25.8.12

झण्डा ऊँचा रहे हमारा

स्वतन्त्रता दिवस था, सुबह सर ऊँचा कर भारत के झण्डे के सामने राष्ट्रगान का सस्वर पाठ किया था। जब भी राष्ट्रगान बजता है, दृष्टि स्वतः ही झण्डे की ओर चली जाती है। बहती हवा में लहराता झण्डा मन में रोमांच भर देता है, लगता है कि कोई प्रतीक है जो हमें एक देश के सूत्र में बाँधे है, कोई प्रतीक है जो हमें उस संघर्ष की याद दिलाता है जो हमारे पूर्वजों की भेंट थी हम लोगों के लिये, इसलिये कि हम मुक्त गगन में जी सकें। घर वापस आकर कवि प्रदीप के लिखे गीतों पर आधारित एक कार्यक्रम देख रहा था। मन संतुष्ट था, भारत का लोकतन्त्र अपने ६५ वर्ष पूरे कर चुका था।

तभी वाणिज्य विभाग के अधिकारी का फोन आता है कि सर गुवाहटी के लिये ६०० अतिरिक्त टिकट बिक चुके हैं, लगता है कि आज जाने वाली ट्रेन में अतिरिक्त कोच लगाने होंगे। सामान्य दिनों की अपेक्षा संख्या अधिक थी पर कारण विशेष ज्ञात नहीं था, अधीनस्थों को अतिरिक्त कोचों की व्यवस्था सम्बन्धित आवश्यक निर्देश देकर आश्वस्त हो गये। अभी दो घंटे ही और बीते होंगे कि सूचना मिली कि टिकटों की संख्या २००० पार कर चुकी है, स्टेशन पर बहुत भीड़ है और लोग अभी भी टिकट ले रहे हैं। यह निश्चय ही असामान्य था, कोई बात अवश्य थी। उस समय बच्चों के साथ टेबल टेनिस खेल रहा था, जब और जानकारी लेने के लिये मोबाइल पर बात करने लगा तो बच्चों ने इस तरह देखा, मानो कह रहे हों कि आप यहाँ पर भी चालू हो गये।

दस मिनट में यह पक्का हो गया था कि लोग व्यग्र हैं और पलायन कर रहे हैं। नियत ट्रेन में इतनी क्षमता नहीं है कि वह इतने यात्रियों को ले जा पायेगी। अतिरिक्त कोच लगाने पर भी सबको स्थान नहीं दिया जा सकता था। एक विशेष ट्रेन चलाने का निर्णय लिया गया। सामान्य स्थिति में एक नियत प्रक्रिया के बाद ही ऐसी अनुमति मिलती हैं पर परिस्थितियों की गम्भीरता को देखते हुये तुरन्त ही मौखिक अनुमति मिल गयी। राष्ट्रीय अवकाश था और अधीनस्थों की संख्या अन्य दिनों से कम थी, फिर भी सब स्टेशन पर पहुँच गये थे। स्टेशन पर भीड़ अप्रत्याशित थी और सूचना मिल चुकी थी कि ३००० से अधिक टिकट बिक चुके हैं। व्यवस्था बनाये रखने के लिये सुरक्षा बल पहुँच चुके थे।

जो लोग रेलवे से जुड़े हैं, वे जानते हैं कि इतने कम समय में एक विशेष ट्रेन को चलाना बड़ा ही दुरूह कार्य है। कोचों को एकत्र करना, एक साथ लाकर ट्रेन को स्वरूप देना, ६ घंटे के नियत गहन परीक्षण में देना, इंजन, ड्राइवर और गार्ड आदि की व्यवस्था करना। इन सब कार्यों में कई निर्णय तात्कालिक लेने होते हैं, उस हेतु सारे सम्बन्धित अधिकारी और पर्यवेक्षक अपने कार्यस्थल पर पहुँच चुके थे, कार्य अपनी पूरी गति में था। उधर भीड़ व्यग्र हो रही थी, उन्हें भी बताना आवश्यक था कि उनके लिये एक विशेष ट्रेन चलायी जायेगी। नियत ट्रेन के पहले ही एक विशेष ट्रेन चलाने की घोषणा ने भीड़ को संयत किया, प्लेटफार्म नियत कर उसकी भी उद्घोषणा कर दी गयी। सुरक्षाबलों ने बड़ी ही कुशलता से सबको नियत प्लेटफार्म पर पहुँचाने का कार्य प्रारम्भ किया। धीरे धीरे सारा प्लेटफार्म भर गया, लोग अनुशासित हो विशेष ट्रेन के आने की प्रतीक्षा करने लगे।

