21.8.21

व्यक्त कर उद्गार मन के


व्यक्त कर उद्गार मन के,

क्यों खड़ा है मूक बन के ।

 

व्यथा के आगार हों जब,

सुखों के आलाप क्यों तब,

नहीं जीवन की मधुरता को विकट विषधर बना ले ।

व्यक्त कर उद्गार मन के ।।१।।

 

चलो कुछ पल चल सको पर,

घिसटना तुम नहीं पल भर,

समय की स्पष्ट थापों को अमिट दर्शन बना ले ।

व्यक्त कर उद्गार मन के ।।२।।

 

तोड़ दे तू बन्धनों को,

छोड़ दे आश्रित क्षणों को,

खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे ।

व्यक्त कर उद्गार मन के ।।३।।

 

यहाँ दुविधा जी रही है,

व्यर्थ की ऊष्मा भरी है,

अगर अन्तः चाहता है, उसे खुल कर चीखने दे ।

व्यक्त कर उद्गार मन के ।।४।।

14 comments:

  1. अवसाद से मुक्ति का यही उपाय है।
    बहुत बढ़िया

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  2. मन के उद्गार व्यक्त होने ही चाहिए!! सुन्दर रचना

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    1. व्यक्त करना ही श्रेयस्कर है। आभार आपका।

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  3. अत्यंत प्रेरणादायक रचना.. प्रणाम सर 🙏

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  4. प्रेरणादायक

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  5. बहुत सुंदर रचना,मन के उदृगार व्यक्त करे और खुल कर
    जीये, सुंदर संदेश दिये हैं

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    1. जी सच कहा आपने। यही जीने का सफल उपाय है। आभार आपका।

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  6. तोड़ दे तू बन्धनों को,

    छोड़ दे आश्रित क्षणों को,

    खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे ।

    व्यक्त कर उद्गार मन के ।।३।। बहुत सुंदर सकारात्मक और प्रेरणा देती रचना ।

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