24.5.15

आशा

आशा की अँगड़ाई, फैली दिगदिगन्त है ।
बीत गये दुख-पतझड़, जीवन में बसन्त है ।। 

पथ पर पग दो चार बढ़े, था मन उमंग में उत्साहित ।
भावनायें उन्मुक्त और मैं लक्ष्य-प्राप्ति को आशान्वित ।
रुक जाने का समय नहीं, घट भर लेने थे अनुभव के,
कर्म बसी भरपूर ऊर्जा, सुखद मनोहर पथ लक्षित ।।१।।

बीच राह, सब ओर स्याह, पुरजोर हवायें बहती थीं ।
काल करे भीषण ताण्डव, चुप रहे जीवनी सहती थी ।
आयी निष्ठुर प्रारब्ध-निशा, कुछ और कहानी कह डाली,
विघ्न-बवंडर उठते नभ में, आशायें नित ढहती थीं ।।२।।

दुख आते, मन अकुलाते, कुछ और स्वप्न ढल जाते हैं ।
अनचाही पर उस पीड़ा को, हम सहते हैं, बल पाते हैं ।
कुछ और अभी पल आयेंगे, कष्टों का बेड़ा लायेंगे,
फिर भी आशा है, जीवन है, हम भूधर से डट जाते हैं ।।३।।

13 comments:

  1. "पर्यावरण प्रदूषण से अवनि(पृथ्वी )बचाए"
    प्रकृति पियारी सबको देती ठाँव- छाँव है |
    खुदा अपना जहां के ईश्वर महा -महान है ||
    कौतूहल कोना-कोना गोशा-गोशा मति मारे |
    सुरक्षा को कवच सम्हारे प्यारे गण सारे ||
    निज-निज में डींग हांकने वाले सारे द्वारे |
    दिखे ओजोन परत बचाने वाले सभी किनारे ||
    शोषक पराबैगनी विकीरण किरण सुकवच ओजोन तारे |
    हिफाजत मानव की करता कैंसर त्वचा आँख की बीमारी ||
    पर्यावरण संकट गहराया आर्थिक विकाश हम सब जानें |
    उपभोग -अभिमुख पौद्योगिकी में प्रगति जनता भी माने ||
    रासायनिक प्रयोग से ओजोन परत को हानि होता जा रहा |
    भौगोलिक सूचना तन्त्र कम्पूटरीकृत करते होता जा रहा ||
    जलवायु परिवर्तन जल-प्रदूषण निजाम विविधता बता रहा |
    खाद्य की निश्चिंतता आजीविका का खतरा बने ना दिख रहा ||
    पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा जगत जानता मुहीम बचाने की ठानें |
    करना है कल्याण विश्व का जनला 'मंगल 'कोलाहल हौ काहें||sukhmangal@gmail.com
    शब्दार्थ: कोना -कोना =चप्पा -चप्पा |गोशा -गोशा =जहाँ आवाज न पहुच पाती हो वहाँ भी पहुचती है |अवनि =पृथ्वी ,जमीन ,धरती | शोषक=क्षीण करने वाला ,सोखने वाला |

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  2. बीच राह, सब ओर स्याह, पुरजोर हवायें बहती थीं ।
    काल करे भीषण ताण्डव, चुप रहे जीवनी सहती थी
    .......खामोश जबा रही मन की व्यथा सब कहतीथी

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-05-2015) को "जरूरी कितना जरूरी और कितनी मजबूरी" {चर्चा - 1986} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  4. कुछ और अभी पल आयेंगे, कष्टों का बेड़ा लायेंगे,
    फिर भी आशा है, जीवन है, हम भूधर से डट जाते हैं ।।३।।
    आशा से आकाश थमा है .......सुन्दर !
    उत्तर दो हे सारथि !

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  5. कुछ और अभी पल आयेंगे, कष्टों का बेड़ा लायेंगे,
    फिर भी आशा है, जीवन है, हम भूधर से डट जाते हैं ।
    आशा है तो जीवन है

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  6. लम्बे समय बाद कुछ आशावान दिखाई दिये।

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  7. उत्‍साहित करतीं पंक्तियां।

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  8. दुख भरे दिन बीते रे भैया
    अब सुख आओ रे---
    शुभ-संकेत.
    अच्छे दिन आने वाले हैं.

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  9. बीच राह, सब ओर स्याह, पुरजोर हवायें बहती थीं ।
    काल करे भीषण ताण्डव, चुप रहे जीवनी सहती थी .....आशाएं धूमि‍ल न हो.;बस इसका ख्‍याल रहे

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  10. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  11. मन को छु जाने वाली पंक्तिया.

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  12. बहुत ही उम्दा....

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  13. सुन्दर सकारात्मक सन्देश देती रचना

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