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18.9.13

एप्पल - एक और दिशा निर्धारण

नया स्वरूप
जैसा कि पुरानी पोस्ट में संभावना व्यक्त की थी, एप्पल ने आईफ़ोन के दो मॉडल उतारे, पॉलीकार्बोनेट काया का आईफ़ोन 5सी व धातुकाया का आईफ़ोन 5एस। बहुत अच्छा किया कि इन दोनों में ही उसने अपने मुख्य मानक नहीं बदले, चार इंच की स्क्रीन रखी, ११२ ग्राम का भार और ३२६ पीपीआई की स्क्रीन स्पष्टता भी। बड़ी स्क्रीन व बढ़ी स्पष्टता के लिये बड़ा कोलाहल था, पर ये दोनों बैटरी निचोड़ने में अधिक और उपयोगिता में कम सिद्ध होने वाले थे, अतः इन्हें न बदल कर एप्पल ने अपना सशक्त पक्ष बनाये रखा है। जैसा सोचा था, बैटरी की क्षमता बिना भार बढ़ाये लगभग १० प्रतिशत बढ़ी है, पर उसकी तुलना में उससे बैटरी का समय नहीं बढ़ा है। यह अतिरिक्त बैटरी क्षमता, मोबाइल का समय न बढ़ा कर कहीं और सार्थक उपयोग में लायी गयी है, आइये उसके महत्व को समझते हैं।

एप्पल ने मुख्यतः तीन क्षेत्रों में बदलाव किये हैं। प्रोसेसर, कैमरा और सुरक्षा। अपनी छवि और नेतृत्व के अनुसार ये तीनों तकनीकी बदलाव मोबाइल क्षेत्र में सर्वप्रथम हैं, शेष अन्य मोबाइल बनाने वालों के लिये अनुकरणीय। अभी केवल आईफ़ोन से संबद्ध घोषणायें हुयी हैं पर इसके तन्तु आने वाले अन्य उत्पादों में भी झंकृत होते रहेंगे।

जो प्रोसेसर नये आईफोनों में आयेगा, वह ए७(A7) होगा। एक बात बताते चलें कि प्रोसेसर मोबाइल या कम्प्यूटर की आत्मा होता है और जो भी गणनायें या कार्य होते हैं, वह प्रोसेसर के माध्यम से ही होते हैं। यह जानना भी रोचक है कि जो भी प्रोसेसर होते हैं उन्हें एप्पल स्वयं ही डिजायन करता है और इस तरह से करता है कि हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर में समन्वय सम्पूर्ण रहे। इसकी विशेषता यह है कि यह ६४ बिट है। ६४ बिट तनिक तकनीकी शब्द है और जब मैंने अपना लैपटॉप को पुनः प्रतिष्ठित किया था, इस शब्द को समझाया था। आपको असुविधा न हो अतः पुनः इसे समझा देता हूँ।

हर प्रोसेसर में एक मेमोरी होती है जो सामान्य मेमोरी से भिन्न होती है। इस मेमोरी को रैम(RAM) कहते हैं। इसका प्रयोग भिन्न प्रोग्रामों को चलाने के लिये एक अस्थायी क्षेत्र की तरह से किया जाता है। जब कोई प्रोग्राम चलता है तो अपने को सुचारु रूप से चलाने के लिये वह रैम से ही मेमोरी छेंक लेता है। जब एक साथ कई प्रोग्राम चलते हैं तो सबके हिस्से की सम्मिलित मेमोरी कुल रैम से अधिक नहीं होनी चाहिये। यदि ऐसा होता है तो प्रोग्रामों के बीच होड़ मचेगी। तब या तो कुछ प्रोग्राम नहीं चलेगें, या चलेंगे तो धीरे चलेंगे। सरल प्रोग्राम कम रैम लेते हैं, वीडियो गेम जैसे प्रोग्राम या गणना प्रधान प्रोग्राम कहीं अधिक मेमोरी लेते हैं।

