27.9.15

वाक्य गूँजता

हर रात के बाद,
बरसात के बाद,
दिन उभरेगा,
तिमिर छटेगा,
फूल रंग में इठलायेंगे,
कर्षण पूरा, मन भायेंगे,
पैर बँधे ढेरों झंझावत,
पग टूटेंगे, रहे रुद्ध पथ,
बरसायेंगे शब्द क्रूरतम,
बहुविधि उखड़ेगा जीवनक्रम,
दिन की भेंट निगल जाने को,
संभावित गति हथियाने को,
यत्न पूर्णतः कर डालेंगे,
संशय भरसक भर डालेंगे,
खींच खींच कर उन बातों में,
अँधियारी काली रातों में,
ले जाने को फिर आयेंगे,
रह रह तुमको उकसायेंगे।

निर्मम हो एक साँस पूर्ण सी भर लो मन में,
जीवन का आवेश चढ़ाकर, भर लो तन में,
गूँजे भर भर, सतत एक स्वर दिग दिगन्त में,
नहीं दैन्यता और पलायन, इस जीवन में ।

8 comments:

  1. अंतिम बन्द बेमिसाल।

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  2. अंतिम बन्द बेमिसाल।

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  3. गूँजे भर भर, सतत एक स्वर दिग दिगन्त में,
    नहीं दैन्यता और पलायन, इस जीवन में ।.. लाजवाब सृजन

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-09-2015) को "बढ़ते पंडाल घटती श्रद्धा" (चर्चा अंक-2112) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    अनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. किन्तु पलायन तो सर्वत्र व्यापत है आज।

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