7.8.22

धर बल, अगले पल चल जीवन


शत पग, रत पग, हत पग जीवन,  

धर बल, अगले पल चल जीवन।


रथ रहे रुके, पथ रहे बद्ध

प्रारम्भ, अन्त से दूर मध्य,

सब जल स्वाहा, बस धूम्र लब्ध,

निश्चेष्ट सहे, क्या करे मनन,

धर बल, अगले पल चल जीवन।


बनकर पसरा वह बली स्वप्न,

चुप चर्म चढ़ा, बन गया मर्म,

सब सुख अवलम्बन गढ़े छद्म,

मन मुक्ति चहे, पोषित बंधन,

धर बल, अगले पल चल जीवन।


ऋण रहा पूर्ण, हर घट रीता,

श्रमसाध्य सकल, उपक्रम बीता,

मन सतत प्रश्न, तब क्या जीता,

भय भ्रमित अनन्तर उत्पीड़न,

धर बल, अगले पल चल जीवन।


जो है प्रवर्त, क्षण प्राप्त वही,

तन मन गतिमयता व्याप्त अभी,

गति ऊर्ध्व अधो अनुपात सधी,

आगत श्वासों का आलम्बन,

धर बल, अगले पल चल जीवन।

16 comments:

  1. Anonymous7/8/22 08:41

    अप्रतिम
    लयात्मक
    🙏🙏

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  2. जो है प्रवर्त, क्षण प्राप्त वही,

    तन मन गतिमयता व्याप्त अभी,

    गति ऊर्ध्व अधो अनुपात सधी,

    आगत श्वासों का आलम्बन,

    धर बल, अगले पल चल जीवन।

    बस यही तो जीवन है ...... बहुत सुन्दर रचना .

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    1. बहुत आभार आपका संगीताजी

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 08 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  4. वाह, लयबद्ध
    आनंद आ गया!

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  5. ऋण रहा पूर्ण, हर घट रीता,
    श्रमसाध्य सकल, उपक्रम बीता,
    मन सतत प्रश्न, तब क्या जीता,
    भय भ्रमित अनन्तर उत्पीड़न,
    धर बल, अगले पल चल जीवन।
    ----
    अति सुंदर सराहनीय सृजन सर।
    सादर।

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  6. बेहद सुंदर सृजन

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  7. वाह प्रवीण जी मजा आ गया। सुंदर कविता।

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  8. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण लय बद्ध अभिव्यक्ति प्रवीण जी।🙏🙏

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  9. Usha kiran8/8/22 22:25

    वाह…बहुत खूब

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  10. जो है प्रवर्त, क्षण प्राप्त वही,

    तन मन गतिमयता व्याप्त अभी,

    गति ऊर्ध्व अधो अनुपात सधी,

    आगत श्वासों का आलम्बन,

    धर बल, अगले पल चल जीवन।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  11. बहुत सुन्दर

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  12. बस झेल और चल, यही हो रहा है। यही होता रहेगा। कालजयी कुछ नहीं बन पायेगा, क्योंकि मतों, विचारों, पंथों, परिवारों, समाजों, व्यक्तियों का स्वयं से हो रहा संघर्ष मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने दे रहा। इसीलिये धर बल आत्मबल यहीं और चल नियम-कानून के तहत बन नागरिक जैसे तंत्र कर रहा है वही उचित है। वाह रे! धन्य देशी-विदेशी तंत्र।

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  13. Anonymous18/1/24 08:58

    अपने शक्तिनुसार परिश्रम करने पर भी जब कुछ हासिल नही होता तो ये प्रश्न तो उठता ही है कि आखिर हमने क्या पाया ?

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