10.1.16

सुख लौटा दो

शापित धन-यश नहीं चाहिये,
व्यथा-जनित रस नहीं चाहिये

त्यक्त, कुभाषित जीवन, तेरा संग पाने को अति आकुल है
तेरी फैली बाहों में छिप जाने को रग रग व्याकुल है ।।

मुझको अपने पास बुला लो,

मुझको मेरा सुख लौटा दो

16 comments:

  1. "त्यक्त, कुभाषित जीवन तेरा," त्यक्त और कुभाषित के लिये कैसे बाहे फैला दी??

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    1. जी, संभावित संशय दूर कर दिया है, अर्धविराम लगाकर।

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    2. जी हाँ अल्पविराम से संशय की धुंध साफ़ हो गयी, बहुत अच्छा है ।

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    3. जी हाँ अल्पविराम से संशय की धुंध साफ़ हो गयी, बहुत अच्छा है ।

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  2. जय मां हाटेशवरी...
    आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...

    इस लिये दिनांक 11/01/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
    चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
    आप भी आयेगा....
    धन्यवाद...

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  3. गहन , यह व्याकुलता सबके मन में ही है

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  4. बहुत खूब लिखा है आपने।

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  5. बहुत खूब लिखा है आपने।

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  6. बहुत खूब ...

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  7. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १२०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "तुम्हारे हवाले वतन - हज़ार दो सौवीं ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. bahut sundar abhav abhivyakti praveen ji

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  9. अद्भुत अभिव्यक्ति

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  10. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  11. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  12. राग ये कैसा उठ रहा है ?

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