22.5.16

विचारों में दावानल

कह दूँ यदि मन की अभिलाषा,
मन मेरा अब तक क्यों प्यासा,
अर्धनग्न कई सत्य छिपाये, हृद आक्रोशित रहता था ।
होठों पर थी हँसी, विचारों में दावानल बहता था । १।

कह दूँ क्यों अकुलाता था मैं,
शब्दों को पी जाता था मैं,
संयम के वश, मन के जलते भाव छिपाये रहता था ।
होठों पर थी हँसी, विचारों में दावानल बहता था । २।

देख रहा हूँ शान्त, अकेला,
व्यक्तित्वों का जड़वत मेला,
इसी काष्ठ से, जीवन भर की आस लगाये रहता था ।
होठों पर थी हँसी, विचारों में दावानल बहता था । ३।


4 comments:

  1. एक इंसान आज सचमुच बहुत परेशान है क्योंकि सद्विचारों का चारो तरफ तिरस्कार है

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  2. सचमुच जब अन्दर का आन्दोलन मुखर नही होपाता मन में दावानल सा सुलगता रहता है . मनोदशा का बहुत सुन्दर विश्लेषण

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  3. सुख और दुख हैं हाथ हमारे महापुरुष यह कहते हैं ।

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