8.5.16

सौन्दर्य तेरा

जब खड़ा सौन्दर्य तेरा, मुस्करा करता इशारे,
कल्पनायें रूप की टिकती नहीं हैं, हार जातीं ।
रूप से तेरे सुनयना, विकल होकर प्राण सारे,
हैं तड़पते, काश अब तो प्यार की बरसात आती ।।१।।

दृष्टि से छूकर मुझे, जब नयन दो तेरे निकलते,
छूटते दो बाण मानो प्रेम के गाण्डीव से ।
बिद्ध होकर प्राण मेरे, हर समय रहते तड़पते,
हो सके उपचार अब तो तेरे ही स्पर्श से ।।२।।

रूप का यूँ खिलखिलाना प्रेम की भोली दशा पे,
उठ रही शाश्वत तरंगें अब हृदय में प्रेम की ।
बज उठा संगीत मन में, प्रेम की नव आस से,
गूँजती हैं धुनें अब तो, अनवरत ही प्यार की ।।३।।


7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-05-2016) को "किसान देश का वास्तविक मालिक है" (चर्चा अंक-2338) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Admin, if not okay please remove!

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    Thanks

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  3. बहुत ही खूब

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  4. bahut aacha...thank you
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