जिस समय संवेदनायें अपने उफान पर हों, समस्या को सीमित मान लेने की भूल नहीं की जा सकती थी। इतनी व्यवस्था करने के बाद भी टिकट बिक्री पर दृष्टि बनी हुयी थी। पहली विशेष ट्रेन जाने में अभी ४ घंटे शेष थे, तभी पता लगा कि टिकट ७००० की संख्या पार कर चुके हैं। निर्णय लेना आवश्यक था, एक और विशेष ट्रेन की अनुमति लेकर उसकी घोषणा कर दी गयी। जब घर में ४ लोगों का खाना बनता हो और सहसा गृहणी को १०० लोगों की व्यवस्था करने को कहा जाये, तो जो स्थिति गृहणी की होती है, वैसी ही हम लोगों की हो रही थी। हाथ में जो भी था, उसे सेवा में लगा दिया गया, पड़ोसी मंडलों और मुख्यालयों से सहायता के लिये गुहार लगायी गयी। वरिष्ठों ने परिस्थितियों को समझा और यथासंभव और त्वरित सहायता की व्यवस्था की। सहायता आनी थी पर उसमें समय लगना था, सामने ७००० की संख्या। बस ईश्वर से यही मना रहे थे कि आज संख्या इससे अधिक न बढ़े, दो विशेष और एक नियमित ट्रेन में ७००० यात्रियों को भेजना संभव था।

ट्रेनों की तैयारी पर और भीड़ की गतिविधियों पर दृष्टि बनी रहे, इस कारण फुट ओवर पुल पर एक स्थान ढूढ़ा गया। वह भीड़ के प्रवाह से थोड़ा अलग था और निर्णय लेने के लिये समुचित। तब तक स्टेशन पर पहुँच चुके मीडिया और अन्य संगठनों की दृष्टि से भी दूर था वह स्थान। एक सुरक्षाकर्मी और एक पर्यवेक्षक के साथ वहाँ पर कोई व्यवधान नहीं था। स्टेशन पर लगातार उद्घोषणा की जा रही थी जिससे भीड़ संयत बनी रहे, सबको यह विश्वास दिलाया जा रहा था कि सबको भेजने की व्यवस्था की जायेगी। इतनी अधिक भीड़ तीन घंटे संयत और अनुशासित बैठी रही, यह अपने आप में स्मरणीय अनुभव था हम सबके लिये।

अन्ततः पहली विशेष ट्रेन आयी, पर उसके पहले निर्णय इस बात का लेना था कि कोचों के दरवाजे पहले से खोलकर लाया जाये या बन्द कर के। दरवाजे खोलकर लाने से लोग चलती ट्रेन में घुसने का प्रयास करते और कुछ अनहोनी होने की संभावना बनी रहती। बन्द कर के लाने से लोग अधीर हो जाते। अन्ततः निर्णय लिया गया कि प्लेटफार्म की ओर दरवाजे बन्द रखे जायेंगे औऱ दूसरी ओर के खुले। हर कोच में एक कर्मचारी रहेगा जो अन्दर से दरवाजा तभी खोलेगा जब सुरक्षाबल बाहर से भीड़ को पंक्तिबद्ध और अनुशासित कर लेंगे। इसमें थोड़ा समय अधिक लगा, कर्मचारी अधिक लगे पर बिना किसी घटना के ट्रेन में यात्री बैठ गये। प्लेटफार्म पर बचे लोगों को अगली ट्रेन तक रुकने को कहा गया। जब ट्रेन सकुशल निकल गयी तभी अन्य यात्रियों को एक अस्थायी जमावड़े से प्लेटफार्म तक आने दिया गया।

