14.5.14

समझौते

खाई बड़ी थी मतभेदों की,
भरने की करता अभिलाषा,
कितने ही थे समझौते, 
जो मैने अपने साथ किये ।

और अभी भी जीवन के जीवन ही इसमें बह जायेंगे ,
नहीं किन्तु वह भर पायेंगे, किञ्चित दुख बढ़ा जायेंगे ।

और अभी भी मुक्त विवशता आयेगी मेरे ही द्वारे,
समझौतों का भार लिये और पीड़ाआें का हार लिये ।

रहने दो इन मतभेदों को,
क्यों मतैक्य की लिये लालसा,
जीवन के अनुपम मूल्यों को,
 मैं व्यर्थों में व्यर्थ करूँ ।

किन्तु तुम्हारा श्रेय रहा है,
मेरे इस अवमूल्यन में,
तुमने ही आँखें खोली,
तुम धन्यवाद स्वीकार करो ।

22 comments:

  1. हर रिश्ता बलि मॉगता है ।
    निर्वाक्- बेडियॉ डालता है ॥

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  2. बहुत अच्छे

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  3. कितने ही समझौते मैंने अपने साथ किये।।।।
    हर घड़ी हर पल
    दिन और रात किये
    समझौतों में ही बित गया जीवन सारा
    फिर रह गया मैं बेचारा का बेचारा

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  4. बहुत सुंदर रचना. ईश्वर सब को शक्ति दे विवेक पूर्ण जीवन जीने के लिए.

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  5. गहरी अभिव्यक्ति.....स्वयं को समझाना-समझना ही श्रेष्ठ है

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  6. अवमूल्यन भी आवश्यक है, अन्यथा हम दौड़ में पीछे रह जाते हैं , जीवन शायद इसी का नाम है।

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  7. बेहद गहन भाव ..... लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

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  8. अवमूल्यन भी दर्पण का काम करता है बशर्ते वह स्वच्छ व निष्पक्ष हो ।

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  9. जीवन शायद समझौतों से ही गुजरता है..सुंदर प्रस्तुति।।।

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  10. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ...!

    RECENT POST आम बस तुम आम हो

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  11. आज की ब्लॉग बुलेटिन लोकतंत्र, सुखदेव, गांधी और हम... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...

    सादर आभार !

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  12. अहंकार को किसी तरह तो गलना होगा
    प्रभु के मंदिर चढ़ने हेतु जलना होगा

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  13. चाहे कह लें उन्हें समझोते या कि स्वीकर-भाव,मनःस्थिति की दशाएं है.
    मन अपनी ही ढालों पर तलवारें खीचता रहता है.
    कभी-कभी ऐसा भी होता है?

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  14. दोनो ओर व्यक्तित्व समपन्नता में मतभेद होना स्वाभाविक है.स्वाभाविक प्रवाह बना रहे इसलिए एक सम पर आना समझौता भले हो, अवमूल्यन कैसे ?

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  15. समझौते जिंदगी के आधार हैं...रिश्तों की तरह...निभाने ज़रूरी हैं...

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  16. जाने क्यों वेद लिखे हमने, हँसते हैं अब,अपने ऊपर !
    भैंसे भी, कहाँ से समझेंगे , यह गोबर ढेर, हमारे भी !

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  17. रिश्ते हैं तो जीवन है ... बहुत ही लाजवाब धाराप्रवाह ...

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  18. हर जीवन , जीवन जीने का समझौता होता है.

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