कितना कुछ है मुझमें
३२ बिट के प्रोसेसरों की रैम २ की ३२ घातों तक होती है और ४जीबी के पार नहीं जा पाती है। ६४ बिट के प्रोसेसरों में रैम १६ ईबी तक बढ़ाई जा सकती है। कहने का आशय यह कि प्रोग्रामों के लिये कई गुना अधिक मेमोरी उपस्थित रहेगी। इस बढ़ी हुयी मेमोरी का लाभ और अधिक उन्नत प्रोग्राम बनाने के लिये किया जा सकता है और वही एप्पल का उद्देश्य भी है। ६४ बिट के प्रोसेसर मुख्यतः लैपटॉप में लगाये जाते हैं, मोबाइलों में इसका प्रयोग प्रारम्भ कर एप्पल मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप के बीच के अन्तर की मिटाने पर उद्धत है। अपनी स्क्रीन के आकार के कारण मोबाइल भले ही लैपटॉप का स्थान न ले पाये, पर टैबलेट निश्चय ही लैपटॉप की समाप्ति के अन्तिम गीत गाने लगेंगे।

मोबाइल और टैबलेट में ६४ बिट का प्रोसेसर लाकर एप्पल ने पहल कर अपना आशय स्पष्ट कर दिया है, प्रतियोगियों के पास अब और कोई विकल्प नहीं है, सिवाय इसके कि वे भी अनुसरण करें। चित्रों और ग्रॉफिक्स के लिये भी एप्पल उच्चतम वर्तमान मानक लेकर आया है। यही नहीं ए७ के साथ में एक और उपप्रोसेसर एम७ भी होगा, जो मोबाइल से मापी जा सकने वाली शरीर की गतियों की गणना करेगा और वह भी मुख्य प्रोसेसर की ऊर्जा व्यर्थ किये बिना। यह उपप्रोसेसर स्वास्थ्य, चिकित्सा मनोरंजन आदि के क्षेत्रों में बनाये जाने वाले प्रोग्रामों के लिये आधारभूत संरचना तैयार करेगा। निश्चय ही यह मानवता के लिये अत्यन्त लाभदायक रहेग और इस क्षेत्र में सृजनात्मकता के वृहद विस्तार खोलेगा।

६४ बिट ए७ प्रोसेसर का एक व्यवसायिक कारण भी है। अभी तक एप्पल अपने मैक कम्प्यूटरों पर इन्टेल प्रोसेसर उपयोग में ला रहा है। इस विकास के बाद आने वाले मैकबुक एयर में यदि ए७ प्रोसेसर आ जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। जहाँ एक ओर इन्टेल प्रोसेसर अधिक बैटरी खाता है, वरन आकार में बड़ा भी है। साथ ही साथ बाह्य निर्भरता के कारण मैकबुक के हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर पक्ष में अधिक समन्वय की संभावना नहीं मिल पायी है। भविष्य के संकेत माने तो आने वाले समय में मैकबुक का आकार घटेगा, मूल्य कम होगा, भार कम होगा, सॉफ़्टवेयर अधिक उत्पादक होंगे और सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि बैटरी का समय २४ घंटे तक हो सकता है। इसे लेकर न केवल एप्पल उत्साहित है वरन तकनीकविदों में भी सुखद भविष्य की आशा का संचार है।

एप्पल ने आईओएस६ (iOS6) से ही लैपटॉप व मोबाइल के ओएस की दूरियाँ कम करना प्रारम्भ कर दिया था। आईओएस७ से यह कार्य और आगे बढ़ने वाला है जिससे लैपटॉप व मोबाइल में किये गये कार्य में कोई भिन्नता न हो और उपयोगकर्ता का अनुभव एक सा ही रहे।