डेढ़ घंटे के अन्दर तीन ट्रेन जाने के पश्चात प्लेटफार्म और टिकटघर खाली हो चुका था। आरक्षित यात्रियों समेत लगभग ८५०० यात्रियों को सकुशल भेजने के बाद समय देखा तो रात्रि २ बज चुके थे। हमारा कार्य फिर भी समाप्त नहीं हुआ था, लगभग आधे घंटे दिनभर के कार्य की कमियों पर छोटी चर्चा हुयी, अच्छे कार्य के लिये अधीनस्थों की पीठ थपथपायी गयी। यह मानकर चला जा रहा था कि अगले दिन भी यही प्रवाह बना रहेगा। अन्य मंडलों से आने वाली सहायता के आधार पर अगले दिन की रूपरेखा बनाकर घरों की ओर प्रस्थान किया गया।

घर आया तो दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे, न साथ टेबल टेनिस खेल पाया, न साथ में भोजन ही कर पाया। मेरी भी आँखों में गहरी नींद थी, पर यह सोच रहा था कि जब कल बच्चे पूछेंगे कि देर रात तक स्टेशन पर क्या कर रहे थे, तो क्या उत्तर दूँगा? यदि कहूँगा कि ६५ वर्ष के लोकतन्त्र की दृढ़ता का एक अपवाद देख कर आया हूँ, तो क्या वे इस बात को समझ पायेंगे? एक रेलवे कर्मचारी के रूप में सामने उपस्थित कार्य को सकुशल निभा पाने की उपलब्धि क्या उन्हें सगर्व बता पाऊँगा? पंजाब, सिन्धु, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल, बंग, जो कभी एक वाक्य में पिरोये गये थे, जो राष्ट्रगान के अंग थे, वे आज अपने अपने अलग अर्थ क्यों ढूढ़ने लगे हैं, क्या यह समझा पाऊँगा?

अधिक सोच नहीं पाता हूँ, निढाल हो बिस्तर पर लुढ़क जाता हूँ। जो भी हो, कल फिर गाऊँगा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।

62 comments:

  1. Aah...pata nahee ham apne desh ko kis or le ja rahe hain!

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  2. ये गान तो हर हाल में गाना हे है प्रवीण जी|

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  3. बहुत अफसोसनाक रही यह घटना ....आप और अन्य सम्वेदनशील लोग बधाई के पात्र हैं ।

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  4. उफ़्फ़! ये बहुत कठिन परिस्थिती थी...लेकिन हमने गाया है ये गान पूरी श्रद्धा के साथ तभी ये हम संभाल पाए इतनी आसानी से समस्या को हल कर पाए ...हर प्रांत के लोग रहे होंगे साथ जिन्होंने सहयोग किया होगा...आपका ...बच्चॊं को बताईये ठीक ऐसे ही ...वे भी गायेंगे और ज्यादा जोश से ...

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  5. ऐसी घटनाओं से निस्संदेह तिरंगे का सम्मान विश्व में घटता है ! शर्मनाक घटना है इस देश की भीड़ मानसिकता के लिए...
    आपका कार्य सराहनीय है प्रवीण भाई !

