ नहीं स्पष्ट कर पाते हैं, बस उड़ता उड़ता सा संकेत देकर ही निकल जाते हैं।

यह चोला(शरीर) माटी का है। द्रोण जैसे गुरु, कर्ण जैसे दानी, बाली जैसे वीर और रावण जैसे अभिमानी, सब के सब यहाँ से प्रयाण कर गये। काल किसी को नहीं छोड़ता है, राजा, रंक और भिखारी, कोई भी हो, सबकी बारी आनी है। पगले, हरि का नाम स्मरण कर ले और भव सागर पार कर मुक्त हो जा।

यह दार्शनिक उच्चारण, किसी को भांग व चरस जैसा लगता है जो गरीबी, मजबूरी और अकर्मण्यता के कष्ट को भुला देता है, किसी को प्रथम प्रश्न सा लगता है जिसका उत्तर जीवन की दिशा निर्धारित करता है, किसी को कपोल-कल्पित व अनावश्यक लगता है जिसके बिना भी जीवन जीते हैं सब, किसी को बन्धनकारी लगता है जो हमें कितने ही अचिन्त्य कर्तव्यों के जाल में समेट लेता है।

भले दर्शन से अरुचि हो हमें पर प्रयाण हम सबको करना है, प्रायिकता के सिद्धान्त से जीवन उत्पत्ति के अनुयायियों को भी और ईश्वर की सत्ता के उपासकों को भी। चोला माटी का है, यह एक सत्य है हम सबके लिये। दर्शन-भिन्नता जीवन-शैली का निर्धारण कर देती है, चार्वाक से निष्काम कर्म तक सुविस्तृत फैली। कैसी भी हो जीवन शैली, इस अन्तिम तथ्य पर विचार किये बिना उसे तार्किक क्षेत्र में स्थापित कर पाना असम्भव है।

'आसमां में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेगा', 'इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल' और 'चोला माटी के हे रे', ये सब गीत हमारा चिन्तन जहाँ पर स्थित कर देना चाहते हैं, वहाँ की ऊष्णता हमें क्यों विचलित कर देती है? धर्म की वीथियों से परे निकल, अपने अन्तरतम के विस्तृत मैदानों में इसका उत्तर पाने का यत्न करना ही है हमे।

गूढ़ प्रश्नों का उत्तर वस्तुनिष्ठ नहीं होता है, हमें खोजना पड़ता है सतत, बार बार मिलान कर देखना पड़ता है अपने जीवन से, बार बार कुछ भाग बदलने पड़ते हैं उस उत्तर के।

माटी का क्या मोल है? साथ ही साथ कौन सी ऐसी मूल्यवान वस्तु है जो माटी से न निकली हो? इन दो तथ्यों के बीच जीवन को स्थापित कर पाना सरल नहीं है। माटी से आकार ले, पुनः उसी में मिल जाने का सुख जनकसुता के एकांगी आत्मविश्वास का पर्याय भी है और असहायता का विकल स्वर भी।

क्या चुनना है और क्यों चुनना है, यह आप समझें अपने जीवन के लिये, कुछ उत्तर निसन्देह बदलेंगे आपके भी। मैं तो एक बार पुनः सुनने चला यह गीत, चोला माटी के हे रे।

कौन सा रहस्य पिरोया है उस अन्तिम आकर्षण में? अनुभवों की यात्रा का परम-विश्राम।


गाना सुन लें, मैने नहीं गाया है।

94 comments:

  1. देह की भंगुरता से आँख चुराने की तमाम कोशिशें हम रोजाना अपने जीवन में नाकाम होते देखते हैं फिर भी आसक्तिवश जाने कितने षड्यंत्र किया करते हैं. मेरी राय में तो अस्तित्व की नित्यता से अधिक प्रामाणिक है देह की क्षरणशीलता.

    इन प्रश्नों से जुड़े बोध को सच ही व्यक्ति को अपने स्तर पर आयत्त करना होता है.

    आपका लेखन सदा आकर्षित करता है.

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  2. गीत पहली बार सुनने को मिला अच््ा लगा।

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  3. कोई लाख आँखे चुराए ....सत्य यही है !