यद्यपि कैमरे का मेगापिक्सल ८ ही रखा गया गया है, पर चित्रों की गुणवत्ता के क्षेत्र में तीन प्रमुख उन्नत विकास किये गये हैं। पहला लेन्स का आकार बढ़ाया गया है जिससे दृश्यों से सेन्सरों पर अधिक प्रकाश पहुँचे और चित्रों की गुणवत्ता बढ़े। दूसरा सेन्सरों का आकार लगभग २० प्रतिशत बढ़ा दिया है जिससे वे अधिक फोटॉन्स ग्रहण कर सके और स्पष्ट चित्र बन सकें। तीसरा फ़्लैश के प्रकाश का रंग वातावरण के रंग जैसा हो जाये जिससे दृश्यों की यथार्थता चित्रों में आये, न कि कोई तीसरा और भिन्न रंग। इसके अतिरिक्त सामर्थ्यशाली प्रोसेसर का लाभ उठाते हुये, एक साथ कई चित्र, उनका त्वरित संपादन और उन्नत निष्कर्ष, जिससे आप एक सिद्धहस्त फ़ोटोग्राफ़र की तरह चित्र खींच सकें।

सुरक्षा के क्षेत्र में फ़िंगरप्रिंट को मोबाइल खोलने व धनविनिमय का माध्यम बना देने से मोबाइल पहले से कहीं सुरक्षित हो चले हैं। अब कोई आपका मोबाइल नहीं चुरा पायेगा क्योंकि किसी चोर के लिये वह मोबाइल कभी खुलेगा ही नहीं। फ़िंगरप्रिंट से संबंधित तथ्य कहीं और न संरक्षित रह कर प्रोसेसर के अन्दर संरक्षित रहेंगे। इससे मोबाइल सुरक्षा की दीवार और भी ऊँची हो जायेगी और मोबाइल चोरी होना एक पुरानी कहानी सा हो जायेगा।

अपनी छवि के अनुसार एप्पल ने तकनीक के तीन अध्याय खोल दिये हैं। इस बार भी उपयोगकर्ताओं के सतही माँगों के बाजार को नकारते हुये, तकनीक पर स्वयं को केन्द्रित रखा है। १० सितम्बर को हुयी घोषणायें आने वाले कई वर्षों की दिशा निर्धारण की क्षमता रखती हैं, पूरे मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप के क्षेत्र के लिये।

8.6.13

टावर किचेन से ब्लॉगिंग

इस बार इंडीब्लॉगर के मिलने का स्थान था, यूबी सिटी। यह स्थान विजय माल्या जी का है, जी हाँ किंगफिशर वाले और यहीं पर ही उनका मुख्यालय भी है। मेरे घर से लगभग ३ किमी दूर और विस्तृत और सुन्दर कब्बन पार्क के समीप। रविवार का समय था, अघटित सा, सदा की तरह शान्त और रिक्त, यह आयोजन रोचक लगा तो नहा धोकर वहाँ पहुँच गये।

यूबी सिटी के १६वें तल में टावर किचेन नामक यह स्थान निश्चय ही रात्रिकालीन पार्टियों में चहल पहल से भरा पूरा रहता होगा, क्योंकि अपराह्न के समय ही बार आदि की तैयारियाँ विधिवत चल रही थीं। उन सब विषयों पर ध्यान नहीं जाना चाहिये था, आयोजन का विषय कुछ और था, पर एक ब्लॉगर होने के नाते पत्रकारिता के गुणों के छींटे बिना आप पर पड़े रह भी कहाँ सकते हैं। हम भी अवलोकन का धर्म निभा उस ओर बढ़ गये जहाँ से चहल पहल की टहल चल रही थी।

