22.2.15

आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है

अकेला उन्मुक्त उड़ना चाहता था,
मेघ सा विस्तृत उमड़ना चाहता था,
स्वतः प्रेरित, दूसरों के अनुभवों को,
स्वयं के अनुरूप गढ़ना चाहता था ।
किन्तु मन किस ओर बढ़ता जा रहा है,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । १।

नहीं निर्भरता कभी मैं चाहता था,
मुक्त था मैं, मुक्त रहना चाहता था,
शूल सा चुभता हृदय में तीव्रता से,
यदि कहीं कोई कभी भी बाँधता था।
किन्तु अब तो बँधे रहना भा रहा है,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । २।

आत्म-केन्द्रित, स्वयं को पहचानता था,
स्वयं में सीमित जगत मैं मानता था,
आत्म के अस्तित्व को सहजे समेटे,
भीड़ से मैं दूर कोसों भागता था ।
हृदय को पर्याय मिलता जा रहा है,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । ३।

व्याप्त नीरवता, किन्तु मैं जागता था,
हृदय में एक धधकता अंगार सा था,
सतत अपने लक्ष्य पर कर दिशा मन की,
मैं अकेला समय के संग भागता था ।
किन्तु अब क्या स्वप्न में बहका रहा है,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । ४।

स्वार्थ-कोलाहल निहित हर वाक्य में था,
नहीं कुछ भी व्यक्त करता क्रम हृदय का,
अचम्भी स्तब्धता मन छा गयी जब,
शब्द स्थिर, रिक्त मन अनुभाव से था ।
प्रेम अब अभिव्यक्ति बनकर गा रहा है,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । ५।

किन्तु मन में ज्योति टिमटिम जल रही थी,
शान्त श्रद्धा जीवनी में बढ़ रही थी,
चिर प्रतीक्षित भावना से तृप्त करती,
लिपटती, बन बेल हृद में चढ़ रही थी ।
नेत्र में आनन्द सा उतरा रहा है,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । ६।

थका मन अब छाँह का सुख पा रहा है,
भावना में डूबना फिर भा रहा है,
मुझे कल की वेदना से मुक्त कर दो,
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है । ७।

18 comments:

  1. A poem with wonderful aesthetic feel, fidelity and faith!

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  2. A poem with wonderful aesthetic feel, fidelity and faith!

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  3. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-02-2015) को "महकें सदा चाहत के फूल" (चर्चा अंक-1898) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. Anupam bhvon ka sangam hai is abhivykti me

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  5. Anupam bhvon ka sangam hai is abhivykti me

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  6. Anupam bhvon ka sangam hai is abhivykti me

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  7. सुन्‍दर, मधुरतापूर्ण कविता। अत्‍यन्‍त उन्‍मुक्‍त करते भाव।

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को
    आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है; चर्चा मंच 1900
    पर भी है ।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!

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  9. अत्यंत मधुर एवं अनुरागपूर्ण अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !

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  10. ज्यों गूँगो मीठे फल को रस अंतरगत ही भावै !

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  11. प्रियतम की तरह ही मधुर कविता।

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  12. अनुरागपूर्ण अभिव्यक्ति

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  13. प्रेम की सहज काव्यात्मक अभिव्यक्ति

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  14. प्रिय का एहसास की अद्भूत काव्यात्मक अभिव्यक्ति !
    मैं भी ब्रह्माण्ड का महत्वपूर्ण अंग हूँ l

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  15. वसन्त ऋतु के आगमन पर भाव विभोर होना स्वाभाविक है।

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  16. बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति।

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