28.5.11

काश तुम्हें होता यह ज्ञात

मौन बहा शब्दों के पार,
हृदय समेटे यह उपकार ।
समय-शून्य हो जगत बसाया,
सपनों का विस्तार सजाया ।

चंचलता का झोंका, मुझको भूल गयी तुम,
पेंग बढ़ा कर समय डाल पर झूल गयी तुम,

सहसा जीवन में फिर से घिर आयी रात,
काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।1

सभी बिसारे जाते सार,
आकृति क्या पायेगा प्यार।
आँखों का आश्रय अकुलाया,
ढेरों खारा नीर बहाया।

तुमको किसने रोका, क्यों स्थूल हुयी तुम,
तेज हवायें ही थीं, क्यों प्रतिकूल हुयी तुम,

मन रोया है, तुमको जब घेरें संताप,
काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।2

है संवाद नहीं रुक पाता,
कह देने को उपजा जाता,
जाने कितनी सारी बातें,
शान्त बितायी अनगिन रातें,

संसाधन थे, उनमें डूबी, तृप्त रही तुम,
अत्म मुग्ध हो अपने में अनुरक्त रही तुम,

शब्द नहीं पर नित ही तुमसे होती बात,
काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।3

रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

कितना बदले रंग, किन्तु हो अभी वही तुम,
देखूँ कितनी बार, हृदय में वही रही तुम

पीड़ा बनकर बरस रही रिमझिम बरसात,
काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।4

85 comments:

  1. है संवाद नहीं रुक पाता,
    कह देने को उपजा जाता,
    जाने कितनी सारी बातें,
    शान्त बितायी अनगिन रातें

    सुंदर .....मन को उद्वेलित करते शब्द ...

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  2. मन को उद्वलित करती शानदार रचना

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  3. मन को उद्वेलित करती शानदार रचना

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  4. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आभार

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  5. मन की श्रृंगारिकता की मनमोही प्रस्तुति
    नायिका कौन है? प्रोषित पतिका तो वह हुयी न ?
    मुग्धा ही कहिये!

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  6. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

    --वाह!!! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...क्या बात है...दो बार पढ़ लिया है...अभी फिर आवेंगे.

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  7. sunder shavd rachana...


    चंचलता का झोंका, मुझको भूल गयी तुम,
    पेंग बढ़ा कर समय डाल पर झूल गयी तुम,

    पीड़ा बनकर बरस रही रिमझिम बरसात
    ,काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।

    harfanmoula kahoo to chalega na.....?
    Are ab to kah hee diya..........:)

    Lajawab rachana........

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  8. तुमको किसने रोका, क्यों स्थूल हुयी तुम,
    तेज हवायें ही थीं, क्यों प्रतिकूल हुयी तुम,

    "मादक थी मोहमयी थी मन बहलाने की क्रीडा ..
    अब हृदय हिला देती है वह मधुर प्रेम की पीड़ा .."
    आंसू की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं |
    बहुत घनीभूत पीड़ा से लिपटे हुए शब्द हैं
    मन उद्वेलित कर गयी आपकी रचना ...
    हृदय लेखनी से भावनाओं का समुन्दर बह रहा है ......!!
    बहुत अच्छा लिखा है आपने .

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  9. हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब,
    आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया...

    जय हिंद...

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  10. अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  11. शब्द नहीं पर नित ही तुमसे होती रहती बात,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात.

    अभिव्यक्ति का माध्यम... सुन्दर कविता.

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  12. कितना बदले रंग, किन्तु हो अभी वही तुम,
    देखूँ कितनी बार, हृदय में वही रही तुम, ----

    ----वाह!!!....यही तो...यही तो....

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  13. Anonymous28/5/11 09:20

    रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यं .. अक्षरशः चरितार्थ इस लेख में.. धन्यवाद हिंदी साहित्य के इस अनुकृति-वादी तमोयुग में स्वर्णिम अतीत का अनुकरण करने के लिए.. माँ सरस्वती की असीम कृपा है आप पर..

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  14. झनझना दिया... पूरी तरह...