इस बार कुछ अधिक ही भीड़ थी, ब्लॉगरों के अतिरिक्त माइक्रोसॉफ्ट के चाहने वालों की भी भीड़ थी वहाँ पर। विषय और आयोजन ही कुछ ऐसा था। यह आयोजन माइकोसॉफ्ट और इंडीब्लॉगर ने मिलकर किया था और शीर्षक था, 'क्लॉउड ब्लॉगॉथन'। देखिये एक ही शब्द में कितने पक्ष साध लिये। क्लॉउड से तकनीकी पक्ष, ब्लॉग से लेखकीय पक्ष और ऑथन से कुछ कुछ मैराथन जैसा लम्बा चलने वाला। तीनों ही विषय, तकनीक, लेखन और अस्तित्व, मेरे प्रिय विषय हैं। बस यही कारण था अत्यधिक भीड़ का, त्रिवेणी के संगम में तीनों मतावलम्बियों की भीड़ थी, हम थे जो तीनों के संश्लेषित रूप लिये पहुँचे थे।

आशायें बहुत प्रबल थीं और लग रहा था कि चर्चा गहरी होगी। पहली आशा कि लेखन की तकनीक पर चर्चा होगी, ढह गयी। दूसरी आशा कि तकनीकी लेखन पर चर्चा होगी, ढह गयी। तीसरी आशा कि तकनीक या लेखन में से किसी के भविष्य पर चर्चा होगी, वह भी ढह गयी। अन्ततः मन्तव्य समझ आया कि यह माइक्रोसॉफ्ट के उत्पादों को ब्लॉगिंग के माध्यम से प्रचारित करने के लिये आयोजित कार्यक्रम था। क्योंकि क्लॉउड इण्टरनेट का भविष्य है, माइक्रोसॉफ्ट के क्लॉउड प्रधान उत्पाद ऑफिस ३६५ ही चर्चा के केन्द्रबिन्दु में था।

जब पहले से कार्यक्रम के आकार और आसार के बारे में कुछ ज्ञात नहीं हो तो समझने में थोड़ा समय चला जाता है। इस स्थिति में एक कोने में सुविधाजनक शैली में बैठकर सुनने से अच्छा कुछ नहीं है। अपनी उपस्थिति को अपने तक ही सीमित रखने से संवाद का बहुत अधिक प्रवाह आपकी ओर बहता है। जब बोलने की इच्छा न हो तो, समझने में बहुत अधिक आनन्द आता है। मेरे जैसे १५-२० लोग स्थान की परिधि निर्मित किये हुये थे, उसके अन्दर नये और उत्साही प्रतिभागी अपनी उपस्थिति का नगाड़ा बजा रहे थे।

तभी माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय परिक्षेत्र के एक बड़े अधिकारी आते हैं, पहले कम्प्यूटर, फिर माइक्रोसॉफ्ट और फिर क्लॉउड की महत्ता पर एक सारगर्भित और स्तरीय व्याख्यान देते हैं। सब कुछ इतने संक्षिप्त में सुनकर अच्छा लगा और साथ ही साथ अनुभव का संस्पर्श देख रुचि और बढ़ी। पर ब्लॉग को किसलिये शीर्षक सें सम्मिलित किया गया है, उसे सुनने की प्रतीक्षा बनी रही। जब व्याख्यान अपने अंतिम चरण पर पहुँचा, तब कहीं जाकर पता चला कि ब्लॉग को उनके उत्पादों के प्रचार तक ही महत्व प्राप्त है। ब्लॉगरों को प्रचार माध्यम का एक अंग मानकर दिया गया था वह व्याख्यान। थोड़ा छली गयी सी प्रतीत हुयी अपनी उपस्थिति, वहाँ पर।

तीन तरह की प्रतिक्रियायें स्पष्ट दिख रही थीं। पहली उनकी थी जो विशुद्ध तकनीकी थे, वे सबसे आगे खड़े थे, अधिकारी को लगभग पूरी तरह घेरे, कुछ ज्ञान की उत्सुकतावश और कुछ संभावित नौकरी के लिये स्वयं को प्रदर्शित करने हेतु। उनके तुरन्त बाहर विशुद्ध ब्लॉगरों की प्रतिक्रिया थी, उनका तकनीक के बारे में ज्ञान लगभग शून्य था और वे मुँह बाये सब सुन रहे थे, सब समझने का प्रयास कर रहे थे। उनमें भी तनिक विकसित प्रतिक्रियायें उन ब्लॉगरों की थीं जिन्होने तकनीक के प्रभाव को समाज में समाते हुये देखा है, उन्हें तकनीक का ब्लॉग समाज के पास आकर प्रचार का आधार माँगना रुचिकर लग रहा था।