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  4. गाना पहली बार सुना, पसन्द आया।

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  5. सुन लिया इसीलिए ....
    :-)) ,
    वैसे यकीन मानें आवाज आपकी भी ख़राब नहीं है
    बढ़िया कशिश है इस गीत में ...सुबह सुबह आनंद आ गया !

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  6. गीत सुना -लोक-वाणी की खनक है गायिका के स्वर में , धन्यवाद आपको .
    ऐसे गीत जो लोकजीवन की सरलता से सिक्त जीवन के सहज सत्य को वाणी देते हैं ,सुनते हुए मन की स्थिति कुछ और होने लगती है .हम उसे उबर लें या कुछ देर और डूब लें अपनी-अपनी च्वाइस !

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  7. यह गीत मुझे बहुत पसंद है। कई बार सुना है। मैं छत्तीसगढ़ में ही पला बढ़ा हूँ इसलिए समझने में कोई परेशानी नहीं हुई।

    हबीब तनवीर के अनेक नाटक देखे हैं खुद उन्हे अभिनय करते भी देखा है। नगीन जी को भी कई बार सुना और देखा है। इसलिए भी इस फिल्म और इस गाने से विशेष लगाव है।

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  8. चोला माटी के हे रे--एकर का भरोसा....

    गीत सुन रहे हैं अभी भी.

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  9. ...बहुत सुंदर लिखा है आपने। फेस वाश के बाद मन वाश हो गया।

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  10. लेकिन फिर भी राजा-प्रजा चल रहा है भारत में..

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  11. माटी से आकार ले, पुनः उसी में मिल जाने का सुख जनकसुता के एकांगी आत्मविश्वास का पर्याय भी है और असहायता का विकल स्वर भी।
    ---------
    जितना सुंदर विषय और उतनी ही सुंदर प्रस्तुति..... यह गीत मुझे भी बेहद पसंद है ...... पूरे आलेख में जानकी के प्रसंग का उदहारण देकर तो आपने इस वैचारिक प्रस्तुति को अनमोल कर दिया......

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  12. चोला माटी का है, यह एक सत्य है हम सबके लिये।
    और इस सत्य की तरफ बहुत कम ध्यान जाता है ...अगर जाता होता तो आज हम हिन्दू ..मुसलमान सिख ईसाई आदि नहीं होते सिर्फ इंसान होते ...
    क्यूंकि माटी एक ...घड़े अनेक
    आपका आभार इस उम्दा और विश्लेषण परक पोस्ट के लिए

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  13. जिस दिन पूरी समग्रता से किसी को यह सत्य स्वीकार हो जाये... उसका आत्मसाक्षात्कार हो जाये

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  14. सच बयानी..भ्रम तोड़ती रचना....लेकिन भ्रम बना रहने दीजिये नही तो मनुष्य हताशा को प्राप्त होगा और हताशा स्व-विनाश को जन्म देती है...

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  15. सत्य का एहसास जितनी जल्दी हो जाए,अच्छा है.हमारे समाज में मरने के समय ही ऐसे एहसास आते हैं !
    "मान्धाता च महिपती कृतयुगालंकर भूतो गतः" भी बहुत पहले पढ़ा था !मतलब ,वहां तो सभी को जाना है.एक यहीं पर ग़रीब को न्याय मिलता है.सब बराबर हैं !

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  16. चोला माटी के हे रे - यह छत्तीसगढ़ का परम्परागत निर्गुणी भजन है जो गांव चौपालों में पहले गाया जाता था। शहरीकरण छत्तीसगढ़ की संस्कृति को लील रहा है। धन्य हो पीपली लाइव का, जिसने इसे देश भर में लोकप्रिय बनाया।

    इस भजन को दार्शनिक अंदाज़ में गाने वाली नगीन तनवीर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर की विदुषी पुत्री हैं। उन्होंने सुलोचना बृहस्पति और गुंडेचा बंधुओं जैसे गुरुओं से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की है। बचपन से ही वे अपने पिताजी की नाट्य संस्था ‘नया थियेटर‘ में काम करने लगीं थीं। नगीन जी ने आगरा बाजार और चरणदास चोर नामक प्रसिद्ध लोकनाट्यों में भूमिका निभाई है।

    इस भजन ने आपको गहनता से प्रभावित किया है, यह आपके आलेख से स्पष्ट है।
    बहुत अच्छी व्याख्या की है आपने इस सुंदर रचना की।
    आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रवीण जी।

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  17. पगले, हरि का नाम स्मरण कर ले और भव सागर पार कर मुक्त हो जा।.....ant to sab ka aise
    hi hona tai hai.....

    bahut ruchikar prastooti......


    pranam.

