13.4.11

सफ़र का सफ़र

रेलवे का समाज से सीधा सम्बन्ध है, समाज का कला से, पर जब भारतीय रेल और कला का संगम होता है तो कलाकारों को उन दृश्यों के छोर मिलने प्रारम्भ हो जाते हैं जिनमें एक पूरा का पूरा संसार बसा होता है, प्रतीक्षा का, सहयोग का, निश्चिन्त बिताये समय का, प्लेटफार्मों में घटते विस्तारों का, व्यापार बनते आकारों का और न जाने कितने विचारों का।

जब कभी भी प्लेटफार्म को देखता हूँ, यात्री बनकर नहीं, अधिकारी बनकर नहीं, तटस्थ हो देखता हूँ तो न जाने कितनी पर्तें खुलती जाती हैं। लोगों का भागते हुये आना, एक हाथ में बच्चे, दूसरे में सामान, आँखें रास्ता ढूढ़तीं, पैर स्वतः बढ़ते, कानों में पड़ते निर्देशों और सूचनाओं के सतत स्वर, अपने कोच को पहचान कर सीट में बैठ जाने की निश्चिन्तता, खिड़की से बाहर झांकती बाहर की दुनिया की सुधि और न जाने कितना कुछ। सब देखता हूँ, प्लेटफार्म के कोने में पड़ी एकांत बेंच में बैठकर, गतिविधियों के सागर में अलग थलग पड़ गयी एकांत बेंच में बैठकर। सब एक फिल्म सा, न जाने कितनी फिल्मों से अधिक रोचकता लिये, हर दृश्य नया, प्राचीन से अर्वाचीन तक, संस्कृति से उपसंस्कृति तक, फैशन के रंगों में पुते परिदृश्य, पार्श्व में बजता इंजन की गुनगुनाहट का संगीत, पटरियों की पहियों से दबी दबी घरघराहट, बहु प्रतीक्षित ट्रेन का आगमन, उतरने और चढ़ने वालों में आगे निकलने की होड़, फिर सहसा मध्यम सी शान्ति।

यह चित्रावलि चित्रकारों को न केवल उत्साहित करती है वरन उनकी अभिव्यक्ति का विषय भी बनती है। इन्हीं सुसुप्त भावनाओं को उभारने का प्रयास किया गया रेलवे के एक प्लेटफार्म में, बंगलोर में, 28 मार्च, सुबह से सायं तक। प्रारम्भिक कार्यक्रम के बाद 15 प्रतिष्ठित चित्रकार अपने कैनवास और ब्रश के साथ नितान्त अकेले थे अपनी कल्पना के धरातल पर, दिन भर यात्रियों और कलाप्रेमियों से घिरे वातावरण में चित्र और चित्रकार के बीच चलता हुआ सतत संवाद, ब्रश और कैनवास का संस्पर्श रंगों के माध्यम से, अन्ततः निष्कर्ष आश्चर्यचकित कर देने वाले थे।

मुझे भी चित्रकला का विशेष ज्ञान नहीं है पर शब्दों की चित्रकारी करते करते अब चित्रकला के लिये शब्द मिलने लगे हैं। मेरी चित्रकला की समझ चार मौलिक रंगों और दैनिक जीवन की आकृतियों के परे नहीं जा पाती है। बहुधा हम चित्रों को बना बनाया देखते हैं और उसमें रंगों और आकृतियों के अर्थ ढूढ़ते का प्रयास करते हैं, पर उन रंगों और आकृतियों का धीरे धीरे कैनवास पर उभरते हुये देखना एक अनुभव था मेरे लिये। चित्रकारों की ध्यानस्थ अवस्था में बीता समय कल्पना के समुन्दर में लगायी डुबकी के समान था जिसमें खोजे गये रत्न कैनवास में उतरने को प्रतीक्षित थे। वाक्यों में शब्द सजाने के उपक्रम से अधिक कठिन है कैनवास पर रंगों की रेखायें खींचना।

कला के प्रशंसक चाहते हैं कि चित्रकार और उत्कृष्ट और संवादमय चित्र बनायें, चित्रकार भी चाहते हैं उन आकांक्षाओं को पूरा करना जिनका निरूपण उनकी सृजनात्मकता के लिये एक ललकार है। इन दो आशाओं के बीच धन का समुचित सेतु न हो पाने के कारण चित्रकला का उतना अधिक विस्तार नहीं हो पा रहा है जितना अपेक्षित है। धनाड्यजन ख्यातिप्राप्त चित्रकारों के बने बनाये चित्रों को अपने ड्राइंगरूम में सजा कर अपने कलाप्रेम को व्यक्त कर देते हैं पर संवेदनशील कलाविज्ञ कला को संवर्धित करने का उपाय ढूढ़ते हैं।

