6.9.14

मातृत्व

मिलता रहता अन्न धरा से,
जल बन जीवन-अमृत बरसे,
फल बोझों से झुकते तरुवर,
प्राण-वायु और औषधि पाकर,
खातेपीते इस धरती परहम जीतेसुख से रहते हैं 
प्यार भरा वात्सल्य सततमातृत्व इसी को कहते हैं ।।१।।

नील-जलधि काबहती नद का,
ऊपर फैले विस्तृत नभ का,
रसरंगों से लदे हुये वन,
आश्रय धरतीआश्रित हैं हम,
हिम आच्छादित शैलमध्य मेंसुन्दर झरने बहते हैं 
छिटकाती सौन्दर्य पूर्णमातृत्व इसी को कहते हैं ।।२।।

प्राप्त तत्व सारे आवश्यक,
तनमन हित सौन्दर्य-प्रदायक,
माणिकमोतीसोनाचाँदी,
रत्नाभूषण ला दे जाती,
मन हुलसाती सोंधी माटीजीवन बन पुष्प महकते हैं 
लाकर देती श्रृंगार विविधमातृत्व इसी को कहते हैं ।।३।।

9 comments:

  1. भावपूर्ण.... सच, मातृत्व इसी को कहते हैं

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  2. माता पृथ्वी पुत्रोsहम पृथिव्याः
    यह भाव लेकर कविता अवतरित हुई है

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  3. निश्चित ही. मातृत्व की यही परिभाषा है.

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  4. अद्भुत कविता-अद्भुत मातृत्व! आभार।

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  5. Anonymous8/9/14 09:49

    धरती मां ऐसी ही हैं...

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  6. मातृत्व से ओत-प्रोत।

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  7. वाह सर ! मात्रृत्व को समर्पित इस कविता और इसे प्रकाशित करने वाली लेखनी को शतस: प्रणाम । माॅं से क्या नहीं मिलता?
    इसलिए-------माया जगत की तू अकेली, एक अनुपम कृति हो / पूरी प्रकृति में सृजन की तू , एक अद्भूत रीति हो ।

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  8. सही मायनों में मातृत्व की परिभाषा ।

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