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  18. यही एक परम सत्‍य है और हम इस सत्‍य से भागते रहते हैं ..बहुत सुन्‍दर लेख एवं गीत प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  19. बहुत सुंदर लिखा है आपने।
    जितना सुंदर विषय और उतनी ही सुंदर प्रस्तुति
    geet bhi dundar hai

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  20. भारतीय ग्यान,दर्शन व मानव व्यवहार का मूल दिग्दर्शक मन्त्र है---याद दिलाने का शुक्रिया---
    --युगों से यह मन्त्र समय समय पर याद दिलाया जाता रहा है--पर सदा ही मानव इसे भूलता रहा है---इसी को कहते हैं ...दुनिया...माया...संसार...जिस में फ़ंस कर व्यक्ति अनाचार में लिप्त होता रहा है ....जानते हुए भी....
    ----प्रभु मायावश फ़िरों भुलाना....

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  21. आज का चिंतन कुछ अधिक गंभीर लग रहा है.

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  22. दार्शनिकता से भरपूर आलेख एक संगीत की पंक्तियों को सार्थकता प्रदान करता हुआ .

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  23. ये जीवन का प्रथम प्रश्न ही है और अगर इससे आंख चुराने की कोशिश करते हैं तो अपने आप से , अपने वजूद से आंख चुराने जैसा होगा

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  24. यह एक सत्य है कि चोला माटी का है,पर प्राणी इसको समझता नहीं|
    उम्दा और विश्लेषण परक पोस्ट के लिए आपका आभार|

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  25. बेहतरीन लिखा है.... जीवन की गहराई समेट दी है आपने इसमें...

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  26. @किसी को भांग व चरस जैसा लगता है जो गरीबी, मजबूरी और अकर्मण्यता के कष्ट को भुला देता है.


    दार्शनिक आलेख...

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  27. प्रयाण तो सब को करना ही है, यह अंतिम सत्य है. कुछ कर सकें तो कर लें.

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  28. प्रयाण तो सब को करना ही है, यह अंतिम सत्य है. कुछ कर सकें तो कर लें.

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  29. आमीर खान का इसी लिए में प्रशंसक हूँ कि वह अपनी फिल्मों में जमीनी सच्चाइयों को बखूबी उजागर कर पाने में सक्षम है !

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  30. बहुत ही सुन्दर गीत है...कुछ छत्तीसगढ़ में रहनेवाले मित्रो का तो कॉलर ट्यून ही है,ये गीत...बार-बार सुनने पर भी मन नहीं भरता...अभी भी सुन रही हूँ :)

    इस गीत के बहाने ,बहुत ही सार्थक चिंतन किया है,इस आलेख में

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  31. अभी जो मनोवस्था है प्रवीण जी...इसमें कुछ भी कहने की स्थिति में मन नहीं...

    आत्मा को छूती इस अद्वितीय पोस्ट के लिए आपका कोटि कोटि आभार और आशीष !!!!

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  32. वैसे अपनी बात कहूँ...यह सत्य अक्सर अब स्मरण में रहने लगा है और यह सदैव ही उत्प्रेरित करता है सार्थक करने के लिए...

    एक आवाज कानो में गूंजती रहती है...जल्दी करो, जल्दी से काम निपटाओ,जाना है न...

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  33. सत्‍य तो यही है। और सब इसे समझते भी हैं,इसलिए तो मिट्टी में मिलने से पहले बहुत कुछ कर जाना चाहते हैं।

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  34. Anonymous29/1/11 14:49

    ये गाना मुझे भी बहुत अच्छा लगता है, मोबाइल पर अपलोड करके रखा है, अक्सर सुनती रहती हूँ| और इस लेख के बारे में तो यही कहना है, के जाना तो सबको ही है एक दिन, बात ये है के जब तक यहाँ हो,तब तक अपने और अपने आस-पास के जनों का जीवन कितना सार्थक किया है |
    .
    .
    .
    शिल्पा

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  35. चोला माटि का रे... अहर यह हकीकत हम सब की समझ मे आ जाये तो दुनिय के सारे झगडे ही खत्म न हो जाये, बहुत सुंदर विचार दिया आप ने अब गीत सुनुगां राम राम

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  36. वाकई ये चोला तो माटी का है और उससे में मिल जाना है...
    बहुत सी बातों और भावनाओं को समेट लिया... जीवन, उसका अर्थ, उसका पर्याय... माटी और उसके रूप, उसकी विशेषता, उसके रंग...
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर...
    धन्यवाद...
    गीत आपकी आवाज़ में सुनने को कब मिलेगा???