चौथी प्रतिक्रिया विहीन उपस्थिति हम जैसे कुछ लोगों की थी, जो शान्त बैठे इस गति को समझने का प्रयास कर रहे थे। मैं संक्षिप्त में बताने का प्रयास करूँगा कि उसकी दिशा क्या थी।

क्लॉउड इण्टरनेट के भविष्य की दिशा निर्धारित कर रहा है। प्रोग्रामों के बदलते संस्करण, फाइलों के ढेरों संस्करणों में होता विचरण, कई लोगों के सहयोग के सामंजस्य में आती अड़चन, कई स्थानों पर रखे और संरक्षित डिजटलीय सूचनाओं के सम्यक रख रखाव ने क्लॉउड को जन्म दिया है। न केवल आवश्यकता इस बात की है कि सूचनाओं का रखरखाव क्लॉउड में हो, वरन उनमें आये बदलाव और उन्हें त्वरित कार्य में लाने की एक ऐसी प्रणाली बने, जिसें श्रम, समय और साधनों की न्यूनतम हानि हो और साथ ही साथ उत्पादकता भी बढ़े।

जब दिशा ज्ञात है तो वहाँ पहुँचने की होड़ भी मची है। व्यवसाय भी उसी दिशा में जाता है जहाँ वह औरों को अपना मूल्य दे पाता है, अपनी उपस्थिति जताने के लिये उसे भी प्रचार की आवश्यकता होती है। हम ब्लॉगरों पर भी तकनीक के ढेरों उपकार हैं, बिना तकनीक तो हम व्यक्त भी नहीं थे। तकनीक जितनी व्यवधान रहित होगी, अभिव्यक्ति की पहुँच भी उतनी ही विस्तृत होगी। ब्लॉग न केवल तकनीकी, वरन सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक संवादों में अपनी उपस्थिति बनाने लगा है। जो यात्रा एक प्रयोग के माध्यम से प्रारम्भ हुयी थी, उसे आज एक पूर्णकालिक माध्यम की पहचान मिल चुकी है।

यह आयोजन भले ही किसी के द्वारा अपनी बात कहने का व्यावसायिक प्रयास हो, पर एक संकेत स्पष्ट रूप से देता है कि ब्लॉगिंग को एक माध्यम के रूप में स्वीकार और उसका आधार निर्माण करने का समय आ गया है। जहाँ यह हम सबके लिये प्रसन्नता का विषय है कि हमें भी अभिव्यक्ति का श्रेय मिलना प्रारम्भ हो चुका है, साथ ही साथ यह हमारे ऊपर एक उत्तरदायित्व का बोध भी है जो हमें इस माध्यम की गुणवत्ता बढ़ाने की ओर प्रेरित करता है।

भविष्य का निश्चित स्वरूप क्या होगा, किसे पता? हमें तो राह का आनन्द ही भाता है, हमें बस चलना ही तो आता है।

24.10.12

लैपटॉप या टैबलेट - तकनीकी पक्ष

जीवन में लैपटॉप की आवश्यकता सबसे पहले तब लगी थी, जब कार्यालय और घर के डेस्कटॉपों पर पेनड्राइव के माध्यम से डाटा स्थानान्तरित करते करते पक गया था। लैपटॉप आने से दोनों डेस्कटॉप मेरे लिये अतिरिक्त हो गये। लैपटॉप की और छोटे होने की चाह बनती ही रही, कारण रहा, उस १५.६ इंच के लैपटॉप को ट्रेन यात्रा और कार यात्रा के समय अधिकतम उपयोग न कर पाने की विवशता। १२ सेल की बैटरी के साथ लगभग ४ किलो का उपकरण सहजता से यात्रा में उपयोगी नहीं हो सकता था। बैठकों में भी १५.६ इंच का लैपटॉप अपने सामने रखना अटपटा सा लगता था, लगता था कि कोई और व्यक्ति सामने आकर बैठ गया हो। अन्ततः वह लैपटॉप दो डेस्कटॉपों के स्थानापन्न के रूप में बना रहा।