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  15. लोग आत्मकथायें और डायरी क्यों लिखते हैं?
    .
    .
    .
    .
    .
    दूसरों की पोल खोलने के लिये...
    ;)

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  16. अरे वाह, आप कविता भी करते हैं।
    गहन भावों की सार्थक प्रस्‍तुति की है आपने। बधाई।

    ---------
    हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
    अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

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  17. कितना बदले रंग, किन्तु हो अभी वही तुम,
    देखूँ कितनी बार, हृदय में वही रही तुम,
    - बहुत बड़ी बात है कि समय ने बदला नहीं !

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  18. सरस और प्रेम भाव से भीगी कविता. ये पंक्तियाँ मन को एक स्थिति दे गईं-

    रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।

    वाह!

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  19. title in itself speaks a lot !!
    adorable piece of work.

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  20. अगर वो इतनी ही संवेदनशील है तो स्वाभाविक है कि उसे ज्ञात नहीं हुआ और यह अच्छा हुआ कि आपको हो गया,भले ही देर से सही !

    सुन्दर विरह-वर्णन !

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  21. अनुपम , अद्भुत , सुन्दर !

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  22. कितना बदले रंग, किन्तु हो अभी वही तुम,
    देखूँ कितनी बार, हृदय में वही रही तुम,

    जीवन में आशा और निराशा का दौर सदा चलता रहता है ...हम किसी के प्रति आसक्ति का भाव रखें या नहीं ..लेकिन जब यह भाव ह्रदय में घर कर लेता है तो फिर हम हर एक परिस्थिति में उसे संजोय रखना चाहते हैं ...आपका आभार

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  23. नायिका के मौन से संत्रस्त ! अंतर्द्वंद्व से पस्त .

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  24. काश उन्हें होता यह ज्ञात !

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  25. जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छायी --- . आपकी कविता पढ़कर मुझे ये याद आयी .

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  26. विरह वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  27. अरे वाह! बहुत ही काबिले तारीफ अलफ़ाज़ हैं...

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  28. सौम्य सुरमय उलहाना!!

    संसाधन थे, उनमें डूबी, तृप्त रही तुम,
    अत्म मुग्ध हो अपने में अनुरक्त रही तुम,

    शब्द नहीं पर नित ही तुमसे होती बात,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।3।

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  29. Anonymous28/5/11 12:32

    बहुत अच्छी कविता है| और आज पहली बार आपकी लिखी रचना में कोई मुश्किल शब्द नहीं था, जिसका अर्थ मुझे गूगल या हिंदी शब्दकोष में ढूंढना पड़ा हो | :डी
    .
    .
    .
    shilpa

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  30. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

    कितना बदले रंग, किन्तु हो अभी वही तुम,
    देखूँ कितनी बार, हृदय में वही रही तुम,

    पीड़ा बनकर बरस रही रिमझिम बरसात,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।4


    बहुत सुन्दर भावों को इस गीत में संजोया है ...भावमयी प्रस्तुति ..

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  31. बहुत भावपूर्ण एवं संवेदनशील रचना....लेखनी प्रशंसनीय ....

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  32. अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

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  33. गहरे भावो को लिए हुए सुंदर रचना हेतु आभार |

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  34. मधुरिम कविता, बहुत सुन्दर।

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  35. Anonymous28/5/11 15:26

    वाह ... बहुत खूब कहा है ।

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  36. संसाधन थे, उनमें डूबी, तृप्त रही तुम,
    अत्म मुग्ध हो अपने में अनुरक्त रही तुम,
    gahri abhivyakti

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  37. सभी बिसारे जाते सार,
    आकृति क्या पायेगा प्यार।
    आँखों का आश्रय अकुलाया,
    ढेरों खारा नीर बहाया।
    तुमको किसने रोका, क्यों स्थूल हुयी तुम,
    तेज हवायें ही थीं, क्यों प्रतिकूल हुयी तुम,
    मन रोया है, तुमको जब घेरें संताप,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।2।



    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  38. इस एक काश में कितना कुछ समाया है।

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  39. "है संवाद नहीं रुक पाता,
    कह देने को उपजा जाता,
    जाने कितनी सारी बातें,
    शान्त बितायी अनगिन रातें,"

    संवाद तो चलता ही रहता है
    भले ही अभिव्यक्ति मौन हो....