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  6. बड़ी कठिन घड़ी थी आप लोगों के लिए। कितना दुखद है कि कुछ निक्कमे लोग दूसरों के लिए विकटताएं खड़ी कर देते है।

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  7. प्रगाढ़ अनुभूतियों से निकली है यह रचना संकट के समय ही होती है प्रबंध कौशल और राष्ट्र प्रेम की जांच .देश का सौभाग्य है अभी टूटा नहीं है भकुवों के तोड़े आप जैसे कर्मठ राष्ट्र वादी उसे बचाए हुएँ हैं . .कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं
    गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html

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  8. फिर भी कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

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  9. दिखी पलायन दीनता, मन का भय आतंक |
    आश्रय धंधा छीनता, अफवाहों का डंक |
    अफवाहों का डंक, रहे जन गन मन नायक |
    जले शंक की लंक, मिले अधिकार लायक |
    कठिनाई में धैर्य, जिताए बड़े युद्ध को |
    साधुवाद हे वीर, दुआ दूँ चित्त शुद्ध को |

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    1. जले शंक की लंक, मिले अधिकारी लायक

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  10. हर बार पानी सर के ऊपर होने पर ही सरकार की नींद खुलती है..खामियाजा तो अधीनस्थ को भुगतना पड़ता है . आप सभी को बधाई झंडा को हमेशा ऊँचा रखने के लिए..

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  11. अब झंडा गीत को सिर्फ राष्ट्रीय पर्व पर ही नहीं, साल के ३६५ दिन गाने की आवश्यकता है और जिस दिन हम इसे मुंह के बजाय दिल से गाने लगेंगे, उस दिन ही हमारा देश वास्तविक लोकतंत्र होगा और सारी समस्याएं स्वतः ही तिरोहित हो जाएँगी...

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  12. जो भी हो, कल फिर गाऊँगा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।

    ऐसे कठिन समय में सुव्यवस्था बनाए रखी ....कर्मठ नागरिकों के कारण ही हम गा पाते हैं झण्डा ऊंचा रहे हमारा ।

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  13. यह गान गाते हुए अपने कर्तव्‍य पथ पर यूँ ही आगे बढ़ते जाना होगा ...
    आभार

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  14. ऐसे वक्त मे भी सफ़लता पूर्वक अपने काम को अंजाम दिया वो ही काफ़ी है हाँ ये दुखद है कि कब तक हम बँटे रहेंगे कब वास्तव मे हिन्दुस्तानी कहायेंगे ।

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  15. अफवाहों से पैदा हुई इस मुसीबत में स्पेशल ट्रेन्स का इंतजाम भी संदेहात्मक बताया गया था .
    लेकिन आपका लेख पढ़कर संतुष्टि महसूस हो रही है .
    अपना फ़र्ज़ निभाने में भी एक सुखद अहसास होता है .

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  16. सैल्यूट है आपको और आपकी (रेलवे) रेजीमेंट को
    एक जहाज का कैप्टन सही और त्वरित निर्णय ले तो किसी भी आपदा से निबट सकता है

    प्रणाम

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  17. बहुत ही हृदय विदारक घटना.
    आप लोगों के सकुशल प्रबंधन से बिना किसी अनहोनी के विशेष ट्रेनें त्वरित चलीं इसलिए बधाई.

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  18. Behrateen post! Desh par garv hai par desh ko chalane walon par krodh

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  19. हाँ ... हार नहीं मानना है

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  20. अफवाह फैलाने वालो ने अपना काम कर दिया ...पर ये हज़ुम बिना ये सोंचे कि क्या गलत और क्या सही इन अफवाहों पर विश्वास कर लेना....सरकार और आम लोगों को कितनी परेशानी में डाल सकता हैं...ये कोई नहीं जानता ...सलाम हैं आप लोगों की हिम्मत और देश भक्ति की जो मुश्किल की घड़ी में इतनी हिम्मत और सूझबूझ से काम लिया

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  21. बिलकुल ठीक कहा है आपने कि जिस समय संवेदनाएं उफान पर हों समस्या को सिमित मन लेने की भूल नहीं की जा सकती ..........................लेकिन दुर्भाग्य तो यही है कि समस्याएँ कितनी भी विशाल हो हम उन्हें सिमित मान कर चलने की ही आदत बना चुकें है ..........उम्दा लेखन

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  22. झंडा ऊँचा रहे हमारा के लिए स्पष्ट चुनौतियाँ के साथ छद्म चुनौतिया भी संकट का कारण बन रही है .