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  37. माटी का क्या मोल है? साथ ही साथ कौन सी ऐसी मूल्यवान वस्तु है जो माटी से न निकली हो? इन दो तथ्यों के बीच जीवन को स्थापित कर पाना सरल नहीं है। माटी से आकार ले, पुनः उसी में मिल जाने का सुख जनकसुता के एकांगी आत्मविश्वास का पर्याय भी है और असहायता का विकल स्वर भी।

    बहुत सार्थक विश्लेषण ...जानते सब हैं पर विचार नहीं करते ...

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  38. अकर्मण्यता की ओर नही, पर प्रत्येक परिस्थिति में चिंतन पुर्वक संतोषी रहने का संदेश देकर परमसुख की ओर जरुर ले जाता है।

    सुंदर आलेख के लिए आभार

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  39. सटीक. सत्‍य ऐसी सरलता से कह दिए जाने में ही शायद ज्‍यादा प्रभावी होता है. कुमार गंधर्व जी गाया करते थे- भोला मन जाने अमर मोरी काया...
    वैसे तो आप मेरी इस पोस्‍ट http://akaltara.blogspot.com/2010/07/blog-post_21.html पर पहले आ चुके हैं, आपको स्‍मरण करा रहा हूं, पुनः देखना चाहें, शायद अब कुछ अलग लगेगा.

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  40. माटी के साथ जनकसुता की याद ..सिर्फ़ एक शब्द याद आता है बेहतरीन .
    आपका लेख शून्यवाद की अवधारणा को बल देता
    है ..
    गीत पहले भी अच्छा लगा था आज भी अच्छा लगा .

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  41. मैं तो यही कहूँगा की ""राम नाम सत्य है ...बहुत सुंदर लिखा है

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  42. ये गीत पहली बार सुन रहा हूँ .. प्रस्तुति के लिए धन्यवाद .

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  43. मनभावन गीत!

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  44. .

    क्षिति ,जल ,पावक ,गगन ,समीरा , पञ्च तत्व मिली बना सरीरा। ... माटी का पंचभौतिक शारीर , माटी में ही मिलना है एक दिन। ...लेकिन...

    इश्वर का दिया जीवन अनमोल है । जी भर के जियो ।

    .

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  45. सब को मालूम है . लेकिन जान कर अनजान बने रहना इन्सान की एक बहुत बडी फ़ितरत है

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  46. वन्दे मातरम,
    यह गीत छत्तीसगढ़ के गाँव गली चौपालों में सुनने का अवसर पहले भी मिलता रहा है पर वाकई इसे नगीन तनवीर जी के स्वर ने और भी खुबसूरत बना दिया है | साथ ही आपने जिस प्रकार इस गीत के मर्म को समझाया है वो भी इसमें चार चाँद लगा देता है |

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  47. यही परम सत्य है, फ़िर भी सर्वाधिक रहस्यमयी।

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  48. प्रवीण भाई सुबह छः बजे से अभी दस बजे तक कम से कम दस बार इस गीत को सुन चूका हूँ... मन नहीं भरा... जीवन के नश्वर होने का एहसास दिला कर यह गीत प्रेरित कर रही है सकारात्मक ऊर्जा के साथ.. और आपका आलेख पहले की तरह है प्रभावशाली

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  49. आज तो दार्शनिक प्रबल है! -नश्वरता तो अवश्यम्भावी है ...जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु : पंचभूत यह अधम सरीरा .......
    पर यक्ष प्रश्न तो आज भी प्रासंगिक है -किमाश्चर्यम!