यह कलाशिविर उस प्रक्रिया को समझने का सूत्र हो सकता है जिसके द्वारा कला को संवर्धित किया जाना चाहिये। एक कलासंस्था स्थापित और उदीयमान चित्रकारों को प्रोत्साहित करती है और उन्हे ऐसे आयोजनों में आमन्त्रित करती है। चित्रकारों और आयोजकों का पारिश्रमिक एक कम्पनी वहन करती है जिसे रेलवे से सम्बन्धित अच्छे चित्रों की आवश्यकता है। रेलवे इन दोनों संस्थाओं को कलाशिविर के माध्यम से साथ लाती है और माध्यम रहता है, सफर। सफर का प्रासंगिक अर्थ है, Support and appreciation for art and Railways(SAFAR)

इन चित्रों के साथ ही अन्य उदीयमान चित्रकारों ने भित्ति-चित्रों के माध्यम से रेलवे प्लेटफार्म पर अपनी कला के स्थायी हस्ताक्षर अंकित किये। एक बड़ी सी दीवाल पर कला महाविद्यालय के छात्रों ने दिन रात कार्य कर रेलवे प्लेटफार्म को एक और मनोरम दृश्य दिया। इस पूरी कलात्मक क्रियाशीलता में बंगलोर के मंडल प्रबन्धक श्री एस मणि ने एक महती भूमिका निभायी। कला को निसन्देह ऐसे ही संवेदनशील प्रशंसकों की आवश्यकता है।

आप चित्रों का आनन्द उठायें, चित्रों व चित्रकारों के नाम सहित। 


76 comments:

  1. चित्र पसन्द आये। गान्धी जी तो छा गये। सुन्दर कला से परिचय कराने का आभार!

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  2. बहुत ही सार्थक व सराहनीय प्रयास ,श्री एस मणि जैसे अधिकारीयों से ही सामाजिक सरोकार जिन्दा है..लेकिन मुझे पूरा विश्वास है की आप जैसे अधिकारी ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाया होगा.....पाण्डेय साहब मैं चाहता हूँ की एक बार आपका बेंगलोर मंडल के द्वारा "रेल और सामाजिक सरोकार" के विषय पर देश भर के ब्लोगरों को बुलाकर एक ब्लोगर संगोष्ठी का भी आयोजन करे ...निश्चय ही सरकारी संस्थाओं का समाज के विभिन्न क्षेत्रों से वार्तालाप व परिचर्चा इस देश व समाज के संतुलित विकाश को एक नयी दिशा व पहचान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा....

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  3. उत्कृष्ट कलाकृतियाँ -कथ्य, रंग संयोजन -एक यादगार आयोजन -चित्र वीथिका के लिए आभार !

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  4. ला पारखी नहीं हूँ मगर चित्र बहुत अच्छे लगे ! शुभकामनायें रेलवे को !

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  5. रेलवे और कला का यह संगम अनोखा और अनूठा है ..
    सुन्दर चित्र !

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  6. रेलवे से जुडी आपकी निष्ठां देख कर मन खुश हो गया ...!!बड़ा अच्छा लगा पढ़कर कैसे आपने अपने मन में उठते भावों को रेलवे की लाइन से --पटरी से --प्लेटफार्म से --सफ़र से जोड़ा है --फिर कैसे वह परिपेक्ष लेखन से चित्रकारी में बदला .......आत्मा उसकी रेलवे ही रही ......मथुरा एक्सप्रेस सबसे बढ़िया लगी .....ख़ुशी होती है देख कर -रेलवे का भविष्य सुरक्षित हाथों में है ......!!!

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  7. रेल का यह प्रयास नि:संदेह बहुत अच्छा है. चित्र भी एक से बढ़ कर एक हैं.

    पर एक तरफ राजधानियां हैं तो दूसरी तरफ शटल. एक आसमान हैं तो एक पाताल... दोनों में ही एक सी सुविधाओं का भी एक चित्रकार का सा ही स्वप्न ही है ये भी...