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  23. इस पक्ष से महसूस करने का अवसर नहीं मिलता.

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  24. मैं तो टीवी पर देख कर कांप रहा था, पर आपने तो बिलकुल मुस्तैद हो कर अपनी कार्य क्षमता को निष्ठा से कार्यान्वित किया... बहुत बहुत साधुवाद आपको और रेलवे के पूरे स्टाफ को.

    @६५ वर्ष के लोकतन्त्र की दृढ़ता का एक अपवाद देख कर आया हूँ,

    लाखों साल बीत गए, पर हम नहीं सुधरे.. उसके बाद भी पता नहीं क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.

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  25. आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद

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  26. कल 26/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  27. प्रवीण जी आप जैसे अधिकारी पर फख्र है हमें -मुझे उन दिनों पल पल आपकी याद आ रही थी ..और सोच रहा था कि प्रवीण जी के लिए यह अग्नि परीक्षा का समय है -आप खरे उतरे .....बधाई!झंडा ऊंचा रहे हमारा !

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  28. बहुत जटिल परिस्थिति है। सचमुच यह दुख की बात है कि आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी स्थायित्व नहीं आ सका। ऐसी परिस्थितियों में आप और आपके साथियों ने कार्यनिष्ठा दिखाते हुए समुचित प्रयत्न किये, यह खुशी की बात है।

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  29. मुसीबत में इंतजाम खरे उतरे रेलवे के सम्वेदनशील लोग ..... सभी बधाई के पात्र हैं ।

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  30. झण्डा तो ऊँचा रहेगा ही ....ऐसी कितनी ही चुनौतियों का सामना कर चुका है ... पर इसकी आन बान और शान में कोई कमी नहीं हुई...जज़्बा बना रहे ....हम हार कभी ना मानें ...

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  31. प्रवीण भाई रात को पढ़ते पढ़ते सोया था आपका यह विचारुत्तेजक रोंगटे खड़े करने वाला रिपोर्ताज (उस वक्त यहाँ स्थानीय समय के अनुसार रात के साढ़े बारह बाज़ गए थे ),रात भर मन उद्वेलित रहा ,बच्चों को क्या बताऊंगा ,जरा सोचो मौन सिंह का क्या हाल होता होगा ?रोबोट तो बोल भी नहीं सकता ,....अभिनीत होता है बस ....शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए जो हमारे लिए बेशकीमती हैं,हमेशा .. कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं
    गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html

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  32. aise hi kuch logon ne jinda rakha hai..samman desh ka..
    mar chuka hai paani sabka..

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  33. Congrats on successful tackling of such unusual situation.

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  34. आप सभी बधाई के पात्र हैं ।...

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  35. इतनी अधिक लोक-संख्या को सावधानी पूर्वक सकुशल भेज दिया, बधाई प्रवीण जी । आप जैसे लोगों की वजह से ही झंडा ऊँचा है हमारा ।

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  36. ऐसी कर्तव्यपरायणता देशभक्ति काही एक रूप है.जब तक देश के विभीषणों को पहचाना नहीं जायेगा ऐसी ही विषम स्थितियाँ सामने आती रहेंगी !

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  37. शर्मसार करने वाली घटना रही हम सबके लिए ...
    आपने स्टाफ के साथ मिलकर बहुत ही संवेदनशील तरीके से समस्या का सामना किया !
    साधुवाद !

