20.4.11

पर साथ छोड़ क्यों चली गयी

विवाह-पूर्व के प्रेमोद्गारों में एक अनकही सी कड़ी सेंसरशिप लगी रहती है। आप कितना भी उन्हें समझा लें कि यह रचना विशुद्ध कल्पनाशीलता का सुन्दरतम निष्कर्ष है पर आपका आश्वासन धरा का धरा रहता है और उस रचना के हर शब्दों में वह आकार ढूढ़ा जाता है जिसको हृदय में रखकर यह कविता लिखी गयी होगी।

इस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है। जिन रचनाओं को उत्सुक प्रेमियों का हृदयगीत बन अनुनादित होना था, वे अपने अस्तित्व के घेरों और अंधेरों में विवादित हो पड़ी रहती हैं।

आज निर्भयात्मक उच्छ्वास ले उसे आपके सामने रख दे रहा हूँ। आपसे भी यही अनुरोध है कि प्रेम की सुन्दर अल्पना पर अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा कर उसे कोई और रूप न दें, बस पूर्ण साहित्यिकता से बांचें।


मैने अपने जीवन के, सुन्दरतम स्वप्नों के रंग को,
तेरे कोरे कागज जैसे, आमन्त्रण में भरने को,
सरसायी उन आशाओं में, मैं उत्सुक था, उत्साहित था,
तू आयी भी, इठलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।१।।

क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,
ना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,
तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।२।।

है नहीं वाक्‌ प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
है नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन,
आँखों में था लिये हुये, आन्दोलित मन के आग्रह को,
आँखों से आँख मिलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।३।।

95 comments:

  1. इस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है।

    हा हा!! कितना सही आंकलन है... :)


    वैसे हम तो कल्पना के घोड़े नहीं दौड़ा रहे मगर जरा घर में संभलियेगा, मित्रवत सलाह से ज्यादा और क्या दूँ इस वक्त!! :)


    रचना वाकई बहुत उम्दा है...गा भी देते जरा...आवाज के तो माशाल्लाह आप धनी हैं ही!!

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  2. कैशोर्य मनोभावों का कोमल चित्रण!

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  3. क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,ना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।

    जीवन में बहुत सरे प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं .....
    स्मृति के सरोवर में खिला सुंदर सरोज ......
    काव्य प्रेमियों का मन आल्हादित करता हुआ ......!!

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  4. मनोभावों का सुन्दर चित्रण

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  5. गौर-तलब है समीर जी की टिप्पणी... विशेषत: तीसरा वाक्य..

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  6. सुंदर भावपूर्ण रचना
    आशा

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  7. बहुत शानदार पंक्तियाँ लगीं। समीर जी की फ़रमाईश को हमारा भी समर्थन है, आप तो गाते भी अच्छा हैं, आपकी आवाज में सुनना और भी अच्छा लगता।
    आपके अनुरोध का मान रखते हुये घोड़े अस्तबल में ही बांधे रखे हैं, वैसे ऐसी कल्पना निराकार भी हो सकती हैं? :))

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  8. प्रेम पाठ के प्रशिक्षुओं के काम आ सकती है.

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  9. शब्द आपके अभियक्ति बहुतो की .

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  10. इस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है।...
    सहमत हूँ ...रचनाक्रम को बाधित करने जैसी ही होती है यह प्रतिक्रिया ..
    अल्पना पर कल्पना के घोड़े...बढ़िया है :)

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  11. गीत बेहद खूबसूरत है ...

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  12. बहुत ही खूबसूरती के साथ लिखा है.... सब खैरियत तो है? ;-)

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  13. प्रवीण भाई आप भी मज़ाक अच्छा कर लेते हैं, शादीशुदा मर्दों की कहां होती है इतनी अच्छी किस्मत...

    शादी से पहले...मैंने प्यार किया...
    शादी के बाद...मैंने प्यार क्यों किया...

    बाकी गुरुदेव समीर जी ने सब समझा ही दिया है....

    जय हिंद...