मेरी यह चाह संभवतः तकनीक की भी राह रही, बहुतों को यही समस्या रही होगी, बहुत लोग लैपटॉप का उपयोग और अधिक स्थानों पर करना चाहते होंगे। १० इंच की छोटी स्क्रीन की ढेरों नेटबुक बाजार में आयीं, पर बाधित और सीमित क्षमता के कारण अपना समुचित स्थान नहीं बना पायीं। लैपटॉप की क्षमता एक मानक बन चुकी थी और कोई उससे कम पर सहमत भी नहीं था। १३ इंच के कई लैपट़ॉप बड़ी संभावना लेकर आये, पर उसमें भी भार अधिक कम नहीं हुआ, हाँ छोटी स्क्रीन पर अधिक न समेट पाने के कारण कार्य करने पर आँखों को बड़ा कष्ट सा होता रहा। जूम करना, विण्डो बदलना आदि ढेर सारे कार्य करने के लिये माउस से हैण्डल ढूढ़ना बड़ा कष्टकर कार्य हो जाता था।

तकनीक अपने रास्ते ढूढ़ ही लेती है। हार्डड्राइव, बैटरी, चिप, स्क्रीन आदि क्षेत्रों में गजब का विकास हुआ और जो उत्पाद सामने आया, उनका नामकरण अल्ट्राबुक्स हुआ। मैकबुक एयर की डिजायन एक मानक बन गयी, जिस पर अन्य मॉडल आधारित होने लगे। ११.६ और १३ इंच की स्क्रीन, वजन १.० और १.३ किलो। इससे हल्के लैपटॉप पहले कभी नहीं बने थे। उन्हे तो चलते चलते भी उपयोग में लाया जा सकता है, एक हाथ से उठा कर दूसरे हाथ से टाइप किया जा सकता है।

लैपटॉप में टचपैड ने माउस का प्रयोग लगभग समाप्त ही कर दिया था, पर उपयोग की दृष्टि से टचपैड का स्क्रीन पर पूर्ण नियन्त्रण उसके बड़े होने और बहुआयामी कार्य करने से आया। पिंच जूम, सरकाना, पलटना, पिछले पृष्ठ पर जाना, नयी विण्डो खोलना आदि टचपैड से होने लगा, स्क्रीन का सारा नियन्त्रण विधिवत रूप से ऊँगलियों से ही होने लगा। इसका सीधा प्रभाव यह पड़ा कि ११.६ इंच की छोटी स्क्रीन भी गतिशील और बड़ी लगने लगी।

स्क्रीन को छोटा और भार को कम करने में भौतिक कीबोर्ड एक बाधा था, जगह घेरता था और भारी होता था। उन्हे हटा कर स्क्रीन में ही छूकर कार्य करने की तकनीक ने टैबलेट को जन्म दिया। १० इंच का टैबलेट पर्याप्त लगा, सारे कार्य निपटाने में। इस प्रयास में भार और आकार तो कम हो गया पर दो विकार अनचाहे ही आ गये। एक तो ओएस अपनी पूर्ण क्षमता से रहित हो गया और दूसरा स्क्रीन का आकार कीपैड के कारण और सीमित हो गया। १० इंच का टैबलेट ६०० ग्राम के आसपास सिमट आया, कहीं भी ले जाने के लिये सुविधाजनक।