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  50. बिल्कुल सही कहा आपने कि कुछ विषय ऐसे हैं जिनसे हम भागना चाहते हैं, इसलिये नहीं कि उसमें चिंतन की सम्भावना नहीं हैं या वे पूरी तरह व्यर्थ हैं। संभवतः भय इस बात का होता है कि उस पर विचार करने से हमारे उस विश्वास को चोट पहुँचेगी जिस पर हमारा पूरा का पूरा अस्तित्व टिका है।

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  51. सारी बातों की एक बात की आंखिर तो मिट्टी मै ही मिलना है पर संसार मै आते ही हम ये सब भूल जाते हैं जब कोई एसी बात कहता है तो थोड़ी देर के लिए फिर से इस का ख्याल आ जाता है तो एक बार फिर उस का एहसास दिलाने के लिए धन्यवाद दोस्त जी !

    मैने भी अपने स्कूल .कॉलेज के समय मै खूब लोक गीत गाए हैं तो सुन कर बहुत अच्छा लगा !

    बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त !

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  52. माटी का तन माटी में मिल जाएगा :(

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  53. बहुत सार्थक विश्लेषण
    बहुत अच्छी व्याख्या की है आपने इस सुंदर रचना की।
    आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रवीण जी।

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  54. माटी के चोले ने खुद ही माटी चोले पर लिख डाला.
    क्यूँकि माटी के चोले में छिपा है सब कुछ रचनेवाला.
    चोला बेशक माटी का है लेकिन यह प्रभु का मंदिर भी है.इसी आकार में निराकार है. इसी जड़ के सहारे चेतन तक पहुंचा जा सकता है. इसी दीये में वह ज्योति जल सकती है जो चेतना के उर्ध्वगमन का सन्देश देती है.माटी का यह चोला स्वयं क्षणभंगुर होते हुए भी भीतर शाश्वत को संभाले हुए है.स्वयं मरण धर्मा होते भी यह अमृत तक पहुँचने का मार्ग है यह सेतुबंध रामेश्वरम है.
    सारगर्भित, सत्य का साक्षात्कार करानेवाले सार्थक लेख के लिए साधुवाद.

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  55. फिल्‍म देखते समय यह गीत सचमुच में ही उपेक्षित रह जाता है। आपके सौजन्‍य से आज पूरा सुना, पूरे ध्‍यान से सुनाओ तो ही इसका आनन्‍द आ पाया।

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  56. मेरी हाइकु पर आप की सशक्त टिप्पणी का गहन अर्थ इस आलेख को पढ़ कर बरोबर समझ गया भाई|

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  57. "चोला माटी के हे रे
    एकर का भरोसा"
    सुंदर आलेख. जीवन का एक कटु सत्य जानते हुए भी उसे अनदेखा करने को ही जी चाहता है.

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  58. ये पिक्चर तोदेखी पर लगता है दुबई में ये गीत काट लिया है फिल्म से ... गीत सुनने में बहुत ही कर्णप्रिय है ... .

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  59. अरे! आपको इतने दिनों बाद कैसे याद आया यह गीत!! ख़ैर वैसे भी इस गीत में बड़े सरल शब्दों में गहन दर्शन समाया है!! सचमुच बाकी सब आया है!!

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  60. सुन्दर गीत ,सुन्दर चिंतन और सुन्दर प्रस्तुति.

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  61. मिटटी की खुश्ब्बू महसूस करवा दी, प्रवीन भाई आपने. कबीर भी कह ही गए हैं: माटी कहे कुम्हार से.....
    From English litreture: Basic Quation is still the same. To be or not to be.
    लिखते रहिये.

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  62. accha geet hai. thanks for sharing!

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  63. चोला माटी का है..एक शास्वत सत्य जिसे हम जानबूझ कर विस्मृत करने की कोशिश करते रहते हैं...बहुत गहन चिंतन...चिंतन को मज़बूर करती बहुत सुन्दर पोस्ट.

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  64. हाहाहाहाहा मित्र जीवन दर्शन यही तो है..महाभारत में युदि्ष्ठर का यक्ष को दिया गया जवाब ....सबसे बड़ा आश्चर्य आज भी कायम है....

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  65. बहुत सुन्दर जीवन सार दिया है आपने गाने के जरिये यहाँ ...यही तो सच है .... आभार !

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  66. प्रवीन जी, बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति. सच इस गाने ने जीवन की नश्वरता को बहुत ही सहजता से बयां किया है.

