28.8.21

आशा के शत दीप जले

 

न जाने किस राह चला जग, कातरता व्यापी चहुँ ओर,

अब मानवता रहे संशकित, अब पशुता का चलता जोर ।


शील, धैर्य, सज्जनता, श्रम, सब आदर्शों की गाली हैं,

जिनके पेड़ों पर रुपया है, बस वही आज वनमाली हैं ।


मानवता सिमटी क्षुब्धमना, नित दानवता उत्पातों से,

जन थकता छिपता दीन हीन, नित निशाचरी आघातों से ।


जो हैं समाज के शीर्षबिन्दु, जो मानवता के त्राता हैं,

बिन पिये चढ़े गर्वित मद में, बन बैठे वंद्य विधाता हैं ।


आश्रित तुम पर दुखियारे जो, उनके घर में देखो जाकर,

जो बिता रहे पूरा जीवन, तन ढकने का कपड़ा पाकर ।


तुम उसी राजसी सूट-बूट में, मद-मतवाले फिरते हो,

मानवता का दायित्व लिये, कुत्सित कर्मों में गिरते हो ।


भोली जनता को बहलाते, बस अपना स्वार्थ निभाते हो,

कब आकर इनकी सुध लेते, कब आकर इन्हें बचाते हो?


ये तेरे है, तुम इनके हो, इनमें तुममें कोई भेद नहीं,

बस राह मिलेगी अन्तहीन, हो गया किन्तु विच्छेद कहीं ।


सब यही चाहते देश बढ़े, उन्नति के विकसित पंथ चले,

यदि निशा पसारे तम अपार, तब आशा के शत दीप जले।


18 comments:

  1. शुद्ध हिंदी कविता 🙏

    जिनके पेडों पर रुपया है वही आज वनमाली है । सत्य यही है

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    1. बहुत आभार आपका धीरू भाई।

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  2. कितने सारे विचारों को प्रस्तुत किया है आपने ,किंतु सार यही है ,कितना ही घनघोर अँधेरा हो सुबह का सूरज नियत समय पर उग आता है | सार्थक कविता !!

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    1. कैसा भी समय हो आशायें दूसरे छोर पर खड़ी मिलती हैं। आभार आपका।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 29 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत धन्यवाद आपका। आपके लिंक पर स्थान पाना सम्मान का विषय है।

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  4. वाह बेहतरीन सृजन चिंतन दर्शन से ओतप्रोत

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  5. यथार्थ का चित्रण करती चिंतनपूर्ण उत्कृष्ट रचना ।

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  6. अब सच में आमूल क्रांति की आवश्यकता है । अति सुन्दर कृति ।

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  7. सब यही चाहते देश बढ़े, उन्नति के विकसित पंथ चले,

    यदि निशा पसारे तम अपार, तब आशा के शत दीप जले।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,प्रवीण भाई।

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  8. अत्यंत सकारात्मकता से परिपूर्ण आह्वान।
    बेहद सुंदर अभिव्यक्ति सर।
    प्रणाम
    सादर।

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  9. स्वार्थलोलुपता से भरे इस जग में अभी भी आशा की किरणें फैलानेवाले लोग हैं जो चाहते हैं कि देश बचे, देश बढ़े। परंतु अधिकतर तो भेड़ की खाल में छिपे भेड़िए ही हैं जिनकी करतूतों को यह रचना उजागर भी करती है और अंत में सार्थक संदेश देती हुईं सुंदर पंक्तियाँ -

    ये तेरे है, तुम इनके हो, इनमें तुममें कोई भेद नहीं,
    बस राह मिलेगी अन्तहीन, हो गया किन्तु विच्छेद कहीं ।

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    1. जिनके ऊपर उत्तरदायित्व है वे भी पुण्य का भोग कर जीवन काट लेते हैं। आभार आपका मीनाजी।

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