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  8. सभी चित्र बढ़िया लगे | हर रेल यात्रा एक अलग ही अनुभव देती है |

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  9. बहुत बेहतरीन प्रयास है... श्री एस मणि जी अच्छा प्रयास किया है.... चित्र भी अच्छा लगा

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  10. ऐसे प्रयारों के बारे में जानना सुखकर रहा...कभी Support and appreciation for art and Railways(SAFAR) के बारे में सुन ही नहीं था...सार्थक पहल है.

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  11. कलाकार तो अपनी कूंची को कहीं भी लगा दे बस वह स्‍थान दर्शनीय हो जाता है। भारतीय रेल चित्रकला को प्रोत्‍साहित कर रही है, अच्‍छी बात है। जयकुमार जी की बात को भी सुन लीजिए।

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  12. लोगों का भागते हुये आना, एक हाथ में बच्चे, दूसरे में सामान, आँखें रास्ता ढूढ़तीं, पैर स्वतः बढ़ते, कानों में पड़ते निर्देशों और सूचनाओं के सतत स्वर, अपने कोच को पहचान कर सीट में बैठ जाने की निश्चिन्तता, खिड़की से बाहर झांकती बाहर की दुनिया की सुधि और न जाने कितना कुछ।
    -----------------------
    कई सारे चित्र आपके शब्दों ने ही उकेर दिए.....बहुत जीवंत वृतांत लिखा आपने रेलवे और आम जनजीवन के सम्बन्ध का .....कलाकृतियाँ उत्कृष्ट हैं.......बहुत ही सुंदर

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  13. आनन्द आ गया, बहुत सुन्दर चित्र हैं, बाकी सब लोगों की टिप्पणियों ने सबकुछ कह ही दिया..

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  14. आदमी मुसाफ़िर है,
    आता है, जाता है,
    आते-जाते रस्ते में,
    यादें छोड़ जाता है...

    रेल और ज़िंदगी, दोनों को एक साथ देखिए, एक ही फ़लसफ़ा नज़र आएगा...

    जय हिंद...

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  15. प्रवीण भाई आप के चित्रकला प्रेम की भी दाद देनी होगी| आभार इस पहलू को भी चर्चा में उकेरने के लिए|

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  16. हिंदुस्तान की जीवन रेखा को भित्तिय चित्र रेखा से सुसज्जित होते हुए देखना रुचिकर लगा .. उम्मीद है ये कार्य दुसरे मंडलों प्रबंधको को भी आकर्षित करेगा .

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  17. सभी चित्र सुन्दर हैं, एक से बढ़कर एक।

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  18. aap her baar kuch naya kuch alag prastut kerte hain ....

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  19. सुन्दर, बधाई प्रवीण जी, मणि जी को भी प्रेषित करें... प्लेटफ़ार्म की सुन्दरता मई आकर में देखेंगे।
    चित्रों का सुन्दर समन्वय तो है ही---अनुसरणीय कार्यक्रम के विचार व परिकल्पना के लिये बन्गलोर मन्डल के अधिकारियों व कर्मचारियों को बधाई....

    ---हां अन्टाइटिल्ड कला क्रतियों की सामान्य जन के लिये उपयोगिता पर ..?

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  20. श्री एस मणि जी को बधाई.

    सुन्दर चित्र....
    सुन्दर प्रस्तुति...

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  21. यह प्रस्तुति नि:संदेह बहुत अच्छी है ...दीवार पर बने चित्र बहुत अच्छे लगे .

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  22. सभी चित्र सुन्दर हैं, एक से बढ़कर एक।

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  23. एस मणि जी को बधाई.

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  24. manbhavan.......ati sundar.....


    pranam.

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  25. Behad saraahneey prayas!Chitr aprateem hain...khaaskar Mahatma ji ke!

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  26. आपके शब्द-चित्र भी अच्छे बने हैं !
    रेलवे को अब दोनो "सफ़र" के लिये याद करेंगे ,आभार!

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  27. जीवन अनवरत चलते रहने का क्रम है और रेल्वे से बेहतर और कौन इस उक्ति को इस नियमितता के साथ दर्शा सकता है ।

    दर्शनीय चित्रों से परिपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति...

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  28. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  29. ‘रेलवे का समाज से सीधा सम्बन्ध है,....’