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  67. गाना पहली बार सुना, पसन्द आया।

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  68. गीत पहली बार सुना है बहुत अच्छा लगा धन्यवाद।

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  69. प्रभावशाली और सार्थक चिंतन . गहरे पानी से मोती निकल लाये है आप .

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  70. बहुत कम इंसान हैं जिनका दिमाग सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचकर भी इंसानी संवेदनशीलता तथा सामाजिक सरोकार से दूर नहीं होता है........लेकिन ज्यादातर लोग सफलता और ताकत के अभिमान में अपने इंसान होने के वजूद को भूलकर अपने आपको सबकुछ समझने लगता है........और यहीं से उसका पतन शुरू हो जाता है चाहे वह व्यक्ति प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर क्यों ना बैठा हो........इसलिए इंसान को यह कभी नहीं भूलना चाहिए की वह एक इंसान है.......और उसका यह चोला(शरीर) माटी का ही है........शानदार प्रेरक प्रस्तुती के लिए आपका आभार........

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  71. आसमां में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेगा', 'इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल'
    phir bhi maya me fase hai ,sab jaante huye bhi ,bahut hi saarthak lekh aur arthpoorn geet .

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  72. गीत के माध्यम से दार्शनिक आलेख. ये सिर्फ आपके लेखन की चतुराई हो सकती है .

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  73. मोल बहुत है माटी का
    गर ये मेरे देश की मिट्टी है
    गर कुछ ना कर सके इसकी खातिर
    तो जीवन मेरा बंजर मिट्टी है

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  74. @ ऋषभ Rishabha
    जीवन का अन्तिम सत्य स्वीकार कर लेने को मन मानता ही नहीं, यही तो आश्चर्य है। स्वयं को न जाने कितने प्रयत्नों से यह समझाने का प्रयास नित होता है कि हम सदा जियेंगे।

    @ उन्मुक्त
    यह गीत बार बार सुनने का मन करता है।

    @ वाणी गीत
    आँख चुराने का कोई लाभ नहीं है, सत्य यही है। अब उस सत्य के सामने रख जीवन के और सत्य सरलीकृत करने होंगे।

    @ सतीश सक्सेना
    इस गीत को गाने के लिये स्वर में बहुत गहराई चाहिये, वह आने में समय लगेगा।

    @ प्रतिभा सक्सेना
    हमारे लोकगीतों में दर्शन की महक मिल जाती है, कर्णप्रियधुनों में वह हमारे मस्तिष्क में सदा के लिये बस जाता है। बिना बड़ी बड़ी पुस्तकों के ज्ञान बाटने की विधि। गहरे गीत में स्वर भी गहरा हो तो अन्दर तक गूँजती है वह आवाज।

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  75. @ सोमेश सक्सेना
    छत्तीसगढ़ का लोकप्रिय गीत है यह। नाट्य विधा से संदेशों का संप्रेषण और सरल हो जाता है। हबीब तनवीर और नगीन तनवीर, दोनों ही इस क्षेत्र में अग्रणी रहे हैं।

    @ Udan Tashtari
    आपको तो पूर्ण आनन्द आ रहा होगा।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय
    कभी कभी सीधे सरल शब्दों में जीवन के सत्य समझ, मन का नयापन अनुभव कर लेना चाहिये।

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    अन्त में सब एक हो जाते हैं। सबको वहीं जाना है, एक साथ।

    @ डॉ॰ मोनिका शर्मा
    माटी से उत्पन्न होने और वापस उसी में मिल जाने का संदर्भ बरबस ही जानकी का स्मरण करा देता है। धरापुत्री होने का आत्मविश्वास यही हो संभवतः।

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  76. @ : केवल राम :
    यह सत्य हम सबके बीच की समानता है, यदि चिन्तन वहाँ से प्रारम्भ करें तो विरोधाभास न्यूनतम हो जायेंगे।जीवन में अकेले आने में वह भाव स्पष्ट नहीं हो पाता है।

    @ पद्म सिंह
    मन नहीं मानता इस तथ्य को स्वीकार करना, यही तो आश्चर्य है।

    @ amit-nivedita
    आत्मा की निरन्तरता वह दूसरा तथ्य है जो हताश नहीं होने देता है। भ्रम टूट यदि जीवन थोड़ा सरल हो जाये तो क्या हानि।