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  14. मन के भावों को शब्दों में उतार दिया है आपने...एक शुभ चिन्तक तो यही कहेगा की मन के भावों को किसी भी परिस्थिति में असंतुलित ना होने दें हालाँकि ऐसा सलाह देना बहुत आसान है और करना बहुत मुश्किल ..इसलिए ये साहित्यिक सेफ्टी भाल्ब का प्रयोग जरूर करें...इससे साहित्य और इंसानी संवेदना का असली सयुक्त स्वर तो निकलता ही है साथ ही मन के भाव को असंतुलित होने से भी रोका जाता है....सच्चे मित्रों से थोडा फोन पर बात भी करें इससे भी मन हल्का होगा...ये जीवन है ..इस जीवन का यही है...यही है...यही है रंग रूप ....

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  15. क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,
    ना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
    थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,
    तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
    bahut khoob likha

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  16. Your poem is actually a very good literary piece. Very nice. Thanks for sharing.
    .
    .
    .
    Shilpa

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  17. आपकी प्रेमाभिभूत इस अल्पना पर हम अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा भी लेते पर वो तैयार ही नहीं हो रहे दौड़ने के लिए|

    प्रवीण भाई, आपका गद्य तो पढ़ते ही रहते हैं यदा कदा| आपने पद्य भी सुंदर प्रस्तुत किया है|

    बस सही है ना ये साहित्यिक टिप्पणी ?
    हाहाहाहा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

    बाकी तो समीर भाई ने आपको सलाह दे ही दी है भैया .....................

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  18. वाकई बड़ी बुरी स्थिति है मेरी कुछ बेहतरीन रचनाये अँधेरे में पड़ी हैं ....पता नहीं कोई क्या मतलब निकालेगा :-(
    बढ़िया सुन्दर रचना के लिए आभार !
    अब आपको देख हिम्मत करने की कोशिश करूंगा !शुभकामनायें ....

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  19. शीर्षक अब देखा ....गज़ब के साहसी हो !
    आज घर में सावधान रहना :-)

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  20. यह तो बहुत अच्छा किया आपने प्रवीण जी ,कि साहित्य की हानि नहीं होने दी .पर अब तक चुप रह कर जितनी हानि कर चुके हैं उसे ब्याज सहित पूरी भी तो आपको करनी चाहिये -प्रतीक्षा रहेगी !

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  21. sir!! main to apne blog ko shrimati se bacha kar rakhta hoon isliye...:)

    aapki rachna ho aur wo umda kahlane layak na ho...ho nahi sakta..!

    har baar ki tarah, ek shashakt rachna..

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  22. प्रेममयी कविता के लिए ऐसी भूमिका ....दोनों ही प्रभावित करते हैं.

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  23. उम्दा रचना ओर आपकी निर्भीकता के लिए बधाई.

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  24. है नहीं वाक्‌ प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
    है नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन,
    आँखों में था लिये हुये, आन्दोलित मन के आग्रह को,
    आँखों से आँख मिलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
    मनोभावों को सशक्त अभिव्यक्ति दी है। सुन्दर रचना के लिये बधाई।

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  25. मनोभावों का सुन्दर चित्र॥

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  26. इसीलिये दूसरे की कल्पनाशक्ति का भी सम्मान किया जाता है !:)

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  27. हाय! क्या साहस है!
    [हमने तो कायरता में जीवन काट लिया! :) ]

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  28. आप की बात से सहमत हूं ....कुछ भी लिखिये वो व्यक्तिगत आक्षेप सा लोग करने लगते हैं ,जब कि वो दूसरे का भोगा और आपका समझा हुआ पल भी हो सकता है ...
    बेहद स्नेहिल पंक्तियां लगी आपकी .....आभार !

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  29. अल्पना के लिए कपोल कल्पित भावनाओ के घोड़े सरपट दौड़े है . निर्भयता ने सृजन को नया आयाम दिया है .

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  30. एक अलग ही भाव-संस्र में ले जाती सुंदर कविता...