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  38. Anonymous26/8/12 07:15

    किसी एक या कुछ लोगोँ की गलती का परिणाम सबको कई पीढ़ियोँ तक भोगना पड़ता है, ऐसा हमारे गलत बात का विरोध न करने के कारण भी होता है,ये गलतियाँ क्या हैँ-(1)मुस्लिमोँ के लिये निर्दोष साबित होने पर भी वन्देमातरम् के स्थान पर अँग्रेजोँ की चापलूसी मेँ लिखे गीत को राष्ट्रगान का स्थान देने के फैसले का सामुहिक प्रबल विरोध न करने का दुष्परिणाम सबको भोगना पड़ेगा(2)देश का नाम इन्डिया हटा कर भारत किये बिना कुछ भी इस देश मेँ सही नहीँ होगा(3)स्वामी रामदेव जी का बिना शर्त समर्थन करने से ही सब सही होगा,सारे अगर मगर किन्तु परन्तु व्यर्थ हैँ सब छोड़ कर नौकरी करते हुये स्वामी रामदेव जी का समर्थन करना हम सबका कर्तव्य है, आप के कर्तव्य पालन को मेरा नमन है काश सभी अधिकारी आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ होते

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  39. बहुत दुखद हालात...यह कर्तव्यपरायणता ही राष्ट्र ध्वज का असली सम्मान है...

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  40. रेलवे सदा से ही अच्छा काम करती आई है ... इतने बड़े संघठन में कुछ कमियों का होना लाजमी है उसे नज़रंदाज़ लिया जाना चाहिए ... इस सामाजिक समस्या को रेलवे ने सूजबूझ से पार किया है ... जिसके लिए वो बधाई के पात्र हैं ... आप जैसे कर्मठ लोगों के बल पर ही रेलवे ऐसा कर पाती है ...

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  41. आजादी के 65 वर्ष बाद भी हम आतंक के साये में जी रहे हैं

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  42. हमारे देश में न ही अनुशासन है , न ही लोकतंत्र है, सिर्फ तानाशाही है इस संवेदनहीन सरकार की . आम इंसान रात-रात भर खून पसीना बहा रहा है. बच्चे पिता का इंतज़ार करते सो जाते हैं. पिता भी निढाल अगले दिन की जंग में उतरने के लिए निधार हो बिस्तर पर गिर जाता है. लेकिन हमारी सरकार इन सब व्यथाओं से परे, देश को खंडित करने के हर संभव बहाने तलाशती रहती है...Pathetic !

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  43. प्रवीण जी ! अफवाह एक बिना पंख वाला पक्षी होता है जो ऊंची उड़ान भरता है संचार का द्रुत तम साधन है .विवेक को ताक पे रखके लोग एक जन -उन्माद का शिकार हो जातें हैं अफवाह के साए में बेंगलुरु में यही हुआ .यहाँ कभी जन -सम्मोहन के तहत गणेश भगवान् दूध पीतें हैं कभी किसी दीवार पर देवता भित्ति चित्र बन प्रगट होतें हैं अजीब करिश्मों और हाकिमों का देश है ये यहाँ बिना रीढ़ का अकशेरुकी प्राणि प्रधान मंत्री बन सकता है ,इसकी रूह इटली में रहती है शरीर दिल्ली में ... ,शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -

    ram ram bhai
    रविवार, 26 अगस्त 2012
    एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis
    एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis


    कई मर्तबा हमारी रीढ़ साइडवेज़ ज़रुरत से ज्यादा वक्रता लिए रहती है चिकित्सा शब्दावली में इसे ही कहा जाता है -Scoliosis .

    24 हड्डियों (अस्थियों )की बनी होती है हमारी रीढ़ (स्पाइन )जिन्हें vertebrae कहा जाता है .रीढ़ की हड्डी की गुर्री का एक अंश है ये vertebra जिसे कशेरुका भी कहा जाता है .रीढ़ वाले प्राणियों को कहा जाता है कशेरुकी जीव (vertebrate ).

    ये कशेरुका एक के ऊपर एक रखी होतीं हैं .रीढ़ को सामने से पीछे की ओर देखने पर वह सीधी (ऋजु रेखीय )ही दिखलाई देती है .

