28.1.17

सबके अपने युद्ध अकेले

सबके अपने युद्ध अकेले,
और स्वयं ही 
लड़ने पड़ते, 
सहने पड़ते, 
कहने पड़ते,
करने पड़ते,
वह सब कुछ भी,
जो न चाहे कभी अन्यथा।

कल कल जल भी जीवट होकर,
ठेल ठेल कर, काट काट कर,
पाषाणों को सतत, निरन्तर,
तटबन्धों को तार तार कर,
अपनी गति में, अपनी मति में,
जूझा भिड़ता,  निर्मम क्षति में,
लय अपनी वह पा लेता है, मार्ग हुये जब रूद्ध अकेले,
सबके अपने युद्ध अकेले।

प्रस्तुत सब सुविधायें सम्मुख, 
प्राप्य परिधिगत, आकंठित सुख,
फिर भी लगता छूटा छूटा,
नहीं व्यवस्थित, टूटा टूटा,
प्रश्नों के निर्बाध सृजन में
भीतर बाहर बीहड़ वन में,
उत्तर के उत्कर्ष ढूँढते, फिरते रहते बुद्ध अकेले।
सबके अपने युद्ध अकेले।

क्या जाने, क्या चुभ जाये मन,
किन अंगों से फूटे क्रंदन,
चित्त धरा क्या, मन की ठानी,
रिस रिस बहती कौन कहानी,
सामर्थ्यों को लाँघे जाता,
लघुता को अभिमान दिलाता,
बीस बरस तक पत्थर तोड़े, दशरथ माँझी क्रुद्ध अकेले।
सबके अपने युद्ध अकेले।

कहने को तो जगत वृहद है,
परिचित पंथी, साथ सुखद है,
दिन ढलता जब, रात अवतरित,
भाषा निर्बल, शब्द संकुचित,
मन के संग रहना पड़ता है,
अपने को सहना पड़ता है,
काम क्रोध ईर्ष्या मद नद में , होना सबको शुद्ध अकेले।
सबके अपने युद्ध अकेले।

50 comments:

  1. वाह , बेहद खूबसूरत रचना , बधाई आपको !!

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  2. जीवन का सार। जीवन का सन्देश।अतिसुन्दर।

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  3. Badhai ho..long live yr creativity !!

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  4. सुंदर कविता । बधाई ।

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  5. बहुत सुन्दर प्रेरक कविता ।।।।।

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  6. बहुत सुन्दर प्रेरक कविता ।।।।।

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  7. अत्‍यंत गूढ़ भावनाओं और वेदनाओंं से सुसज्जित शब्‍द।

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    1. आज पुन: आपकी यह कविता पढ़ी। इस मौसम में आपके शब्द अत्यधिक प्रासंगिक व प्राकृतिक लगते हैं। अत्यंत आच्छादित करती शब्द सरिता सी कविता

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    2. Kavita baar-baar padne ko jee chahta hai. Aap kahan hain? Likhen kuchh blog par.

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-01-2017) को "लोग लावारिस हो रहे हैं" (चर्चा अंक-2586) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

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  9. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "शेर ए पंजाब की १५२ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  10. क्या बात है सुन्दर ।

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  11. आश्वस्ति चाहे जितनी मिली हो उस महाभारत में लड़ना अर्जुन को स्वयं ही पड़ा था .

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  12. Aisi kavita bahut dinon ke baad padhne ko mili..shaandaar...behad shaandaar..

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  13. पूरा गीता ज्ञान उँडेल दिया।

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  14. कल मैंने अपका लिखा चीन यात्रा के सभी पोस्ट पढे। लगा कि अब चीन को जानने लगा हूँ। अापकी कविताएँ भी अच्छी लगती है मगर गद्य का जयादा इंतजार रहता है।
    यह कविता बहुत ही लयबद्ध अौर मन मेण बस जाने वाली है।

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  15. वेदनाओंं से सुसज्जित प्रेरक कविता

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  16. Anonymous31/3/17 01:02

    For Your Consideration.

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  17. it’s really good , i like it

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  18. बहुत उम्दा रचना

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  19. Badhiya.. Happy Birthday Praveen ji. FB messenger band hai aapka 4 saalon se :)

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  20. Anonymous19/5/17 22:54

    बहुत अच्छा लेखन है आपका. सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई.

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  21. बहुत सुंदर लेखन है आपका. बधाई.

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  22. bahut accha likha h

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  23. काम क्रोध ईर्ष्या मद नद में , होना सबको शुद्ध अकेले।
    सबके अपने युद्ध अकेले।........ बहुत सुन्दर कविता

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  24. waah bahut khoob behtareen rachna

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    सादर

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  26. बहुत उन्दा पंकितीय है

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  27. बहुत सुंदर कविता है। जितनी बार पढ़ो उतनी ही अच्छी लगती है।

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  28. बहुत सुन्दर और सटीक...अपना युद्ध स्वयं ही लड़ना होता है ...

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  29. क्या बात है ! बहुत दिनों बाद आवाजाही हुई।कहाँ गए वो दिन !

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  30. रे मन
    तेरा ही आसरा
    तेरा ही सहारा ,
    तेरी ही जीती जागती सी है ,
    मुझमे हरियाली....

    मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत ..!! यथार्थ कहती सुंदर रचना ..!!

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  31. Praveen ji bahut dino se koi nai post nhi hai...vyastata adhik hai ya aap likh hi nhi rhe...

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  32. Praveen ji bahut dino se koi nai post nhi hai...vyastata adhik hai ya aap likh hi nhi rhe...

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  33. बहुत सुंदर, सचमें सभी को अकेले ही अपना युद्ध लड़ना पडता है।

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  34. Kash sa ladna sabhi to apne ha

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  35. Anonymous18/1/18 08:03

    अति उत्तम -सबके अपने युद्ध अकेले,
    और स्वयं ही
    लड़ने पड़ते,
    सहने पड़ते,
    कहने पड़ते,
    करने पड़ते,
    वह सब कुछ भी,
    जो न चाहे कभी अन्यथा। सच है अकेले ही अपना युद्ध लड़ना पडता है

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  36. Sundar kavita adbhut pravah

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  37. बहुत ही सुंदर कविता। अंतिम पंक्ति सबके अपने युद्ध अकेले तक पहुंचते-पहुंचते मन भाव विभोर हो गया। हार्दिक बधाई स्‍वीकारें।
    डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश

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  38. बहुत सुंदर कविता है। जितनी बार पढ़ो उतनी ही अच्छी लगती है।

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  39. जीवन के झंझावातों का हम सभी को येन केन प्रकारेण अकेले ही सामना करना होता है। इस भाव को आपने बहुत ही खूबसूरती से कविता में पिरो दिया है, बधाई।

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  40. बहुत ही शानदार वक्तव्य

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  41. bahut hi sundar kavita likhi hai appne

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  42. बहुत ही बढ़िया है जी धन्यवाद

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  43. 👍🙏 वाह प्रवीण
    प्रेरणा दायक कविता

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  44. बहुत सुन्दर रचना 👍

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