होंठ कपते लाज मारे, किन्तु आँखों के सहारे,
पूछती कुछ प्रश्न और अध्याय कहती प्रेम के ।।१।।
हठी मन के भाव सारे, सौंप बैठे बिन विचारे,
हृदय के सब स्वप्न तेरी झील आँखों में दिखें ।।२।।
समूचा अस्तित्व हारे, पा तुम्हारे नयन प्यारे,
द्रवित हूँ, उन्माद में मन, बहा जाता बिन रुके ।।३।।
पूछती कुछ प्रश्न और अध्याय कहती प्रेम के ।।१।।
हठी मन के भाव सारे, सौंप बैठे बिन विचारे,
हृदय के सब स्वप्न तेरी झील आँखों में दिखें ।।२।।
समूचा अस्तित्व हारे, पा तुम्हारे नयन प्यारे,
द्रवित हूँ, उन्माद में मन, बहा जाता बिन रुके ।।३।।
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बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteनयनों की तो बात ही कुछ और है । दिल के मैखाने में उमड़ते प्रेम की मदिरा पिलाते नयनों के प्याले बरबस ही उन्मादित कर देते हैं ।
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