15.3.15

आये तुम

स्वप्न देखने का जीवन में, साहस तो कर बैठे थे ।
आये तुम, पीछे पीछे, देखो स्वप्न और आ जायेंगे ।।१।।

कठिन परिस्थियों में भी, एक किरण दिखी थी आशा की ।
आये तुम, अब हम कष्टों को भी आँख दिखाते जायेंगे ।।२।।

भीड़ भरे आहातों के एक कोने में चुपचाप खड़े ।
आये तुम, मन की बात आज दीवारों से चिल्लायेंगे ।।३।।

सुन्दरतम की बाट जोहते, अब तक जगते रहते थे हम ।
आये तुम, लाये गोद सुखद, हम चुपके से सो जायेंगे ।।४।।

11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-03-2015) को "जाड़ा कब तक है..." (चर्चा अंक - 1919) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Poem with a feel of fulfilment.

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  3. Poem with a feel of fulfilment.

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  4. बहुत ही शानदार
    भला मन की व्यथा भला मीत से ज्यादा और कौन जाने

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  5. कितने गहन भाव हैँ। आये प्रभु मोरे मंदिरवा।

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  6. सुखद गोद में चुपके से सो जाना!!!!!!

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  7. बस एक उस 'तुम' से ही तो ज़िन्दगी है!

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  8. बहुत ही शानदार कविता।

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  9. भीड़भरे अहातों के कोने वाकई

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