19.6.21

चला भगवन पंथ तेरे

 

आज प्रभु जब निकट कुछ तेरे बढ़ा मैं,

मोह बन्धन जगत के दृढ़ खींचते हैं ।

पूछता मन प्रश्न बारम्बार निर्मम,

क्या कहूँ, जब नहीं उत्तर सूझते हैं ।।१।।

 

नहीं चाहूँ, जटिल मति के, कुटिल जग के,

तर्क अगणित बन विषों के बाण आते ।

कभी मैं बचता तुम्हारी प्रेरणा से,

किन्तु बहुधा वेदना बन समा जाते ।।२।।

 

किन्तु सुख अनुभव किया जो,

चरण में भगवन तुम्हारे ।

शब्द की अभिव्यक्ति के बिन,

छिपा रहता हृद हमारे ।।३।।

 

दर्श अदर्शन, लुप्त प्राय मति,

प्रेम-पुन्ज नवपंथ दिखा दो ।

स्थित हो जब सबमें प्रियतम,

द्वेषी जग से हृदय बचा लो ।।४।।

 

कुशल भगवन, सर्वहित प्रेरक बने हो,

तम हृदय में, प्रेम के दीपक जला दो ।

तव प्रतिष्ठा अनवरत होवे प्रचारित,

भावरस में ज्ञानपूरित स्वर मिला दो ।।५।।

22 comments:

  1. चल मन नाद से अनहद की ओर ! अंतर्मन की भावप्रबल शब्दाभिव्यक्ति !!

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    1. थम जाता मन, जब अन्तरतम थाप सुनायी पड़ती है।

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  2. आपकी लिखी  रचना  सोमवार 21  जून   2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

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    1. बहुत आभार आपका संगीताजी। आपने जिस प्रकार प्रथम से वर्तमान को जोड़ दिया है, पूरे अस्तित्व को स्मृतियों में डुबो डाला। हृदय से कोटि कोटि आभार।

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  3. दर्श अदर्शन, लुप्त प्राय मति,
    प्रेम-पुन्ज नवपंथ दिखा दो ।
    स्थित हो जब सबमें प्रियतम,
    द्वेषी जग से हृदय बचा लो ।।४।।
    बहुत सुन्दर प्रार्थना 🙏

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  4. बहुत सुंदर प्रार्थना

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    1. बहुत आभार आपका अनुराधाजी

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  5. आज प्रभु जब निकट कुछ तेरे बढ़ा मैं,
    मोह बन्धन जगत के दृढ़ खींचते हैं ।
    पूछता मन प्रश्न बारम्बार निर्मम,
    क्या कहूँ, जब नहीं उत्तर सूझते हैं ।
    सांसारिक मोह को त्यागना इतना भी आसान कहाँ
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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    1. जकड़े पकड़े यह मोहजाल। आभार सुधाजी।

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  6. अंतर्मन की पवित्र ज्योति जब जल जाए जीव जगत की मूढ़ता का भान कर मन विकल तक मुक्तिपथ पर चल जाए।
    अति सुंदर और सारगर्भित प्रार्थना।
    सादर।

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    1. कब ज्योति जले, मन मगन पले।

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  7. बहुत सुंदर पावन भाव लिए अभिनव सृजन।

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  8. दर्श अदर्शन, लुप्त प्राय मति,

    प्रेम-पुन्ज नवपंथ दिखा दो ।

    स्थित हो जब सबमें प्रियतम,

    द्वेषी जग से हृदय बचा लो ।।४।।

    बहुत सुंदर शब्दों में प्रार्थना की है । आज कुछ ज्यादा ही लोगों के हृदय में मनोमालिन्य बढ रहा है । मेरी भी प्रार्थना आपके शब्दों में शामिल है ।

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    1. आपका बहुत आभार। सामर्थ्य के आगे तो बस प्रार्थना ही की जा सकती है।

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  9. द्वेषी जग से हृदय बचा लो, भावमय करते शब्द .. बहुत ही अच्छी प्रार्थना ...

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  10. बहुत सुन्दर शब्दों से सजी रचना.

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    1. बहुत धन्यवाद शिखाजी। आपके पोडकास्ट अत्यन्त रोचक लगे।

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  11. कुशल भगवन, सर्वहित प्रेरक बने हो,
    तम हृदय में, प्रेम के दीपक जला दो ।
    तव प्रतिष्ठा अनवरत होवे प्रचारित,
    भावरस में ज्ञानपूरित स्वर मिला दो ...एक सुंदर प्रार्थना ,हर एक मनुज के लिए सच्ची और सुंदर।

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    1. आभार आपका जिज्ञासाजी।

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