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  31. कविता पढकर चित्रण ना करे ये तो हो ही नहीं सकता | क्या बिना चित्रण के कोइ कविता की रचना हो सकती है ?

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  32. बिलकुल राष्ट्र कवि जैसी शैली. सुपरहिट लेखों की तरह आपकी कवितायें भी भावप्रवण, सुन्दर शब्द संयोजन . फिर से कविता लेखन पर विचार करें .

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  33. इस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है।.
    सही कहा है :)
    वैसे सबकी सलाह में हमारी भी शामिल है ..गा भी दिया होता सुन्दर गीत.

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  34. sir यह आकार ,साकार से परे ...बिलकुल सही प्रस्तुति !

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  35. प्रवीण जी, कल्पना के घोड़ों पर किसका बस है.आपने तो मना किया,पर बाज नहीं आ रहें हैं
    अब बता ही दीजिये न 'कौन थी वह,जिससे आपने
    आँखों से आँख मिलायीं थी'.

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  36. वाकई, प्रेम की सुन्दर अल्पना...

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  37. Sundar,mohak rachana!Kiske man ke bheetar kya chalta hai,kaun jaan pata hai?

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  38. वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ..बेहतरीन ।

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  39. ......प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  40. बहुत सुन्दर गीत है।
    और प्रस्तावना के अनुसार ही बिना घोड़े दौडाए पूरी साहित्यिकता से बांचा गया है।
    वैसे सचमुच, आप गा भी देते तो और अच्छा था। :)
    शुभकामनाएँ

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  41. करिए अब इस रचना के साथ भी न्याय....
    इशारा समझ रहे हैं न आप?.....

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  42. क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,
    ना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
    थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,
    तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
    --
    मनोभावों का बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने!

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  43. है नहीं वाक्‌ प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
    है नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन,
    आँखों में था लिये हुये, आन्दोलित मन के आग्रह को,
    आँखों से आँख मिलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी

    मनोभावों का कोमल चित्रण!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  44. हमे तो समझा लोगे पर घर में....:)

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  45. है नहीं वाक्‌ प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
    है नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन।

    ‘उस समय‘ आपकी वाक् प्रतिभा भले ही मौन रही हो किंतु आज वह मुखर है, शब्दों का चतुर चयन भी कर रही है और हृद्-स्पंदन को अनावृत्त भी कर रही है।

    उत्कृष्ट काव्य रचना के लिए बधाई।

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  46. प्रमाणपत्र -जिसके लिए भी आवश्यक हो !
    मान गया और मानता हूँ कि यह कविता कवि की नितांत निस्पृह ,आइसोलेटेड(सम्बन्ध पृथक ) कल्पना प्रसून सृजन कर्म की फलश्रुति है -और यह विवाहपूर्व और उपरान्त की सापेक्षिकताओं से भी मुक्त है!

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  47. definitely 'she' will come back after feeling your feelings expressed thru "nice poem".

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  48. अरे बाबा आप तो खुद ही अपने पर शक करवा रहे हे इस अल्पना ओर कल्पना के उदारण दे कर:) समीर जी की बात पर ध्यान दे,

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  49. निदा फाजली का एक शेर या आ गया
    दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
    मिल जाय तो मिटटी है खो जाए तो सोना है.

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  50. बिलकुल दुरुस्त फार्मा रहे हैं जनाब ! वही समय होता है जब कल्पनाशीलता चरम पर होती है,जब हकीकत आ जाती है,तब वह कल्पना चर लेती है !

    किशोरावस्था का क्या कहना....सारी शक्तियां अपने उफान पर होती हैं,कविता को यही ताकत अद्भुत साहित्य रचने की प्रेरणा देती है !