    रेलवे भी अब ‘ममता’मयी भई :)

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  30. सुन्दर चित्र,भारतीय रेल को राजधानी और शताब्दी ट्रेनों की पेंट्री के असली चित्र भी हर कम्पार्टमेंट में टांगने चाहिए :)

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  31. एक नया रूप आपकी पोस्‍ट का और यह चित्र प्रस्‍तुति आभार ...।

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  32. कला का यह स्वरूप हम तक आपकी कला पारखी नज़र के माध्यम से पहुँचा. सार्थक प्रयास.

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  33. रेल का यह प्रयास नि:संदेह बहुत अच्छा है|सुन्दर कला से परिचय कराने का आभार|आप को और श्री एस मणि जी को बहुत बहुत बधाई|

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  34. Anonymous13/4/11 19:27

    सब चित्र बहुत खूबसूरत है|
    .
    .
    .
    शिल्पा

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  35. बढ़िया प्रयास रेलवे का.चित्र बहुत सुन्दर हैं.

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  36. सुन्दर चित्र शब्दों के, कूची के।
    ऐसे अनूठे प्रयासों के लिए शुभकामनायें मणि जी को और आपको भी।

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  37. @यह कलाशिविर उस प्रक्रिया को समझने का सूत्र हो सकता है जिसके द्वारा कला को संवर्धित किया जाना चाहिये।

    बिल्कुल सही कहना है आपका। ऐसे प्रयासों से कला और कलाकार दोनों को प्रोत्साहन मिलेगा।
    रेल्वे का यह अनूठा प्रयोग एस.मणि जी जैसे कलाप्रेमी अधिकारी के कारण ही संभव हो सका, उन्हें नमन।
    इस कलाशिविर का जीवंत दृश्य प्रस्तुत करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं।

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  38. बेहतरीन पोस्ट भाई प्रवीन जी बधाई |

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  39. बहुत ही सुन्दर चित्र हैं....उन्हें साकार रूप लेते देखना सचमुच एक अनूठा अनुभव रहा होगा

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  40. मुझे जैसे चित्रकारी में पैदल को भी चित्र पसंद आये. बढ़िया.

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  41. दर-असल हमारी जिंदगी एक चलचित्र की ही भांति भागती रहती है,वैसे ही जैसे यह अपनी जीवन-रेखा (रेलगाड़ी).शब्द से कठिन होता है दृश्य गढ़ना और समझना सरल भी,दुरूह भी !
    आपने ऐसा आयोजन करवाया ,कल्पना को यथार्थ का रूप दिया,बधाई !

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  42. सफर का प्रासंगिक अर्थ है, Support and appreciation for art and Railways(SAFAR)
    यह तो हमने पहली बार सुना है हम तो इसे अंग्रेजी का सफ़र समझते थे| अच्छी पोस्ट बधाई

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  43. रेल, कला और पेंटिंग का संगम जितना सुखद, शांति प्रदान करने वाला और मनोहारी होता है उतना ही यह पोस्ट है।
    तब के जयंती जनता एक्सप्रेस (ललित बाबू के जमाने में) और आज के वैशाली एक्सप्रेस में जब पहली बार दो बर्थों के बीच मधुबनी पेंटिंग के चित्र लगाए गए थे तो हम यह दृश्य़ देखने गए थे।

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  44. बहुत ही सुन्‍दर और सर्वोपयोगी प्रयास है यह तो। परिकल्‍पना से लेकर उसे साकार करने तक जुडे सारे लोगों को साधुवाद। चित्रकला की परख मुझे शून्‍य ही है किनतु 'जनरल कम्‍पार्टमेण्‍ट', 'मथुरा एक्‍सप्रेस' और कपल एट प्‍लेटफार्म चित्र तो बहुत ही अच्‍छे हैं। यह सब हम सब तक पहुँचाने के लिए आपको कोटिश: धन्‍यवाद।

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  45. रेल का सफर हमारे लिए तो हमेशा ही बढि़या होता है। इस शिविर के बारे में सुना था। पर अफसोस कि एक यह एक ही दिन का था। देखने से महरूम रहे। पर आपने कुछ तो भरपाई कर दी।

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  46. रेल का सफर हमारे लिए तो हमेशा ही बढि़या होता है। इस शिविर के बारे में सुना था। पर अफसोस कि एक यह एक ही दिन का था। देखने से महरूम रहे। पर आपने कुछ तो भरपाई कर दी।

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  47. कला और railways का अद्भुत समन्वय !

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  48. सफर का सफर टाईटिल अच्छा लगा.आपकी शैली प्रभावमय और रोचक है.