    बेशक रीढ़ एक दम से सीधी नहीं होतीं हैं और ऐसा होना एक दम से सामान्य बात है.नोर्मल ही समझा जाता है .लेकिन जब यही रीढ़ आढ़ी तिरछी टेढ़ी मेढ़ी ज़रुरत से ज्यादा होती है तब यह असामान्य बात है ,एक रोगात्मक स्थिति भी हो सकती है यह जिसका आपको ज़रा भी भान (इल्म )नहीं है .
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  44. आपको और संपूर्ण रेल्वे प्रशासन को बहुत बहुत बधाई जो इतनी संवेदना और परिपक्वता का परिचय देते हुए इतने महत्वपूर्ण तात्कालिक निर्णय लेकर जाने की विशेष व्यवस्था करवाई ।

    तिरंगे तो जान से प्यारा है परंतु अब यह हालत है कि जो तिरंगा लेकर अगर सड़क पर निकल जाये तो और अगर "वन्दे मातरम" कहे तो, उसे पुलिस थाने ले जाया जाता है, क्रांति के जुर्म में । क्या वाकई हम आजाद हो चुके हैं !

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  45. Congrats for well tackling the situation!
    समस्यायों का निराकरण कर कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहे हम!
    जय हिंद!

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  46. ६५ वर्ष के लोकतन्त्र की दृढ़ता का एक अपवाद पर- आपकी आँखों रेल्वे की मुस्तैदी देख दिल प्रसन्न हुआ- साधुवाद!!

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  47. आओ प्यारे !वीरों आओ !देश धर्म पर बलि बलि जाओ ,एक साथ सब मिलकर गाओ ,झंडा ऊंचा रहे हमारा ,विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ..... कृपया यहाँ भी पधारें -
    सोमवार, 27 अगस्त २०१२/
    ram ram bhai
    अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  48. जो राष्ट्रगान के अंग थे, वे आज अपने अपने अलग अर्थ क्यों ढूढ़ने लगे हैं, क्या यह समझा पाऊँगा?......marmik,seedhe dil ko choo gayee.....

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  49. रेलवे की तो जितनी तारीफ की जाए उतना कम है। लेकिन अब तो चिन्‍ता है कि क्‍या एक और कश्‍मीर की तैयारी हो रही है?

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  50. देश उबल रहा है...स्थिति विषम है.... स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए आप जैसे लोग बिना मीडिया आकर्षण बने काम करते हैं... आपके प्रश्न एक गंभीर सवाल उठा रहा है.. शायद बच्चों को हम इसका जवाब न दे सकें...

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  51. complex situations..
    test everything we learn
    keeping the head high and do the right..
    and then our flag will keep waving till eternity

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  52. आनन्-फानन में की गई व्यवस्था के लिए रेलवे बधाई की पात्र है.सवाल यह है कि यह कैसी आज़ादी है जिसमें जनता जन प्रतिनिधियों के आश्वाशनॉ से ज्यादा अफवाहों और गुंडों की धमकियों पर विश्वाश करती है.वोटों की राजनीति करनेवाले इस देश का कबाड़ा करके रहेंगे, महज वक्त की बात है. आखिर और कितने कश्मीर चाहियें. बहरहाल,तब तक झंडा ऊँचा रहे हमारा गाने में क्या हर्ज़ है.

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  53. आज ही एक पोस्ट पढ़ा, आज की स्थिति पर सलीके से बात रखी हुई लगी.
    http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2012/08/blog-post_27.html

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  54. बहुत ही बेहतरीन रचना......

