14.2.16

भौतिक प्यास

उतर गया गहरी पर्तों में,
जीवन का चीत्कार उमड़ कर ।
गूँज गया मन में कोलाहल,
हिले तन्तु अनुनादित होकर ।।१।।

स्वार्थ पूर्ति के शब्द तुम्हारे,
गर्म द्रव्य बन उतर गये हैं ।
शंकातृप्त तुम्हारी आँखें,
मेरे मन को अकुलातीं हैं ।।२।।

देखो भौतिक प्यास तुम्हारी,
जीवन का रस ले डूबी है ।
फिर भी तेरा स्वप्न कक्ष,
जाने कब से एकान्त लग रहा ।।३।।

व्यर्थ तुम्हारे इस चिन्तन ने,
जीवन का सौन्दर्य मिटाया ।
आओ मिलकर इस जीवन मे,
सुख का सुन्दर स्रोत ढूढ़ लें ।।४।।

10 comments:

  1. सुंदर रचना |भौतिक प्यास के चक्कर में लाईफ अनबैलेंस हो जाती हैं |
    मातृत्व की तैयारी

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  2. अलौकिक प्यास से सन्तुलन बनेगा।

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  3. भाव पूर्ण ... सुन्दरता को तलाशती रचना ...

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  4. सच है अतृप्त भौतिक प्यास के पीछे भागते हुए हम जीवन आनंद से कितना दूर हो जाते हैं। बहुत सुन्दर और मनभावन प्रस्तुति...

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  5. सच है अतृप्त भौतिक प्यास के पीछे भागते हुए हम जीवन आनंद से कितना दूर हो जाते हैं। बहुत सुन्दर और मनभावन प्रस्तुति...

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  6. behad bhavpurn hai sundar prastuti

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  7. मन तो हमेशा अतृप्त है ,संतोष ही इसका समाधान है --सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. बहुत ही सुन्‍दर कविता प्रवीण जी। बधाई आपको।

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  9. सुन्दर पंक्तियां ....

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