    ' हर दृश्य नया, प्राचीन से अर्वाचीन तक, संस्कृति से उपसंस्कृति तक, फैशन के रंगों में पुते परिदृश्य, पार्श्व में बजता इंजन की गुनगुनाहट का संगीत, पटरियों की पहियों से दबी दबी घरघराहट, बहु प्रतीक्षित ट्रेन का आगमन, उतरने और चढ़ने वालों में आगे निकलने की होड़, फिर सहसा मध्यम सी शान्ति।'

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  49. सर चित्र देखने के बाद ...अन्गुलियोमे आकृति ..झूम गयी | वैसे रेलवे ने देर से इस दिशा में एक प्रयास शुरू किया है | बंगलुरु की गलियों में इस तरह के प्रयास बहुत दिनों से राज्य सरकार कराती नजर आ रही है ! जगह - जगह सार्वजनिक स्थानों में चित्र प्रदर्शनी देखने को मिल जाती है ! इस तरह के प्रयास दिल खोल कर होने चाहिए ! बहुत सुन्दर लगा !

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  50. सफर करते (पत्नी के साथ) किसान के गले में मोबाइल! वाह!
    चित्र बहुत सुन्दर हैं!

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  51. एक बात आप भूल गए.......... श्रमजीवी एक्सप्रेस में लाईन लगे यात्रियों पर पुलिस से पढ़ते डंडे......... और फिर डिब्बे में घुस कर .... ५० रुपे में सीट खरीदते .... घर की यादें मन में संजोये बिहारी...... आँखों देखा लग रहा है मेरे को ........ पर क्या करें... चित्र बनाना नहीं जानते न ही चित्र खींचना.....

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  52. सभी चित्र बहुत अच्छे हैं....रेलवे और कला का यह अद्भुद संगम लगा...बधाई

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  53. हावडा स्टेशन पर कला के विद्यार्थियों के द्वारा यात्रियों के बनाए जाने वाले स्केच याद आ गए!

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  54. चित्र तो सुन्दर हैं ही, आपका लेखन भी काबिलेतारीफ.वास्तव में भारतीय रेल और आदमी के सपनों और संघर्षो के साथ ही सफलता का भी अद्भुत रिश्ता है.

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  55. सुन्दर कलाकृतियाँ. श्री मणि के साथ आपका भी आभार .

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  56. सुंदर चित्र है | बगैर घूमे ही दर्शन करवा दिया आभार |

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  57. मुझे भी चित्रकला का विशेष ज्ञान नहीं है पर शब्दों की चित्रकारी करते करते अब चित्रकला के लिये शब्द मिलने लगे हैं। मेरी चित्रकला की समझ चार मौलिक रंगों और दैनिक जीवन की आकृतियों के परे नहीं जा पाती है। बहुधा हम चित्रों को बना बनाया देखते हैं और उसमें रंगों और आकृतियों के अर्थ ढूढ़ते का प्रयास करते हैं, पर उन रंगों और आकृतियों का धीरे धीरे कैनवास पर उभरते हुये देखना एक अनुभव था मेरे लिये। चित्रकारों की ध्यानस्थ अवस्था में बीता समय कल्पना के समुन्दर में लगायी डुबकी के समान था जिसमें खोजे गये रत्न कैनवास में उतरने को प्रतीक्षित थे। वाक्यों में शब्द सजाने के उपक्रम से अधिक कठिन है कैनवास पर रंगों की रेखायें खींचना।
    kitna achchha likha hai ,abhi safar ka waqt kareeb hai ,platform par khade hone par aapki racha jahan me ubhar aayegi .ati uttam

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  58. आपकी रचना को पढ़कर एक छोटी सी रचना याद आ गयी उसे लिखने को मन हुआ सो लिख रही हूँ ---------
    अलविदा ये दोस्त जाने फिर कहाँ हो सामना
    जा रहे तुम न जाने कौन बस्ती किस शहर
    दूरियां इनमे हजारो मिल की आई उभर
    पोछ डालो आँख का आंसूं न देखो घूम कर
    याद की खामोशियाँ होंगी हमारी हमसफ़र .