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  55. नीयत हो तो आदमी सब कुछ कर सकता है ,जहां चाह वहां राह ,हिम्मते मर्दा ,मदद दे खुदा !यही जाँबाज़ी फौजियों में दिखती है जो सहरा में फूल खिला देतें हैं वनस्पति लहलहा देतें हैं ,कर्मठ होना एक बड़ी बात है उस वोटिस्तान में जहां संसद में सिर्फ बहस होती है .भारत की एक अरब और बाईस करोड़ आबादी में कितने "प्रवीण भाई "हैं,पांच से तो ज्यादा ही होंगें ,पांडव भी पांच ही थे .इस देश को स्सारी वोटिस्तान को चलाने के लिए पांडव चाहिए ,संसदीय द्रौपदी का चीरहरण करने वाले कौरव नहीं .वो देखा है उसको कैसे संसद में बैठके हुश हुश करती है .
    हमारे एक दोस्त मुल्तान से आये वोटिस्तान बनने के बाद ,बतातें हैं वहां गाँव के मुखिया खान होते थे (सरपंच ).जिनका दबदबा रहता था .ये लोग कुत्ते पालते थे .लोग शिकायत लेकर आते थे .खान साहब जिसे पसंद नहीं करते थे उसे देख धीरे से अपने कुत्तों को हुश हुश ...कर देते थे ,कुत्ते भौंकते थे ,वह व्यक्ति भाग खड़ा होता था ,ये कोपभवानी (कोप कैकई )संसद में बैठी सिर्फ हुश हुश करती है इसीलिए प्रवीण जैसे लोग संकट में पडतें हैं .लेकिन इसे यह हुश हुश बहुत महंगी पड़ेगी .प्रवीण सलामत रहें . देश चलेगा ,दौड़ेगा ,झंडा लहलहाएगा .


    आओ पहले बहस करो -डॉ .वागीश मेहता ,डी .लिट .,1218 ,शब्दालोक ,सेक्टर -4 ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -122-001

    बोला पुलिस मैन , साहब से आकर ,
    गजब है तमाशा ,सुनो ध्यान से सर ।

    पकड़ा है जिस चोर को रंगे हाथ ,
    अकड़ता मुकरता है ,वो साथ साथ ।

    कहता है मुझसे ,करो बहस पहले ,
    चाहे बाद में दर्ज़ करो, नहले दहले ।

    देता खुली बहस का मैं निमन्त्रण ,
    मैं देखता रोज़ ,चैनल पे संसद ।

    है संसद संविधान से भी उच्चतर ,
    पर बहस का रूतबा, संसद से ऊपर ।

    स्वयं प्रमाणित घपले ,जो अकसर ,
    उन पर भी निष्फल, बहसें निरंतर ।

    आओ ,हम रपट से करें ,बहस पहले ,
    विविध चैनलों पर, दिखें शाट्स सीधे ।

    सुनो वोट आई -डी, लिया मैंने बनवा ,
    जो है सौ रोगों की, बस एक दवा ।

    मिली खूब सुविधा है वोटिस्तान की ,
    जय बोलो ,जय इंडिया देश महान की ।

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  56. आप रेलवे में हैं ...?
    आपसे वहां की विस्तृत जानकारी मिली मैं ये पोस्ट यहाँ के अखवार वालों को भेज सकती हूँ ....?

    पलायन यहाँ से भी जारी है ....हमारे यहाँ कुछ लडकियां किराये पे रहती हैं ...कल उनमें से एक लड़की अचानक मकान छोड़ कर चली गई पता चला परिवार वाले यहाँ से पलायन कर रहे हैं ...दुःख हुआ लड़की यहाँ नौकरी कर रही थी ...हिंसा अभी भी जारी है न जाने कितने लोग नित मारे जा रहे है...यहाँ के टी वी चैनल सद्भावना के कार्यक्रम दिखा रहे हैं ...सरकार मीडिया से सहयोग मांग रही है लेकिन अभी तक शांति बहाल नहीं हुई ....

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  57. ह्म्म! एकदम वार रुम जैसे हालात थे।

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  58. बधाई ..... अनुकरणीय उदहारण

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  59. ये परिस्थिति तो वाकई शर्मनाक है ,परन्तु आप सब की सामूहिक कार्यक्षमता नि:संदेह प्रशंसनीय है !!!

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  60. वाकई झंडा ऊँचा रहे हमारा, मगर इतने आतंरिक और पारस्परिक अविश्वास के बीच यह कब तक संभव रह पायेगा !!!

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