    @ संतोष त्रिवेदी
    वहाँ सब बराबर हैं, वहाँ सबको न्याय मिलता है।

    @ mahendra verma
    चौपालों में पहले गाये जाने से न्याय का माहौल बन जाता होगा। यह माटी से जुड़ी संस्कृति बनी रहे। तनवीर परिवार का योगदान निश्चय ही सराहनीय है।

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  77. @ sanjay jha
    आसमान में उड़ने वालों को भी समझना होगा कि अन्त की सीढ़ी सबके लिये वही है।

    @ sada
    सत्य को स्वीकार कर जीवन को सरल बनाना होगा।

    @ संजय कुमार चौरसिया
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Dr. shyam gupta
    सबको यह सत्य समझना होगा, यही तो दर्शन का आधार है।

    @ सुशील बाकलीवाल
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  78. @ गिरधारी खंकरियाल
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ neelima sukhija arora
    इस प्रश्न से मुँह चुराने का अर्थ है कि अन्त में ठगा सा महसूस करना।

    @ Patali-The-Village
    इस सत्य को प्रारम्भ में ही समझ लेना ही ठीक है। बाद में हताशा बहुत बढ़ जाती है।

    @ Shah Nawaz
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ दीपक बाबा
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  79. @ P.N. Subramanian
    यदि अन्त को प्रारम्भ में रख विचार किया जाये, प्रयास व्यर्थ नहीं दिखते हैं।

    @ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    आमिर खान का यह प्रयास हमारी लोकसंस्कृति को निश्चय ही बढ़ावा देगा।

    @ rashmi ravija
    सच कह रही है, बार बार सुनने का मन करता है।

    @ रंजना
    परीक्षित जैसी स्थिति जब हो जाये तो सब कार्य जल्दी जल्दी करने के स्थान पर उन कार्यों को किया जाये जो सर्वाधिक संतुष्टि दें। इस तथ्य को स्वीकार करना ही होगा।

    @ राजेश उत्‍साही
    मिट्टी में मिलने के पहले, मिट्टी की महक मन में बसा लें हम सब।

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  80. @ Shilpa
    आसपास के लोगों के जीवन को उन्नत बनाना ध्येय हो हम सबका। माटी में मिलने से पहले उसके सोंधेपन को बढ़ा जाना हो।

    @ राज भाटिय़ा
    स्थायी शान्ति के लिये इस तथ्य को तो समझना होगा, सब पक्षों को।

    @ POOJA...
    अभी तक तो इस गीत के दर्शन से प्रभावित हैं। जिस दिन रौ में आयेंगे, इस गीत को भी गुनगुनायेंगे।

    @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    यदि माटी से आत्मीयता हो जाये तो जीवन कितना सार्थक व सरल हो जायेगा।

    @ ललित शर्मा
    चिंतन करने से हताशा व अकर्मण्यता आ ही नहीं सकती है, कोई बड़ी सार्थक राह निकल आती है।

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  81. @ Rahul Singh
    जब से आपकी पोस्ट से प्रेरित हो फिल्म देखी है, मन में यह गीत गूँज रहा है। आभार आपका कि आपने छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जोड़कर इस फिल्म को देखने के लिये प्रेरित किया।

    @ nivedita
    माटी की कोई सच्ची प्रतिनिधि थीं तो जानकी। माटी से निकलीं और माटी में ही मिल गयीं।

    @ महेन्द्र मिश्र
    राम का नाम सत्य है और माटी में मिलने का तथ्य भी। काश हमारा जीवन उन निष्कर्षों की लय पर हो।

    @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ ZEAL
    तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा।

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  82. @ dhiru singh {धीरू सिंह}
    जब सब ज्ञात हो तब उसे न मानना स्वयं से छल करने जैसा है।

    @ गौरव शर्मा "भारतीय"
    आपका भाग्य है कि आप इस गीत को पहले भी सुन चुके हैं।

    @ संजय @ मो सम कौन ?
    यही रहस्य जीवन का शान्तिदायक सत्य है।

    @ अरुण चन्द्र रॉय
    यही प्रभाव मेरे ऊपर भी पड़ा है इस गीत का। न जाने कितने बार सुन चुका हूँ यह गीत।