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  51. छा गए गुरू-आपके पोस्ट पर बराबर ही आता रहा हूं लेकिन इस बार आपके स्वप्निल हृदय का उच्छवास मन को आंदोलित कर गया। इस संबंध में, मैं अपनी कविता "हो जाते हैं क्यूं आद्र् नयन" का एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूं,शायद यह भी आपके हृदय में आपके उदगार के साथ थोड़ी सी जगह पा जाए।
    "वे दिन भी बड़े ही स्नेहिल थे,
    जब प्रेम सरोवर स्वत:उफनाता था।
    उसके चिर फेनिल उच्छवासों से,
    स्वप्निल मन भी जरा सकुचाता था।"
    धन्यवाद।

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  52. ये तो कोटि-कोटि ह्दयों के उद्गार हैं। इस पर कॉपी-राइट लागू मत कर दीजिएगा।

    आपकी इन पंक्तियों ने क्‍या किया यह, श्रीसूर्यभानु गुप्‍त के एक शेर से अनुमान लगाइएगा -

    यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले।
    सूखे हुए दरख्‍त का चेहरा हरा हुआ।

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  53. क्या कहूं घोड़े तो बंधे हुए हैं :)

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  54. है नहीं वाक्‌ प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
    है नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन

    बहुत उम्दा रचना ...कोमल भावों को संजोये हुए

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  55. क्या बात कही है...:) :)

    अब कविता के लिए -- बस दो स्माईली --> :-) :-)

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  56. बहुत सुंदर ढंग से आपने बताया

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  57. क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है
    ना जाने किस आशंका में,आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
    थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा,हर्षाये नेत्र-निवेदन से
    तू समझी भी,मुस्कायी भी,पर साथ छोड़ क्यों चली गयी

    बहुत सुंदर भाव और शब्द संयोजन भी...
    हकीकत तो हकीकत रहेगी और वह बयां करनी ही चाहिए, यह एक लेखक का कर्त्तव्य भी है पर जीने के लिए कुछ तो राहत मिलती है कल्पनालोक के जीवन में...इसलिए जो उसमें जीना चाहें तो उन्हें थोड़ी-बहुत छूट मिलनी चाहिए प्रवीण जी...ताकि ऊर्जा मिल सके...वैसे मैं वास्तविकता को उजागर करने की पक्षधर हूं...बशर्ते किसी को बहुत तकलीफ न दे...क्यों सत्य भी बहुत दुखदाई होता है...

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  58. सुन्दर गीत...पर ये संशय क्यूँ....हम्म... कुछ दाल में काला है तभी संदेह का डर होता है. :)
    Just joking......अगर ऐसी हिचकिचाहट बनी रही तब तो हो गया सृजन

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  59. इस उम्र में ऐसी कल्‍पनाएं जन्‍म लेती ही हैं, चिन्‍ता ना करे। आज इन बातों में डर नहीं रह गया है। बिंदास लिखें, और भी रचना हो तो पोस्‍ट कर दें।

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  60. बहुत सुन्दर गीत |

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  61. पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा | बहुत सुन्दर तरीके से अपने अपने मनोभाव को शब्दों में उतरा है....

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  62. behtreen giti rachna.....maine ab tak ke blog-pathan me is chhand ka aisa shreshth kavyankan nahi dekha..... shatsh: badhai swikaren... wahwa...

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  63. बहुत सुन्दर भाव ... आभार

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  64. जिन रचनाओं को उत्सुक प्रेमियों का हृदयगीत बन अनुनादित होना था, वे अपने अस्तित्व के घेरों और अंधेरों में विवादित हो पड़ी रहती हैं।
    बिलकुल... दुखद है पर होता यही है.....

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  65. acchhe udgaar hain...diary ke chand panno jaise...

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  66. Love is beyond words !

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  67. पर साथ छोड़ क्यों चली गयी...........मन के भावों को बड़ी खूबसूरती के साथ आपने शब्दों में समेटा है . सुंदर प्रस्तुति.

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  68. sundar abhivyakti...
    aapne n jane kitanon ke man ki baat kah di hai apne shabdon mein.....!!

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  69. sundar abhivyakti...
    aapne n jane kitanon ke man ki baat kah di hai apne shabdon mein.....!!

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  70. जीवन में बहुत सरे प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं .....
    स्मृति के सरोवर में खिला सुंदर सरोज ......
    काव्य प्रेमियों का मन आल्हादित करता हुआ ......!!