श्रीमतीजी के आईपैड में कई बार प्रयास किया कि कम से कम एक पोस्ट के बराबर लेखन करें। कीपैड के माध्यम से टाइप करने से न तो वह गति आयी और न ही वह सहजता जो मेकबुक एयर के चिकलेट कीबोर्ड से मिलती है। संभवतः ऊँगलियाँ इस तरह टाइप करने की अभ्यस्त ही नहीं हैं। एक अलग भौतिक कीबोर्ड लेने से और टैबलेट की स्क्रीन को बचाने का कवर लेने से, टैबलेट का भार और आकार लगभग मैकबुक एयर के बराबर ही हो जाता है, सम्हालने में मैकबुक एयर से कहीं अधिक कठिनाई के साथ। मैकबुक एयर बन्द करते ही पूरी तरह सुरक्षित हो जाती है।

यही कारण रहे कि हमने मैकबुक एयर को आईपैड के ऊपर चुना, पूरी क्षमता और सबसे हल्का। चर्चा में है कि बाजार में विण्डोज ८ पर आधारित टैबलेट आने वाला है, उसमें लैपटॉप की क्षमता रहेगी। ऐसे टैबलेट का भार और आकार निश्चय ही उत्सुकता का विषय रहेगा। बहुत लोग जो अधिक लेखन आदि नहीं करते हैं, उनके लिये हल्के टैबलेट बड़े लाभदायक हो सकते हैं, पर मेरे लिये लैपटॉप से अधिक उपयोगी कुछ भी नहीं है। मैकबुक एयर के रूप में सर्वश्रेष्ठ लैपटॉप का अनुभव अत्यन्त संतुष्टिपूर्ण रहा है। श्रीमतीजी अपने आईपैड से अत्यन्त प्रसन्न हैं, उनकी आवश्यकता के लिये टैबलेट ही सर्वोत्तम है।

यदि टैबलेट के विषय में कोई एक पक्ष है जो सर्वाधिक सशक्त लगता है, तो वह है इसकी बैटरी। लगभग दुगना समय टैबलेट चलता है। अधिक क्षमता के यन्त्र अधिक ऊर्जा लेते हैं, यही कारण है कि हमें अधिक ऊर्जा खपानी पड़ती है। लैपटॉप आधारित उपकरणों पर जीवन बीतने से टैबलेट थोड़ा सकुचाया सा दिखता है, पर कुछ एक कार्यों को छोड़ दें तो टैबलेट लैपटॉप के सारे कार्य कर सकता है। घर में यदि एक लैपटॉप है तो अन्य लोग टैबलेट से काम चला सकते हैं। टैबलेट लैपटॉप की तुलना में अधिक सस्ता भी होता है। यदि एक घर के सारे उपकरणों को एक पारितन्त्र के रूप में कार्य करते हुये समझें तो, एक लैपटॉप का पहले से होना टैबलेट के लिये मार्ग प्रशस्त करता है।

मोबाइल के दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो अधिक शक्तिशाली मोबाइल टैबलेट के ढेरों कार्य कर सकता है, पर आकार छोटा होने के कारण वही कार्य करने में उतनी सहजता नहीं आ पाती है। कार में जाते समय या रसहीन बैठकों में बैठे हुये मोबाइल से न जाने कितने कार्य हो जाते हैं। यह मानकर चलता हूँ कि कोई याद आयी पंक्ति या विचार छूट न जाये और एक भी पल व्यर्थ न जाये, मोबाइल इन दोनों स्थितियों में उत्पादकता बनाये रखता है। आईक्लाउड के माध्यम से प्रयासों में सततता भी बनी रहती है।

अनुभव और तकनीक के आधार पर मैकबुक एयर और आईफोन की जोड़ी मेरे लिये पर्याप्त है और उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही है। अब इन दो उपकरणों के आधार पर कार्यशैली और जीवनशैली किस प्रकार विकसित हो रही, यह अगली पोस्ट का विषय रहेगा।