17.4.16

गन्तव्य

जीवन की अनचीन्ही राहें,
पार किये कितने चौराहे
फिर भी जाने क्यों उलझन में,
मैं पंछी अनभिज्ञ दिशा से ।।१।।

रोचक है, हर राह नयी जो,
उत्सुकता की बहती धारा
किन्तु सदा ही मौन प्रश्न पर,
पूछो क्या गन्तव्य हमारा ।।२।।


3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-04-2016) को "वामअंग फरकन लगे " (चर्चा अंक-2316) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. पूछो क्या गन्तव्य हमारा......। छोटी सी कविता में इतनी बडी बात।

    देर से ही सही आपको जन्मदिन की बहुत शुभ कामनाएँ।

    ReplyDelete