    @ Arvind Mishra
    जहाँ मृत्यु हताशा की ओर ले जाती है, उसके बाद का जन्म एक नयी आस देता है, नये सबेरा जैसा।

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  83. @ मनोज कुमार
    अपने न होने का भय समझ पाना और उसे पचा पाना सरल नहीं है।

    @ Minakshi Pant
    लोकगीतों में भारत की संस्कृति को पिरोना हमारे पूर्वजों ने भलीभाँति किया है।

    @ cmpershad
    माटी का मोह हो या शरीर का।

    @ संजय भास्कर
    अर्थ तो गीत में था ही, उसे स्वयं के संदर्भों में समझने का प्रयास भर किया है।

    @ aman agarwal "marwari"
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  84. @ santoshpandey
    इस विषय पर आपका गीत पढ़कर तो आनन्द आ गया।

    @ विष्णु बैरागी
    फिल्म में यह गीत पार्श्व में ही बज जाता है।

    @ योगेन्द्र मौदगिल
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Navin C. Chaturvedi
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ रचना दीक्षित
    अच्छा तो तब हो कि इस तथ्य को स्वीकार कर उस पर जीवन निर्माण किया जाये।

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  85. @ दिगम्बर नासवा
    अब सुन लें आनन्द से, बहुत मधुर गीत है।

    @ सम्वेदना के स्वर
    बहुत दिनों से सुन रहा था और लिखने का मन बना रहा था।

    @ shikha varshney
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Rahul Kumar Paliwal
    जब स्वयं ही माटी हो, तो माटी से क्या बैर।

    @ SEPO
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  86. @ Kailash C Sharma
    इस पर चिन्तन तो चिन्तन प्रक्रिया को सरलीकृत कर जाता है।

    @ boletobindas
    युधिष्ठर का वाक्य आज भी सच है।

    @ Coral
    जीवन का सारांश यही है। आसमान में उड़ने वाले, मिट्टी में मिल जायेगा।

    @ उपेन्द्र ' उपेन '
    जीवन का नश्वरता और आत्मा की अजरता।

    @ शिवकुमार ( शिवा)
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  87. @ निर्मला कपिला
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ ashish
    इस तथ्य पर चिंतन सदा ही सार्थक होता है।

    @ honesty project democracy
    बहुत ऊँचे सिंहासन पर बैठ माटी से जुड़े तथ्य नहीं दिखते हैं, सबको यह तथ्य समझना पड़ेगा।

    @ ज्योति सिंह
    कई स्वरों में कई बार हमें यही सत्य बार बार समझाया जाता है।

    @ मेरे भाव
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  88. @ "पलाश"
    माटी में मिल जाना ही है तो माटी से बैर कैसा। माटी को मोल समझ लिया तो जीवन सफल है।

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  89. aakhir satya kya hai ..... jo shashwat hota hai . to ye jeevan ...ye duniya sab to kshanbhangur hai . yani stya bas ek ishwar
    satyam shivam sundarm

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  90. प्रवीणजी
    कमाल की बात है की
    फ़िल्मी गीतों में से गहरी सोच की पंक्तियों से
    आपने 'एक दिन मिटने' की 'बात'
    को रसमयता से साथ रखने की
    सीख का स्मरण करवा दिया
    पीपली लाइव के गीत से परिचित करवाने
    के लिए धन्यवाद
    अशोक व्यास

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  91. @ mukesh
    इस विश्व में अपने अस्तित्व की सही पहचान ही जीवन है।

    @ Ashok Vyas
    जो सत्य सबको दुखी कर देता है, उसी में जीवन का अर्थ निकाल लेना जीवन है।

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  92. Anonymous27/8/13 19:58

    भले दर्शन से अरुचि हो हमें पर प्रयाण हम सबको करना है, प्रायिकता के सिद्धान्त से जीवन उत्पत्ति के अनुयायियों को भी और ईश्वर की सत्ता के उपासकों को भी। चोला माटी का है, यह एक सत्य है हम सबके लिये। दर्शन-भिन्नता जीवन-शैली का निर्धारण कर देती है, चार्वाक से निष्काम कर्म तक सुविस्तृत फैली। कैसी भी हो जीवन शैली, इस अन्तिम तथ्य पर विचार किये बिना उसे तार्किक क्षेत्र में स्थापित कर पाना असम्भव है।
    बहुत शुक्रिया ..................... !









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