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14.2.16

भौतिक प्यास

उतर गया गहरी पर्तों में,
जीवन का चीत्कार उमड़ कर ।
गूँज गया मन में कोलाहल,
हिले तन्तु अनुनादित होकर ।।१।।

स्वार्थ पूर्ति के शब्द तुम्हारे,
गर्म द्रव्य बन उतर गये हैं ।
शंकातृप्त तुम्हारी आँखें,
मेरे मन को अकुलातीं हैं ।।२।।

देखो भौतिक प्यास तुम्हारी,
जीवन का रस ले डूबी है ।
फिर भी तेरा स्वप्न कक्ष,
जाने कब से एकान्त लग रहा ।।३।।

व्यर्थ तुम्हारे इस चिन्तन ने,
जीवन का सौन्दर्य मिटाया ।
आओ मिलकर इस जीवन मे,
सुख का सुन्दर स्रोत ढूढ़ लें ।।४।।