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  71. iska ek audio bhi post kijiye janaaab

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  72. मनोभावों का सुन्दर चित्रण| धन्यवाद|

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  73. Bahut hi lajawaab rachna hai ... maise pahle bhi aapko kaha tha ... aap is vidha ke bahut kamaal ka likh jaaate ahin ... jaldi jaldi kavita likha karen ...

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  74. @ Udan Tashtari
    गाने का अर्थ होगा, उस शपथपत्र पर हस्ताक्षर करना जिस पर लिखा होगा कि आ बैल मुझे मार।

    @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    बहुधा मन में यही विचार आता है, जब कोई छोड़कर जाता है।

    @ anupama's sukrity !
    प्रश्न तो सदा ही वही रहता है, उत्तर और संकेतों में तारतम्य नहीं बैठता बस।

    @ Ratan Singh Shekhawat
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    हर हरकत में संशकित हैं अब तो।

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  75. @ आशा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ संजय @ मो सम कौन ?
    प्रयास तो किया पर गाने के पहले ही गला रूँध जाता है।

    @ Rahul Singh
    नव-त्यक्तों का संगीत-उत्सव।

    @ dhiru singh {धीरू सिंह}
    हर मन कभी न कभी तो यह गाता है।

    @ वाणी गीत
    यह रचना अपना निर्वाण ढूढ़ रही थी अतः निर्भय होकर लिख दिया।

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  76. @ Shah Nawaz
    लिखने के पहले तक तो थी खैरियत, कल किसने देखा है।

    @ Apanatva
    सब ठीक है अब तक।

    @ खुशदीप सहगल
    प्रेम यदि विवाह में न परणित हो तो, उसकी यादें मोहक बनी रहती हैं।

    @ honesty project democracy
    साहित्य सेफ्टी वाल्व सदा ही रहा है, मन से वहीं पर जाकर बतियाते हैं।

    @ रश्मि प्रभा...
    मन जब नहीं समझता है तो यही बह निकलता है।

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  77. @ shilpa
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Navin C. Chaturvedi
    कल्पना में उतरने से कभी कभी साहित्य के भटकने की सम्भावना बनी रहती है।

    @ सतीश सक्सेना
    अँधेरे में पड़ी रचना को बाहर निकालने का साहस तो कर बैठे हैं, पता नहीं कब पहला मानसिक प्रहार होगा हमारे ऊपर।

    @ प्रतिभा सक्सेना
    ब्याज गिनने बैठेंगे और पुरानी बातों पर लिखेंगे तो नव महाभारत छिड़ जायेगा।

    @ Mukesh Kumar Sinha
    श्रीमतीजी ने कविता पढ़ तो ली है, प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है।

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  78. @ मीनाक्षी
    इस कविता के लिये समुचित प्रस्तावना बनाना आवश्यक था।

    @ रचना दीक्षित
    शुभकामनाओं की अधिक आवश्यकता है।

    @ निर्मला कपिला
    कभी कभी वेदना की धूप के बाद साहित्य बरसता है।

    @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    बहुत धन्यवाद कल्पना को बचा कर रखने का।

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  79. @ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
    इस बार बच कर निकले तो आगे भी प्रयास करते रहेंगे।

    @ nivedita
    जाके पैर न पड़ी बिवाई, सो का जाने पीर पराई। समझिये कि मन व्यक्त हो गया।

    @ ashish
    निर्भयता ने इतिहास तो लिख दिया, भूगोल का क्या होगा, कुछ नहीं ज्ञात।

    @ Dr (Miss) Sharad Singh
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ नरेश सिह राठौड़
    आप तो मेरी श्रीमतीजी के लिये तर्क एकत्र कर रहे हैं।

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  80. @ मेरे भाव
    बहुत धन्यवाद आपका, कविता लेखन निश्चय ही प्राथमिकताओं में आ गया है, आपके उत्साहवर्धन के बाद।

    @ shikha varshney
    हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गायेगा। इस गीत में प्यार ही नहीं हो पाया।