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  59. मुझको तो रेलवे का प्लेटफार्म सदैव भारत की आत्मा सा लगता है...... प्लेटफार्म देश की आत्मा की नंगी तस्वीर प्रकट करता है. आपकी ये पोस्ट मेरी भावनाओं को आवाज़ दे गयी साधुवाद नव संवत्सर की आपको भी बहुत बहुत बधाई......!!!!!
    उत्कृष्ट कलाकृतियाँ -कथ्य, रंग संयोजन -एक यादगार आयोजन -चित्र वीथिका के लिए आभार !

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  60. अगर मैं भी चित्रकारी कर सकता तो बडे भयंकर भयंकर चित्र बनाता। मेरे लिये भी रेलें इमोशनल करने वाली चीजें हैं, जब मैं इसी तरह बैठकर सोचता हूं तब।

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  61. @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    जिस प्रक्रिया से चित्र बने, उसे देखने के बाद इनका मान और बढ़ जाता है।

    @ honesty project democracy
    निश्चय ही भारतीय रेलवे सामाजिक और आर्थिक गतिमयता का प्रतिमान है। इन्हीं सरोकारों पर चरचा बनती है।

    @ Arvind Mishra
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ सतीश सक्सेना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ वाणी गीत
    रेलवे और कला का सम्बन्ध तो पुराना है, यह शिविर उसमें नवीनतम अध्याय है।

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  62. @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    जिस प्रक्रिया से चित्र बने, उसे देखने के बाद इनका मान और बढ़ जाता है।

    @ honesty project democracy
    निश्चय ही भारतीय रेलवे सामाजिक और आर्थिक गतिमयता का प्रतिमान है। इन्हीं सरोकारों पर चरचा बनती है।

    @ Arvind Mishra
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ सतीश सक्सेना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ वाणी गीत
    रेलवे और कला का सम्बन्ध तो पुराना है, यह शिविर उसमें नवीनतम अध्याय है।

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  63. @ anupama's sukrity !
    रेलवे में नियमित कार्यों के अतिरिक्त कला का संवर्धन उन मनों के बारे में जानने का माध्यम बना जिनकी दृष्टि गूढ़ होती है।

    @ Kajal Kumar
    निश्चय ही विविधता से भरी है रेल यात्रा, एक समान सुविधायें अपेक्षित भी नहीं है। पर न्यूनतम सुविधायें तो हमारी प्राथमिकता हो ही।

    @ Ratan Singh Shekhawat
    रेल यात्रा के अनुभव बहुत कुछ ले आते हैं।

    @ Shah Nawaz
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Udan Tashtari
    सफर के सफर में आप उससे मिल भी लिये।

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  64. @ ajit gupta
    भारतीय रेल का साहित्य के संग ही चित्रकला से पुराना सम्बन्ध है।

    @ डॉ॰ मोनिका शर्मा
    शब्द फिर भी उतना नहीं कह पाते हैं जो चित्र कह जाते हैं।

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ खुशदीप सहगल
    बहुत गहन समानता है दोनों के बीच।

    @ Navin C. Chaturvedi
    चित्रकला में आकर्षण तो है ही, उसी में खिंचे चले गये।

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  65. @ ashish
    ऐसे कला के आयोजनों को उत्साह मिलना चाहिये।

    @ सतीश पंचम
    कुछ चित्र तो सबने सराहे।

    @ रश्मि प्रभा...
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Dr. shyam gupta
    आपकी बधाई प्रेषित कर दी है, कला के प्रति लोगों का उत्साह देख ही यह सम्भव हो सका हम सबके लिये।

    @ Dr (Miss) Sharad Singh
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  66. @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    अभी वह चित्र पूरे हो गये हैं, बाद में लगायेंगे।

    @ संजय भास्कर
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ सञ्जय झा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ kshama
    महात्मा का चित्र सबको बड़ा प्रेरक लगा।

    @ nivedita
    यह सफर चलता रहे।

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  67. @ सुशील बाकलीवाल
    रेलवे में जीवन अनवरत चलता रहता है, उसी का प्रस्तुतीकरण था यह शिविर।

    @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका, इस सम्मान के लिये।

    @ cmpershad
    निश्चय ही यात्रियों की सुविधा का भरसक प्रयास तो करती है।

    @ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    अब उनमें भी सुधार आ रहा है, चित्र उसके भी लगाये जा सकते हैं।

    @ सदा
    रूप वही है बस कलामय हो गयी है।

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  68. @ M VERMA
    चित्रकला को समझने भर का प्रयास था मेरे लिये कलाशिविर देखना।

