26.6.21

जन्म अयोध्या पाते राम

 

आकांक्षा बन आते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम।


दशरथ नृप हितरत कर्मलीन,

पालित जन सुतवत सुख नवीन,

हा! रहे स्वयं पर पुत्रहीन,

हा! आगत क्या आश्रय विहीन?

रामराज्य उत्कर्ष निभाने, दशरथ के घर आते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।१।।


कौशल्या का रहा व्यस्त मन,

जगें राम, जागें सुख के क्षण,

प्रमुदित दिनभर निशा विगतश्रम,

मन्थर गति बढ़ता पालन क्रम,

मन्त्रमुग्ध माँ कौशल्या को, ठुमुक ठुमुक हरषाते राम।

जन्म अयोध्या पाते राम ।।२।।


काकभुसुण्डि बने छत प्रस्तर,

युगों प्रतीक्षा, भजन निरन्तर,

एक दृश्य बस पूर्ण हृदय भर,

विहग बाँह दौड़ें करुणाकर,

अथक चक्र, तकते आनन्दित, जब जब धरती आते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।३।।


विश्वामित्र हृदय नित चिन्तन, 

मख, भविष्य का सुनते क्रन्दन,

अस्त्र शस्त्र कर किसको अर्पण, 

बन पाये जो असुर निकन्दन,

अनुज सहित निर्भय तत्पर हो, गाधिपुत्र-पथ जाते राम, 

जन्म अयोध्या पाते राम ।।४।।


गौतम नारी, छलित अहल्या,

त्यक्त और अभिशप्त दंश पा,

एकल पथ पर चले विपथगा,

नयन काष्ठवत, दृश्य द्वार का,

युगों रही शापित जड़वत जो, दुर्लभ मुक्ति दिलाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।५।।


जनक चित्त झकझोरे चिन्ता,

वीरहीन जग, करी प्रतिज्ञा,

बिटिया के सम, वरण उसी का,

ताने शिवसायक प्रत्यन्चा,  

जनकसुता आश्रय, कर गहने, हर्षित मिथिला जाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।६।।


कैकेयी के दो वर घातक,

निर्गत किस मति शब्द विनाशक,

दशरथ ध्वस्त पड़े पीड़ांतक,

रीति रहे या प्रीति प्रकाशक, 

वन जाने को प्रस्तुत होते, रघुकुल मान बढ़ाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।७।।


हा! निषाद मन दुख अपार यह,

विकट काल निर्मम प्रहार यह,

वन कष्टों को किस प्रकार सह,

रहे उमड़ता दुर्विचार यह,

चित्रकूट तक साथ लिवाते, जाते गले लगाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।८।।


भरत विदग्ध, नहीं बस में मन,

आत्मग्लानि लज्जा सम्मुख जन,

पिता स्वर्ग में, राम गये वन,

माता, यह सब तब किस कारण,

चित्रकूट स्थिर कर देते, भरत सहज समझाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।९।।


शबरी देखे प्रेम पगी सी,

दृष्टि राममुख, मुग्ध खगी सी,

सुख सागर के तट ठिठकी सी,

क्या न भर लूँ, रही ठगी सी,

जूठें बेर हाथ ले खाते, शेष विश्व बिसराते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।१०।।


हनुमत हृदय धरे करुणाकर,

कब से करें प्रतीक्षा पथ पर,

स्वामी हित नित विकट रूप धर,

शत्रु पक्ष बरसे प्रलयंकर,

हेतु सेतु आश्वासित सीता, सुत हनुमत अपनाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।११।।


बालि अनुज सुग्रीव प्रताड़ित,

राज, मान, भार्या, हित वंचित,

भागे, नापे विश्व चतुर्दिक,

ऋष्यमूक पर रहे सुरक्षित,

मित्रधर्म के मानक रचते, अपहृत सकल दिलाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।१२।।


व्यथित विभीषण, भ्राता मदमत,

नहीं कहीं कुछ भी विधि सम्मत,

दुर्मति सियाहरण अति विकृत,

अपमानित हत, प्रनतपाल नत,

सौंप विजित साम्राज्य विभीषण, धर्म ध्वजा फहराते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।१३।।


रावण भीषण, प्रकट दम्भ था,

पथ अधर्मगत, बल प्रचण्ड पा,

आर्त उच्चरित, करुण क्रन्द हा!

त्रास हरे भय विकल वृन्द का,

अधम पतित गर्वित मुण्डों पर, विशिख वृष्टि बरसाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।१४।।


माता बैठी सगुन मनावे,

काग बतावे, सुत-सुधि लावे,

वर्ष चतुर्दश प्यास बुझावे,

सोहति मूरति अँखियन आवे,

सब मन साधे, सबहिं विराजे, अवधपुरी आ जाते राम,

जन्म अयोध्या पाते राम ।।१५।।


8 comments:

  1. अहा !मेरो मन राम ही राम रटे !!राम भक्ति और झरती निर्झरणी !!बहुत सुन्दर उदगार ह्रदय के !

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    1. राम का जीवन स्वयं में ही काव्य है और वही फल उत्प्रेरित भी करता है। आभार आपका।

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  2. अद्यभूत वर्णन ,सादर नमन

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  3. रामायण के सारे पात्र आंखों के सामने आ गए।
    बहुत सुंदर रचना।

    मेरे नए ब्लॉग पर इस बार की पोस्ट साहित्यिक रचना से सम्बंधित हैं पुलिस के सिपाही से by पाश

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    1. आभार आपका रोहितासजी।

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  4. प्रवीण जी, इतनी सुंदर शब्दावलियों से सज्जित और मेरे आराध्य भगवान राम के बारे में रचित ये रचना पढ़ मन बागबाग हो गया,मैं भी आजकल रामचरितमानस के प्रसंगों पर कुछ छंद लिखने की कोशिश कर रही हूँ।आपकी रचना और प्रेरणा दे गयी,बहुत आभार आपका।

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    1. आपकी रचनायें अवश्य पढ़ना चाहूँँगा। नवसृजन की शुभकामनायें। बहुत आभार।

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