30.8.15

बताता हूँ सत्य गहरा

बताता हूँ सत्य गहरा,
आत्म-क्रोधित और ठहरा,
लगा है जिस पर युगों से,
वेदना का क्रूर पहरा ।

मर्म जाना तथ्य का,
जब कभी भी सत्य का,
जानता जिसको जगत भी,
व्यक्त फिर भी रिक्तता,
नित्य सुनता किन्तु अब तक रहा बहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।

मैं उसे यदि छोड़ता हूँ,
आत्म-गरिमा तोड़ता हूँ,
काल से अपने हृदय का,
क्षुब्ध नाता जोड़ता हूँ ।
स्याह संग जीवन लगे कैसे सुनहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।

ध्यान सारा बाँटते हैं,
झूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।

11 comments:

  1. ध्यान सारा बाँटते हैं,
    झूँठ मुझको काटते हैं,
    आत्म की अवहेलना के,
    तथ्य रह रह डाँटते हैं,
    नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
    बताता हूँ सत्य गहरा ।

    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  2. सुंदर प्रस्तुति...

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  3. आत्म चिन्तन से ही गहरा सत्य प्रकट हो पाता है।

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  4. badiya hai...kya shabdon ka chayan hai

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  5. वाह , क्या बात है , खूबसूरत रचना !

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  6. चक्रव्यूह के तथ्य सा , जलेबी से कथ्य सा ...

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  7. ध्यान सारा बाँटते हैं,
    झूँठ मुझको काटते हैं,
    आत्म की अवहेलना के,
    तथ्य रह रह डाँटते हैं,
    नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
    बताता हूँ सत्य गहरा ।
    गहरें भावों को समेटे .... सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in,

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