    @ G.N.SHAW
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Rakesh Kumar
    इश्क छिपाये नहीं छिपता है।

    @ सुशील बाकलीवाल
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  81. @ kshama
    सच है, यदि आँखों का कहा सच हो जाता तो कविता क्यों लिखनी पड़ती।

    @ सदा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ संजय भास्कर
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Avinash Chandra
    गाने का प्रयास करता हूँ तो यादों में उतरा जाता हूँ।

    @ Archana
    आप धुन सुझा दीजिये तो गा भी देंगे।

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  82. @ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Vivek Jain
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ cmpershad
    घर में डर,
    डर बाहर।

    @ mahendra verma
    अब प्रेम के पड़ाव से बहुत आगे भी तो आ गये हैं।

    @ Arvind Mishra
    आपका प्रणामपत्र कुछ और कह रहा है, कुछ और इंगित कर रहा है।

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  83. @ अमित श्रीवास्तव
    एक संभालना कठिन है, कैसे भविष्य कटेगा तब।

    @ राज भाटिय़ा
    गाने का साहस हो ही नहीं रहा है।

    @ संतोष पाण्डेय
    सोने के कारण खोया हुआ सोना है।

    @ संतोष त्रिवेदी
    सारी शक्तियाँ उफान पर होती हैं, सबकी ही। धुंध तो अब जाकर हटी है।

    @ प्रेम सरोवर
    आपकी कविता में मैं अपने स्वरों के अंश पा गया, बहुत आभार आपका।

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  84. @ विष्णु बैरागी
    कोई कॉपीराइट नहीं है, कितनी भी अच्छी हो जाये दुनिया, ये कविता नित बनती रहेगी।

    @ Abhishek Ojha
    वही घोड़े अब घर आ गये हैं, हमें दौड़ाये हुये हैं।

    @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    सबसे कठिन कार्य होता है, उस समय अपने भाव कह देना।

    @ abhi
    महाराज, अभी चक्कर में पड़े नहीं हैं आप, जब पड़ेंगे तो इस कविता में 4 छंद और जोड़ देंगे।

    @ babanpandey
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  85. @ वीना
    मन के भाव बहुधा यही रहते हैं, शब्द दे देने से बस उनकी पीड़ा कम हो जाती है।

    @ rashmi ravija
    अब तो निर्भय हो कह दिया, संशय में साहित्य का विनाश न होने देंगे।

    @ ajit gupta
    अब धीरे धीरे साहस बढ़ाते हैं।

    @ शोभना चौरे
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ S.N.Tiwari
    बहुत धन्यवाद आपका, उत्साहवर्धन के लिये।

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  86. @ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    अगर कुटे तो पोस्ट लिख देंगे।

    @ योगेन्द्र मौदगिल
    आपका आशीर्वाद मिल गया, साहस दिखाना सफल हो गया।

    @ महेन्द्र मिश्र
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ डॉ॰ मोनिका शर्मा
    अब तो बाँध को खोल दिया है, बाढ़ तो आना ही है।

    @ विजय रंजन
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  87. @ ZEAL
    भावों की गूँज शब्दों से कहीं अधिक होती है।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ sm
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ उपेन्द्र ' उपेन '
    बहुत धन्यवाद आपका उत्साह बढ़ाने के लिये।।

    @ ***Punam***
    मन की हार इतना डुबाने वाली भी नहीं है कि उसे साहित्य में व्यक्त भी न किया जा सके।

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  88. @ सञ्जय झा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ honey sharma
    अनुत्तरित प्रश्न रह रह याद आते हैं। कविता के रूप में संग्रहित भी हो जाते हैं। गीत गाने का प्रयास करूँगा।

    @ Patali-The-Village
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ दिगम्बर नासवा
    आपकी सलाह सर माथे, कविता पर समुचित ध्यान दिया जायेगा अब।

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  89. भावों ki सुंदर प्रस्तुति............

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  90. @ रजनी मल्होत्रा नैय्यर
    बहुत धन्यवाद आपका।

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