    मेरी पहली पोस्ट पर की गई टिपण्णी इसका कारण है.वैसे तो मुझे कमेन्ट में ही लिखना था किन्तु कुछ प्रॉब्लम आ रह हैपिछले कई दिनों से...समुचित रूप से न कमेंट्स आ रहे हैं न जारहे है...
    कोई भाई साहेब ने मेरे इससे पहले वाले post पर अपना कमेन्ट दिया है ये उसी के परिपेक्ष में लिखा है,यदि आप उचित समझे तो वो कमेन्ट खुद पढ़ के देखें...
    thanx...for your concern !

    ReplyDelete
  40. "है संवाद नहीं रुक पाता,
    कह देने को उपजा जाता,
    जाने कितनी सारी बातें,
    शान्त बितायी अनगिन रातें,"

    संवाद तो चलता ही रहता है
    भले ही अभिव्यक्ति मौन हो....

    मेरी पहली पोस्ट पर की गई टिपण्णी इसका कारण है.वैसे तो मुझे कमेन्ट में ही लिखना था किन्तु कुछ प्रॉब्लम आ रह हैपिछले कई दिनों से...समुचित रूप से न कमेंट्स आ रहे हैं न जारहे है...
    कोई भाई साहेब ने मेरे इससे पहले वाले post पर अपना कमेन्ट दिया है ये उसी के परिपेक्ष में लिखा है,यदि आप उचित समझे तो वो कमेन्ट खुद पढ़ के देखें...
    thanx...for your concern !

    ReplyDelete
  41. बहुत ही सुन्दर.

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  42. ग्रीष्म की थपेडों के मध्य शीतल बयार सा गीत!!

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  43. अच्छा ही है ज्ञात नहीं है उसे यातना मेरी
    मेरी तरह तड़पता वह भी अघटनीय घट जाता
    जो उसे ज्ञात हो जाता!!!

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  44. सर सुन्दर मन की ब्यथा ! काश वह समझ पाती !फे

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  45. anterman ko jakjhorti rachna

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  46. अति सुन्दर अभिव्यक्ति !! धन्यवाद

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  47. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

    बहुत खूबसूरत रचना

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  48. बहुत सुन्दर भावों को इस गीत में संजोया है| शानदार रचना|

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  49. आकृति क्या पायेगा प्यार !!
    चार बार पढ़ चुके हैं, एक टिप्पणी तो आपका अधिकार है जी.
    यह उन कविताओं में से है जिसे हम सहेजना चाहेंगे. ताकि समय निकाल कर बारम्बार पढ़ सकें.

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  50. bina tippani
    तरुणाई में लुक- छिप मिलना,
    "पंकज", ह्रदय-सरोवर खिलना.
    गुपचुप पढ़ी दृगों की भाषा
    छुपछुप गढ़ी, प्रणय-परिभाषा
    जीत गए खा - खाकर मात
    धन्य ! तुम्हें है सबकुछ ज्ञात
    सफल कविता वह जो पढ़ने वालों को कवि bana de

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  51. क्या बात है आज कुछ खास है. अचानक ये मन को छूने और उलाहना देने वाली प्रस्तुति. कुछ खास सी लग रही है
    लाजवाब प्रस्तुति

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  52. बार बार आते हैं...पढ़कर् अनकहे लौट जाते हैं.. मन भाषा गढ़ना भी चाहे तो नही कुछ कह पाता कभी...

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  53. हाय! यह कैसा दुष्यंत है :)

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  54. अरे आप कविता भी करते हैं?

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  55. बहुत ही बढ़िया...
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion

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  56. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..अद्भुत रचना. बधाई.