    @ Patali-The-Village
    श्री मणिजी ने इस पूरे उपक्रम में केन्द्रीय योगदान दिया है, रेलवे भी जानना चाहती थी कि चित्रकार क्या समझते हैं इस बारे में।

    @ Shilpa
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ shikha varshney
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Avinash Chandra
    प्रयास कला को समर्पित था और इसी तरह के प्रयास और होने चाहिये।

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  69. @ mahendra verma
    दो पक्षों को एक आधार देने का कार्य किया रेलवे ने।

    @ जयकृष्ण राय तुषार
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ rashmi ravija
    चित्र बनते देखना बहुत ही अच्छा लगता है।

    @ Abhishek Ojha
    आपकी कला की समझ मुझसे तो अच्छी ही है।

    @ संतोष त्रिवेदी
    जीवन-रेखा की रेलगाड़ी से बहुत समानतायें हैं, रेल से सम्बन्धित चित्र इस तथ्य को बहुत ढंग से समझाते हैं।

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  70. @ Sunil Kumar
    कला के लिये रेलवे का प्रयास भी सफर है।

    @ मनोज कुमार
    यह मनोहारी दृश्य कलाशिविर में पहुँचकर मिल गया हमें।

    @ विष्णु बैरागी
    इस चित्रावलि में सभी के लिये कुछ न कुछ है।

    @ राजेश उत्‍साही
    शिविर के बाद प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था, उसमें भी बहुत लोग आये थे।

    @ ZEAL
    यहीं पर जीवन के ढेरों रंग मिल जाते हैं।

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  71. @ Rakesh Kumar
    कला के प्रवाहमयी स्वरूप को देखकर शब्द भी बह निकले।

    @ G.N.SHAW
    आप मंडल कार्यालय आकर सभी चित्र देख सकते हैं।

    @ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
    उस चित्र में एक साथ ही बहुत कुछ कहने का प्रयास किया गया है।

    @ दीपक बाबा
    वह भी एक दुखद दृश्य है, उसे सुधार लें और सुधरा हुआ सुन्दर दृश्य बनाया जाये।

    @ वीना
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  72. @ सम्वेदना के स्वर
    पश्चिम बंगाल तो कला, संगीत का गढ़ है।

    @ संतोष पाण्डेय
    भारतीय रेल में लाखों जीवन एक साथ जिये जाते हैं, सब एक से बढ़कर एक दृश्य लिये हुये।

    @ मेरे भाव
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ नरेश सिह राठौड़
    बहुत धन्यवाद आपका। कलाशिविर देखते तो गदगद हो जाते।

    @ ज्योति सिंह
    मैं जब भी स्टेशन जाता हूँ, मेरी आँखों में यही दृश्य बार बार पुष्ट होते रहते हैं। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है आपकी।

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  73. @ singhsdm
    सच कहा आपने, रेलवे के प्लेटफार्मों में एक पूरा संसार बसता है, भारत की आत्मा बसती है।

    @ नीरज जाट जी
    आपने तो अपना जीवन चित्र रेलवे से बना दिया है, दृश्यो की अधिकता है आपके पास तो।

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  74. मेरी समझ से खेल खेलने और खेल को जानने की अभिलाषा जिज्ञासा से बच्चे नहीं थकते हैं ...बच्चों की उर्जा और बड़ों की उर्जा में अंतर तो होता है ...मैं समीर जी के इस विचार से सहमत हूँ ...
    ... बहुत बढ़िया लेख .. पढ़कर मूड फेस हो गया ... वाह ..

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  75. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति साधुवाद। आपसे इसपर चर्चा तो हुई थी, मन में अपार उत्सुकता भी थी कि आपका सफर का सफर लेख पढूँ किन्तु कुछ अपरिहार्य व्यक्तिगत कारणों से यहाँ बिलम्ब से आया। किन्तु लेख पढकर मन आनंदित हो गया। साधुवाद। रेलव प्लेटफॉर्म और रेल की यात्रा में हमारे खुद के जीवन की अनेक परतों के दृश्य सायाश सामने घटित होते नजर आते हैं। मुझे तो रेल यात्रा व जीवन-यात्रा में अनेक समानताएँ नजर आती हैं।

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  76. @ महेन्द्र मिश्र
    बच्चों का उत्साह ही उनकी ऊर्जा का स्रोत है, हमारा उत्साह ही ढलने लगता है।

    @ देवेन्द्र
    तभी रेलवे में जीवन का दर्शन दिखता भी है और मिलता भी है।

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