29.11.14

आँखों के अभिवादन

लाख चाहकर, बात हृदय की, कहने से हम रह जाते है 
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।

बहुत चित्रकारों ने सोचा, सुन्दर तेरे चित्र बनाये ,
तेरी आँखों की चंचलता, रंगों से लाकर छिटकायें ।
किन्तु कहाँ, कब रंग मिले थे,
कहीं सभी भंडार छिपे थे,
आवश्यक वे रंग तुम्हारी आँखों में पाये जाते हैं ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।

बहा चलूँ निश्चिन्त, अशंकित, नयनों की सौन्दर्य-धार में,
आकर्षण के द्यूत क्षेत्र में, निज जीवन को सहज हार मैं ।
आशायें टिकती हैं आकर,
आँखें तेरी खुली रहें पर,
सारे जो आधार, तुम्हारे बन्द नयन में छिप जाते हैं ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।

11 comments:

  1. नयनों की भाषा चित्रों में कैसे समा सकती है...जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं...

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  2. आवश्यक वे रंग तुम्हारी आँखों में पाये जाते हैं ।
    तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
    waah !!

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-11-2014) को "भोर चहकी..." (चर्चा-1813) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  5. अद्भुत शब्द - चित्र ।

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. बहुत सुन्दर

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  8. अच्छी प्रस्तुती..

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  9. आंखों पर ही किताब लिखी जा सकती है।

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