12.6.21

मिल के साथ आयें हम


मिल के साथ आयें हम,

देश को बचायें हम ।

खो गये जो लब्ध शब्द,

पुनः ढूढ़ लायें हम । 

 

केश हैं खुले हुये, द्रौपदी के आज फिर,

पापियों के वक्ष से रक्त सोख लायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।१।।

 

जंगलों में घूमती, क्यों रहे जनक-सुता,

लांछन लगा रही जो जीभ काट लायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।२।।

 

प्रेम का स्वरूप क्यों, यूँ छिपा छिपा रहे,

ढूढ़ कर स्वयं उसे, हृदय में बसायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।३।।

 

मातृ के स्वरूप को, देख कर हर एक में,

गिर रहे चरित्र-मूल्य, उन्हें फिर उठायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।४।।

 

लाज का जो आवरण, गिर रहा है शीश से,

खुद उठायें, स्वयं ही, हाथ से सजायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।५।।

 

पीछे पीछे रह गयीं, आज सारी नारियाँ,

मार्ग मे हर एक पग, साथ ही बढ़ायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।६।।


रही व्यक्त देवियाँ, शूरता में, ज्ञान में,

हर दिवस यही निनाद जागरण बनायें हम।

मिल के साथ आयें हम ।।७।।

 

पुरुष की है पूर्णता, प्रकृति के उछाह पर,

उठें अर्धविश्व को प्रसन्नतम बनायें हम ।

मिल के साथ आयें हम ।।८।।


8 comments:

  1. पुरुष की है पूर्णता, प्रकृति के उछाह पर,
    उठें अर्धविश्व को प्रसन्नतम बनायें हम ।

    –सार्थक सुन्दर लेखन

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  2. संस्कृति को,प्रेम को संजोय रखने का सुन्दर प्रयास !संरक्षण ही जीवन है |

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  3. रही व्यक्त देवियाँ, शूरता में, ज्ञान में,

    हर दिवस यही निनाद जागरण बनायें हम।

    बहुत सुंदर आह्वान और विश्वास।
    अभिनव सृजन।

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  4. राक्षसी प्रवृति के नाश हेतु एक होना जरुरी है

    बहुत सही

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    1. जी, सच है, विश्वासयुक्त और भयमुक्त विश्व।

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