17.6.21

हनुमानबाहुक - क्रम


हनुमानबाहुक में कुल ४४ छन्द हैं, अवधी में। पहले १३ छन्दों में स्तुति है, हनुमानजी के महान कृत्यों और विशिष्ट गुणों का वर्णन है। पहले छन्द में ही वह, अपने सेवकों को सुगमता से प्राप्त होने वाले, उनकी भलाई करने वाले, उनके समीप रहने वाले और उनके संकटों का नाश करने वाले कहे गये हैं। दूसरे छन्द में, उनका विकराल रूप जिसके हृदय में बसता है, उसके पास पाप और दुःख स्वप्न में भी निकट नहीं आते हैं। इस प्रकार पहले दो छन्द ही “गुणी के गुण” और “सेवक की आवश्यकता” के मध्य एक तन्तु जोड़ देते हैं। शेष ११ छन्द हनुमान के उन गुणों का वर्णन करते हैं जिनके द्वारा उन्होंने असंभव, विकट और कठिन कर्म सम्पादित किये हैं। उनकी विकरालता उन्हें “काल का भी काल” कह कर व्यक्त की गयी है।


१४वें छन्द में पहली बार तुलसीदास ने अपने स्वामी से अपना सम्बन्ध कहा है, “मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ”, मन से, वचन से, कर्म से, तीनों प्रकार से तुलसी आपका दास है, आप सब जानने वाले स्वामी हैं। उसके बाद भी यथासंदर्भ सम्बन्ध, आश्रयता, निर्भरता वर्णित की गयी है।


१५वें छन्द से उलाहना प्रारम्भ होती है और शेष ३० छन्दों में लगभग १४ बार भिन्न भिन्न प्रकार से व्यक्त जाती है। पाठकों की सुविधा के लिये उन सारे संवादों को क्रम से सूचीबद्ध किया है। जैसे जैसे आप पढ़ेंगे, तुलसीदास की हनुमान के प्रति प्रगाढ़ता, श्रद्धा और आस्था स्फुरित होती दिखेगी, साथ ही साथ पीड़ा और विलम्ब का निदान न होने पर आश्चर्य और हताशा के भाव भी।   


  1. हे दुर्धर्ष योद्धा, आपका बल तुलसी के लिये क्यों घट गया है? (बीर बरजोर घटि जोर तुलसी की ओर)
  2. यदि मैं आपका स्नेह हार गया हूँ तो मुझे मेरा दोष सुना दीजिये, जिससे मैं भविष्य में सचेत हो जाऊँ (दोष सुनाये तैं आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तो हिय हारो)
  3. मेरी ही बार बूढ़े हो गये हो या बहुत शरणागतों को पालने में थक गये हो (बूढ भये बलि मेरिहिं बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले)
  4. आपके जैसे समर्थ स्वामी की सेवा के बाद तुलसी यह कष्ट सहे, यह आश्चर्य ही है (तोसो समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से)
  5. यदि अपराधी हूँ तो सहस्रों भाँति मारिये, परन्तु जो लड्डू देने से मारता हो उसे विष देकर मत मारिये (अपराधी जानि कीजै सासति सहस भान्ति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये)
  6. आपके प्रमुख दास के हृदय में दुख है, वहाँ पर रह कर उसे देखिये तो (खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखिअत भारिये )
  7. हे महावीर, तुलसी भारी सोच में है कि किस संकोच के कारण आप इस बाँह की पीड़ा से भय खा रहे हैं (भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है )
  8. इतने दिन तुलसी को बाँह की पीड़ा रही, यह आपका आलस्य है, या क्रोध, या परिहास है या कोई शिक्षा (आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की )
  9. आपकी यह ढील मुझे मेरी पीड़ा से अधिक पीड़ित कर रही है (ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है )
  10. तुलसी को अपने बाँह की थोड़ी सी पीड़ा पर बड़ी ग्लानि हो रही है, पता नहीं कि मेरे किस पाप या क्रोध से आपका प्रभाव लुप्त हुआ जा रहा है (थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को )
  11. राम ऐसा हाल किया है कि अगस्त्य मुनि का सेवक भी गाय के खुर में डूब गया है (कुंभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है )
  12. तुलसी ने गोसाँई होने के बाद अपने कष्टप्रद दिन भुला दिये, उसी का फल आज पा रहा हूँ (तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं )
  13. जो राम का नमक खाकर भुला दिया, वही अब बरतोर बन शरीर से फूट फूट कर निकल रहा है ( ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को )
  14. यदि आप से नहीं हो पायेगा तो मुझे बता दीजिये, मौन रहूँगा और मान लूँगा कि जो बोया है वही काट रहा हूँ (तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहिं, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये )


तुलसीदास को इतने विश्वास से अपने आराध्य से संवाद करते देख मन रोमाञ्च से भर जाता है, भावों का अतिरेक होने लगता है, शब्द गौड़ हो जाते हैं, स्नेहिल सम्बन्ध आँखों में डबडबाने लगते हैं। शब्द समझ आ गये हैं, इन शब्दों में बसे प्रेम की थाह नहीं पा रहा हूँ, प्रयासरत हूँ, संभवतः एक दिन समझ आ जायें। 

8 comments:

  1. प्रणाम प्रवीण जी, इतने वृहद स्‍तर पर हनुमानबाहुक के बारे में आज पढ़ा, आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद ये महत्‍वपूर्ण जानकारी देने के ल‍िए

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    1. बहुत आभार आपका। आपके ब्लाग पर जाकर समसामयिक विषयों पर आपकी पकड़ से प्रभावित हुआ।

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  2. शब्द भाव और सोच की प्रासंगिकता का दिव्य प्रमाण प्रस्तुत किया है आपने हनुमानबाहुक में ,साधुवाद !

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    1. जी, कभी लगता है कि तुलसी ने सहज ही मन को व्यक्त किया। हम सबको बहुधा ऐसा ही लगता है।

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  3. प्रवीन जी
    अत्यंत सुन्दर।

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