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  57. शब्द नहीं पर नित ही तुमसे होती बात,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।3।

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

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  58. भाव प्रवण, दिल को छूने वाली कविता । वियोग ही सबसे सुंदर भावों को जन्म देता है ।

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  59. मित्र, इस क्षेत्र में भी झंडे गाढ रहे हो| जय हो|

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  60. गहन भावों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  61. चंचलता का झोंका,
    मुझको भूल गयी तुम,
    पेंग बढ़ा कर समय डाल पर झूल गयी तुम,
    ---------
    कितने मोहक उपमान हैं...आप कविता भी इतनी सुन्दर करते हैं! आपकी ये अनभिज्ञ नायिका तो अद्भुत ही है.

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  62. श्रेष्ठ हिंदी के शब्दों में श्रेष्ठ अभिव्यक्ति .

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  63. प्रवीण भाई..
    आज शायद पहली बार आप के ब्लॉग पर आया और दिल दे बैठा..क्या सुन्दर ह्रदय के अतृप्त विचारों को भावना की लड़ियों में शब्दों के फूलो से पिरोया है आप ने.........
    मैं नतमस्तक हूँ बंधू...

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  64. विरही मन सहता नित घात
    ...सुंदर गीत।

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  65. पढते-पढते अनायास ही सुमित्रानन्‍दन पन्‍त की 'कोमलकान्‍त पदावली' याद आने लगती है।

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  66. बात-बात में आपने कह दी
    अपनी, मेरी, सबकी बात.
    काश! तुम्हे होता यह ज्ञात.
    बरसात की रात की तरह मधुमय कविता.

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  67. काश तुम्हें होता यह ज्ञात - सुंदर!

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  68. है संवाद नहीं रुक पाता,
    कह देने को उपजा जाता,
    जाने कितनी सारी बातें,
    शान्त बितायी अनगिन रातें,

    संसाधन थे, उनमें डूबी, तृप्त रही तुम,
    अत्म मुग्ध हो अपने में अनुरक्त रही तुम,....

    Excellent creation Sir.

    .

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  69. प्रवीण जी ,फ़िर कहूँगी कवितायें आपको और अधिक रचनी चाहिये ....बेहद प्रभावी .....जब शब्द ही भावना बन जाये तब भाव तो इतने प्रभावी होंगे ही ..........आभार !

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  70. पीड़ा बनकर बरस रही रिमझिम बरसात,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात ...

    प्रेम ... मधुर प्रेम और भावों की निर्मल अभियक्ति है ...

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  71. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  72. तुमको किसने रोका, क्यों स्थूल हुयी तुम,
    तेज हवायें ही थीं, क्यों प्रतिकूल हुयी तुम...
    waah saab...dil ko cheer kar nikalti hue panktiyan....bahut hi sundar ,,,,
    avinash001.blogspot.com

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  73. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

    कितना बदले रंग, किन्तु हो अभी वही तुम,
    देखूँ कितनी बार, हृदय में वही रही तुम,

    पीड़ा बनकर बरस रही रिमझिम बरसात,
    काश तुम्हें होता यह ज्ञात ।4।

    अद्भुत रचना! :-)

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  74. निस्संदेह उच्च कोटि की रचना.

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  75. तुमको किसने रोका, क्यों स्थूल हुयी तुम,
    तेज हवायें ही थीं, क्यों प्रतिकूल हुयी तुम,
    सशक्त रचना ..

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  76. सुन्दर रचना, शब्द-सम्पदा तो आपकी समृद्ध है ही।

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  77. ना अधिक ऊँचाईयों में उड़ सकेगा, ना धरा के बन्धनों में बँध रहेगा, मिले कोई भी दिशा, वह बढ़ चलेगा. संग मेरे, क्षितिज तक, मेरा परिश्रम ।

    chal chala chal..
    http://shayaridays.blogspot.com

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  78. रिक्त कक्ष क्यों, मन लड़ता है,
    हृदय धैर्य-भाषा गढ़ता है।
    अभिलाषा, सुधि आ जायेगी,
    तुम्हें प्रतीक्षा पा जायेगी।

    है संवाद नहीं रुक पाता,
    कह देने को उपजा जाता,
    जाने कितनी सारी बातें,
    शान्त बितायी अनगिन रातें
    ati sundar ,prabhavshali rachna

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  79. प्रभावशाली गीत!

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